गुरुवार, 16 अगस्त 2018

[ पाँच खण्डों में ] गीता "साधक-संजीवनी" (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज) पीछे की विषयानुक्रमणिका आदि सहित।

                      ।।श्रीहरिः। ।
       
[ पाँच खण्डों में ]
गीता "साधक-संजीवनी "
(लेखक-
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)
पीछे की विषयानुक्रमणिका आदि सहित। 
 
कई लोगों के मन में आती है कि गीता "साधक-संजीवनी" कलेवर में बहुत बङी और वजनदार है। अगर यह अलग-अलग खण्डों में विभक्त होती तो पढ़ने में और लाने- ले जाने में भी सुगमता हो जाती। 

उसके लिये एक सुझाव दिया जाता है कि इसी (ओरिजिनल-मूल) गीता "साधक-संजीवनी" (प्रकाशक- गीताप्रेस गोरखपुर) के अलग-अलग विभाग करके (बाजार में) पाँचों पर ज़िल्द बँन्धवा लें और गीता "साधक-संजीवनी" के मुखपृष्ठ आदि पर जो एक सचित्र कवर चढ़ाया हुआ है, उसकी चार फोटो काॅपी और करवा लें। इस प्रकार ये पाँच कवर हो गये। 

अब इन पाँचों कवरों को गीता "साधक-संजीवनी" के उन विभाग किये गये पाँचों खण्डों पर चढालें।  (तो) इस प्रकार अपने मन की बात पूरी हो सकती है,  मनचाही हो सकती है।  

इसमें गीता "साधक-संजीवनी" के उन्ही (असली) पन्नों का विभाग किया है। पृष्ठ आदि में भी किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया है। अगर अन्य प्रकार से छपवा कर विभाग करते तो भूलें और गलतियाँ होने की सम्भावना थी ;  परन्तु यह तो जैसे पहले थी, वैसे ही है। सिर्फ विभाग अलग-अलग हुए हैं,पन्ने वही हैं। पन्नों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग जिल्दें बन्धवायी और उन पर कवर चढाये गये हैं।  

   [ पहले यह टीका गीताप्रेस गोरखपुर से  दस खण्डों में अन्य प्रकार से छपी थी, फिर कुछ संशोधन आदि करके सम्पूर्ण टीका एक ज़िल्द में ही छपवा दी गयी, जो मूल, ग्रंथाकार रूप में (वहीं से) उपलब्ध है ]। 

सम्पूर्ण गीता "साधक-संजीवनी" को एक जिल्द में छपवाते समय ही श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के ऐसी व्यवस्था ध्यान में आ गयी थी।
इसलिये उन्होंने (छपवाते समय) गीता "साधक-संजीवनी" के प्रत्येक अध्याय की शुरूआत में और उस अध्याय की समाप्ति पर यह ध्यान रखा कि इनकी अलग-अलग जिल्दें बन्धवाई जाय तो भी उसमें सम्पूर्ण पृष्ठ आ जाय।   न तो इस अध्याय का आखिरी पृष्ठ आगे वाले अध्याय में  रखना पङे और न आगे वाले अध्याय का पहला पृष्ठ इस अध्याय में रखना पङे। 

जैसे, गीता "साधक-संजीवनी" का आठवाँ अध्याय ६२१ वें पृष्ठ पर समाप्त होता है। अब नवाँ अध्याय उससे आगवाले (६२२ वें) पृष्ठ से छपवाना शुरू किया जा सकता था; परन्तु ऐसा न करके उस पृष्ठ को खाली रखा। (उस खाली जगह को भगवान् का रेखाचित्र देकर भर दिया) और इससे भी आगे वाले (६२३ वें) पृष्ठ पर नवें अध्याय की शुरूआत की। 

ऐसी व्यवस्था कर देने से इस अध्याय की जिल्द अलग से बान्धने पर भी इस अध्याय के सम्पूर्ण पृष्ठ इसी खण्ड में रहेंगे और आगे वाले अध्याय के भी सम्पूर्ण पृष्ठ उसी में रहेंगे। 

अगर ऐसी व्यवस्था न की गयी होती तो यह सुविधा नहीं मिलती। यह उन महापुरुषों की महान् कृपा है। 

