शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

गीता 'साधक-संजीवनी'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) समझकर-समझकर पढनेसे अत्यन्त लाभ |

प्रसिध्द संत, श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने श्रीमद्भगवद्गीता पर हिन्दी भाषामें एक सरल टीका लिखि है,जिसका नाम है- साधक-संजीवनी।इसका अनेक भारतीय भाषाओंमें और अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओंमें भी अनुवाद हो चूका है तथा प्रकाशन भी हो गया है।जिन्होने ध्यानसे मन लगाकर पढा है,वे इस विषयमें कुछ जानते हैं और जिनको गीताजीका वास्तविक अर्थ और रहस्य समझना हो,उनको चाहये कि वे एक बार इसको समझ-समझकर पढे लेवें।
 (यह साधक-संजीवनी ग्रंथ तथा उनके और भी ग्रंथ गीताप्रेस गोरखपुरसे पुस्तकरूपमें और इंटरनेट पर उपलब्ध है और ये कम्प्यूटर, टेबलेट,मोबाइल आदि पर पढने लायक अलगसे भी उपलब्ध है।)
कृपया साधक-संजीवनी गीता (लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) का समझ-समझ कर अध्ययन करें।
कई जने सोच लेते हैं कि रोजाना साधक-संजीवनीके एक श्लोककी पूरी व्याख्या पढ लेवें या पूरा एक पृष्ठ पढ लेवें ,यह बहुत बढिया है,परन्तु कभी-कभी जिस दिन समय कम रहता है और पूरी एक श्लोककी व्याख्या या पूरा पृष्ठ पढनेका आग्रह रहनेके कारण जल्दी-जल्दी पढकर पूरा करते हैं,तो कई बातें  पूरी समझे बिना ही रह जाती है;इस प्रकार पुस्तक तो पढकर पूरी कर लेते हैं,पर पूरी समझे बिना रह जाती है | ऐसा क्यों होता है कि पृष्ठ या व्याख्या पूरी करनेका आग्रह होनेसे;अगर इसकी जगह समय बाँधलक,तो समस्या हल हो जाती है ;अर्थात् १०-२० मिनिट या घंटा-आधाघंटा हमें तो समझनेमें लगाना है,चाहे एक दिनमें व्याख्या या पृष्ठ पूरा न हो;अगले दिन वहींसे आगे समझकर पढेंगे,कोई बात समझमें नहीं आई,तो दुबारा पढेंगे,तिबारा पढेंगे,पूर्वापरका ध्यान रखेंगे,और भी कुछ आवश्यक हुआ तो वो करेंगे| 
इस प्रकार समझकर पढनेसे बहुत लाभ होता है,गीताका रहस्य समझमें आने लगता है,फिर तो रुचि हो जाती है और प्रयास बढ जाता है,गीता समझमें आने लगती है और गीता समझमें आ जाती है,तो भगवत्तत्व समझमें आ जाता है;फिर तो कुछ जनना बाकी नहीं रहता,न पाना बाकी रहता है,न करना बाकी रहता है ; मनुष्यजन्म सफल हो जाता है|

जिनको गीताजी याद(कण्ठस्थ) करनी हो,वो पहले इस प्रकार साधक-संजीवनीसे श्लोक समझकर याद करेंगे, तो बड़ी सुगमतासे गीता याद हो जायेगी और जितनी बार श्लोकोंकी आवृत्ति करेंगे,उनके साथ-साथ अर्थ और भावोंकी भी आवृत्ति हो जायेगी | गीता याद करनेवालोंके लिये 'गीता-ज्ञान-प्रवेशिका'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) बहुत उपयोगी है;इसी प्रकार 'गीता-दर्पण'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) भी अत्यन्त लाभकारी है | 

'गीता-दर्पण' ग्रंथ कैसे प्रकट हुआ? कि
परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज गीता 'साधक-संजीवनी'की भूमिका लिखवा रहे थे,वो भूमिका संकोच करते-करते भी ( कि पहले भी 'साधक-संजीवनी' इतना बड़ा पौथा हो गया,वैसे ही यह न हो जाय)इतनी बड़ी हो गयी कि अलगसे 'गीता-दर्पण'नामक ग्रंथ छपाना पड़ा;इसमें गीताजीके शोधपूर्ण १०८ लेख है और पूर्वार्ध्द तथा उत्तरार्ध्द-दो भागोंमें विभक्त है, किसी गीता-प्रेमी सज्जनको श्री महाराजजी यह ग्रंथ देकर फरमाते थे कि कमसे-कम इसकी विषय-सूची तो देखना;
गीताजीके इस अद्वितीय-ग्रंथको एक बार जरूर पढना चाहिये,इसमें और भी कई बातें हैं|| 
यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/

शेष भगवत्कृपा