गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दो प्रकारकी अयोध्या-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                     ॥श्रीहरि:॥

दो प्रकारकी अयोध्या-

(एक तो अवतारके समयवाली और दूसरी,रामायणपाठ तथा सत्संग-समारोह-स्वरूप वाली)।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

{कौसल्यादि मातु सब धाई।
निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥

जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ
चरन बन परबस गई।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन
हुँकार करि धावत भईं॥

[रामचरितमा.७।६]।

जैसे,कुछदिनों पहले ही ब्यायी हुई गऊ अपने बछड़ेको घरपर ही छोड़कर चरनेके लिये परवशतासे वनमें गयी हों और सूर्यास्तके समय थनोंसे दूध बहाती हुई हुँकार करके नगरकी तरफ दौड़ी हों;ऐसे कौसल्या आदि सब माताएँ (जब रामजी वनसे लौटकर वापस आये,तब वो रामजीसे मिलनेके लिये) दौड़ीं।

यहाँ(अयोध्यामें) बछड़ा वनमें गया है,रामजी वनमें गये हैं,माताएँ वनमें नहीं गई हैं।तो यह विपरीत उदाहरण क्यों दिया यहाँ?

यह इसलिये दिया कि जहाँ रामजी है,वहीं अयोध्या है,बाकी तो सब जंगल है, वन है।माताएँ घरपर थीं तो भी मानो जंगलमें ही थीं; क्योंकि अयोध्या तो रामजीके साथमें थीं।}।

…(सतीजी-पार्वतीजीकी तरह) नारदजीके सन्देह हो गया,ब्रह्माजीके सन्देह हो गया… इन्द्रके सन्देह हो गया।येह सन्देह हुआ है भगवानके चरित्रसे(चरित्र देखनेसे) और भगवानकी कथा(सुनने)से(सन्देह) दूर हुआ।

तो रामचन्द्रजी महाराजके समय(जो) अयोध्या है,उसकी अपेक्षा यह(सत्संग-समारोह-स्वरूप) अयोध्या तेज हो गयी,जब रामायणकी कथा हुई है यहाँ।

रामजीके चरित्रसे तो मोह हो जाता है अर(और) रामचरित्रकी कथासे मोह दूर हो जाता है।

आप ख्याल किया कि नहीं आपने!?
तो यह अयोध्या कम नहीं है येह!

अब जो रामजीका राज्याभिषेक होता है! तो यह अजोध्या है।

हरेक भाई-बहनसे कहना है कि आपलोग सब-हम आप, अजोध्यामें हैं,रामजीके राजगद्दीका उत्सव देखते हैं और अजोध्या*में हैं(तालियोंकी आवाजें)।रामजीसे बढकर रामजीकी कथा है।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
19951003/1700 बजेवाले प्रवचनका अंश (यथावत)… ।


अपने यहाँ कथा हुई है रामजीका पाठ हुआ है…

(तो यह रामजीसे बढकर है,उस अयोध्यासे यह रामायण-पाठ तथा सत्संग-स्वरूपवाली अयोध्या बढकर है,तथा आप और हम सब उस अयोध्यामें रामजीके राज्याभिषेकका उत्सव देख रहे हैं।हम सब अयोध्यामें हैं।)

…तो कैसी मौजकी बात है।…

(*जोधपुरमें जो नौ दिनोंका सामूहिक रामायण-पाठ हुआ और उसमें 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' पधारे,उस 'सत्संग-समारोह'को ही यहाँ 'अयोध्या' कहा गया है)।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

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