इस प्रकार अठारहों ही अध्यायों को अलग-अलग अठारह जिल्दों में बनवाया जा सकता है और उनके सम्पूर्ण पृष्ठ उसी खण्ड में आ सकते हैं। 
इसी प्रकार उन्होंने गीता "साधक-संजीवनी" के प्रत्येक पृष्ठ के कौने में  अध्याय और श्लोक संख्या भी लिखवादी, जिससे कहीं से भी तथा कोई भी पृष्ठ खोला जाय तो पता लग जाय कि कौन से अध्याय के कौन से श्लोक की व्याख्या चल रही है। हरेक टीका में ऐसी सुविधा नहीं मिलती। 
इसके अलावा उन्होंने गीता जी के उद्धरण वाले श्लोकों की संख्याओं को भी अक्षरों में लिखवा कर छपवाया। जिससे श्लोक संख्या के अंकों में भूल न हों। जहाँ गीता के श्लोक न देकर केवल संख्या का उद्धरण दिया गया था, वहाँ (दुबारा छपने पर) भूल होने की सम्भावना थी। अब संख्या की जगह अक्षरों में लिखवा दिया (कि अमुक अध्याय के अमुक श्लोक में यह बात आयी है) तो भूल होने की सम्भावना नहीं रही।
जहाँ श्लोकांश के साथ श्लोक संख्या लिखी है, वहाँ अगर अंकों में भूल हुई तो वो श्लोकों के अंशों से पकङी जायगी। 

इस प्रकार श्री स्वामीजी महाराज ने गीता "साधक-संजीवनी" की शुद्धता और सरलता पर बहुत ध्यान रखा है। साधकों की सुविधाओं का भी विशेष खयाल रखा है तथा सबके हित का भी बहुत ध्यान रखा है। 

यहाँ, यह गीता "साधक-संजीवनी" पाँच खण्डों में विभक्त करके उनकी अलग-अलग बाइण्डिंग बाँन्धनी है।
हर खण्ड पर गीता "साधक-संजीवनी" के मुखपृष्ठ आदि वाली फोटो सहित कवर लगाना है। 

पाँचों खण्ड नीचे लिखे गये अध्यायों के अनुसार विभक्त किये जायँ-
[१- गीता साधक-संजीवनी 1-3]
(स्वामी रामसुखदास)
[२- गीता साधक-संजीवनी 4-7]
(स्वामी रामसुखदास)
[३- गीता साधक-संजीवनी 8-11]
(स्वामी रामसुखदास)
[४- गीता साधक-संजीवनी 12-16]
(स्वामी रामसुखदास)
[५- गीता साधक-संजीवनी 17-18]
(स्वामी रामसुखदास) 

(प्रत्येक खण्ड की जिल्द के ऊपर या अन्दर, पहले पन्ने पर नाम भी  क्रमशः  इस प्रकार लिख सकते हैं ) 

ये नाम अथवा खण्डों की संख्या आङी साइड में भी लिख सकते हैं जिससे बिना उठाये ही पता चल जाय कि कौन सा खण्ड किस खण्ड के नीचे है।
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कृपया इन बातों का ध्यान रखें और काम पूरा हो जाने पर जाँच भी करलें- 

1- गीता "साधक-संजीवनी" की वही प्रति हो कि जिसके पीछे 'विषयानुक्रमणिका' आदि दी गयी हो। 

2- प्रत्येक खण्ड के ऊपर और आङी साइज में नाम क्रमशः सही-सही हो। 

3- प्रत्येक खण्ड के ऊपर गीता "साधक-संजीवनी" के मुखपृष्ठ आदि वाले चित्र सहित कवर हो। 

4- ज़िल्द सही ढंग से बाँन्धी गई हो। कोई भी पृष्ठ छूटे नहीं हो और इधर ऊधर न हुए हों तथा मुङे नहीं हो, एक-दूसरे के चिपके नहीं हो, आदि बातों का ध्यान रखा गया हो। (इस प्रकार सब जाँचलें)।  
  http://dungrdasram.blogspot.com/2018/08/blog-post.html?m=1