॥श्रीहरिः॥
गीता साधक-संजीवनी* सप्ताह (*लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज),और सूचना-पत्र।
गीताजी का प्रचार हो और जीवन्मुक्त महापुरुषों की वाणी जन-जन तक पहुँचे तथा लोगों का सुगमतासे जल्दी कल्याण हो - ऐसी प्रेरणा के लिये यहाँ कुछ उपयोगी सामग्री प्रस्तुत की जा रही है।
श्रीस्वामीजी महाराज कहते थे कि जैसे गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज के समय उनकी रामायण का अधिक प्रचार नहीं था,पर अब घर-घर उनकी रामायण पढ़ी जाती है, ऐसे ही चार-साढ़े चार सौ वर्षों के बाद 'साधक-संजीवनी' का प्रचार होगा !
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की गीता 'साधक संजीवनी' पर आधारित
'संजीवनी-सुधा' नामक पुस्तक के प्राक्कथन से)।
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के श्रीमुखसे मैंने यह भी सुना है कि भविष्य में (सैकड़ों वर्षों के बाद) जब किसी बात का निर्णय लेना होगा तो सही निर्णय गीता 'साधक- संजीवनी' के द्वारा होगा।
जैसे, किसीके तरह-तरह की बातों तथा मतभेदों के कारण सही निर्णय लेने में कठिनता हो जायेगी। यह बात सही है या वो बात सही है ? इस टीका की बात सही है या उस टीकाकार की बात सही है? गीताजी का यह अर्थ सही है अथवा वो अर्थ सही है? धर्म के निर्णय में यह बात सही है या वो बात सही है? व्यवहार में यह करना सही है अथवा वो करना सही है? इस ग्रंथ की बात मानें या उस ग्रंथ की बात मानें? इस जानकार की बात मानें या उस जानकार की बात मानें? आदि आदि;
इस प्रकार जब असमञ्जस की स्थिति हो जायेगी, किसी एक निर्णय पर पहुँचना कठिन हो जायेगा। कोई कहेंगे कि अमुक टीका में यह लिखा है, अमुक ने यह अर्थ किया है। अमुक स्थान पर यह लिखा है, अमुक ग्रंथ में यह लिखा है और अमुक अमुक यह कहते हैं आदि आदि।
तब कोई कहेंगे कि (गीता 'साधक- संजीवनी' लाओ) स्वामी रामसुखदास जी ने क्या कहा है? तब कोई कहेंगे कि उन्होंने तो गीता की टीका 'साधक-संजीवनी' में यह लिखा है। तब उनके जँचेगी कि हाँ, यह बात सही है। तब उसी बातसे सही निर्णय होगा और 'साधक- संजीवनी' द्वारा दिया गया वही निर्णय सबको मान्य होगा।
(गीता 'साधक-संजीवनी' के लिये भविष्य-वाणियाँ
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा।
http://dungrdasram.blogspot.in/2017/02/blog-post_22.html?m=1 नामक लेखसे)।
जैसे भागवत-सप्ताह किया जाता है,ऐसे गीता साधक-संजीवनी सप्ताह भी किया जा सकता है और करना चाहिये।
जैसे श्रीमद्भागवत के अठारह हजार श्लोकों की कथा सात दिन में सुनायी जाती है, ऐसे साधक-संजीवनी गीता के सात सौ श्लोकों की कथा भी सात दिनों में सुनायी जा सकती है।
जिस प्रकार श्रीमद्भागवत सप्ताह-कथा के प्रतिदिन विश्राम-स्थल नियत किये गये हैं, ऐसे गीता साधक संजीवनी सप्ताह-कथा के भी प्रतिदिन विश्राम-स्थल नियत किये जा सकते हैं।
यथा-
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज द्वारा लिखित साधक संजीवनी (सप्ताह के लिये सुझाव-)।
१- प्रथम दिन का विश्राम-स्थल माहात्म्य आदि करने के बाद, पहले अध्यायके पहले श्लोक से शुरु करके दूसरे अध्यायके तिरपनवें श्लोक पर करना चाहिये -)
(१-पहले दिन)- १।१- २।५३
इसी प्रकार-
(२-दूसरे दिन)- २।५४-४।३८;
(३-तीसरे दिन)- ४।३९-७।२०;
(४-चौथे दिन)- ७।२१-१०।२८;
(५-पाँचवें दिन)- १०।२९-१३।११;
(६-छठे दिन)- १३।१२-१७।६;
(७-सातवें दिन)- १७।७-१८।७८;
इसमें विश्राम स्थल अपनी सुविधा के अनुसार आगे या पीछे भी किये जा सकते हैं। ये तो अगर प्रतिदिन १००-१०० श्लोकों की कथा करनी हों तो उसके अनुसार बताये गये हैं।
कथा की सूचना देनेके लिये, अपने सम्बन्धियों या श्रोताओं को निमन्त्रण भेजने के लिये अथवा सर्व साधारण लोगों को बाँटने के लिये, जिनको सूचना-पत्र छपवाने हों तो उनकी सुविधा के लिए नीचे सूचना-पत्र और बेनर के नमूने-चित्र दिये गये हैं। इनको देखकर नाम, ठिकाना,तारीख और नम्बर आदि अपने खुदके दिये जा सकते हैं।
अधिक जानने के लिये कृपया यह लेख पढ़े-
महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें -
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