इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
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रविवार, 21 जुलाई 2013
सत्संग, गीता आदि -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं। दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है। महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है। श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके संगी(सत्संगी) बन जाते हैं। गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)। इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं। श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ करनेका लाभ ले लेते हैं। इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
मन में है बसी बस चाह यही, प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ । बिठला के तुम्हें मन मंदिर में, मन मोहिनी रूप निहारा करूँ ॥ भरके दॄग-पात्र में प्रेम का जल, पद पंकज नाथ पखारा करूँ । बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु, नित आरती भव्य उतारा करूँ ॥
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श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
जवाब देंहटाएंरिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ
करनेका लाभ ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
मन में है बसी बस चाह यही, प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूँ ।
जवाब देंहटाएंबिठला के तुम्हें मन मंदिर में, मन मोहिनी रूप निहारा करूँ ॥
भरके दॄग-पात्र में प्रेम का जल, पद पंकज नाथ पखारा करूँ ।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभु, नित आरती भव्य उतारा करूँ ॥