रविवार, 19 फ़रवरी 2017

आप (बड़ी सुगमता से और जल्दी) जीवन्मुक्त हो सकते हैं।(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                  ॥श्रीहरिः॥

आप (बड़ी सुगमता से और जल्दी) जीवन्मुक्त हो सकते हैं।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)। 

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज  दिनांक ११.५.१९९०.प्रातः  ०८.३० बजे  (19900511_0830_Jeevan Mukti Sahaj Hai नाम) वाले प्रवचन से पहले आ कर बैठे और बैठकर श्रोताओं से कहा कि अब बोलो (क्या सुनावें?)

श्रोताओं की तरफ से निवेदन किया गया कि आपके मनमें जो बात आयी हो,वही सुनाओ। तब श्री महाराज जी बोले कि

हमारे मनमें तो ऐसी बात आयी कि आप जितने सत्संग सुनने वाले हैं, वे सबके सब जीवन्मुक्त हो जायँ, तत्त्वज्ञ,भगवद्भक्त हो जायँ। मनुष्य जन्म सफल सबका हो जाय (आप सब ऐसे हो जाओ)।  चाहे बहन हो और चाहे भाई हो, चाहे बूढा हो और चाहे छोटा हो - सब के सब जीवन्मुक्त हो जायँ। यह बात आयी मनमें। यह (जीवन्मुक्त होना)  कोई बड़ी बात नहीं है (कठिन नहीं है) , सब जीवन्मुक्त हो सकते हैं। आप मेरी बात की तरफ ध्यान दो। मैं मेरी बात नहीं कहता हूँ। शास्त्रों की, गीताजी बात कहता हूँ। गीताजी की बात है यह (१३।३१;१८।१७; की- तेरहवें अध्यायका इकतीसवाँ और अठारहवें अध्यायका सतरहवाँ श्लोक) इससे बड़ा प्रमाण और क्या चाहिये आपको।

आपमें कर्तापन और भोक्तापन दोनों ही नहीं है। आप परिवार आदि में लिप्त नहीं हैं। अहंकृत भाव और लिप्तता केवल आपकी पकड़ी हुई है (वास्तव में है नहीं)।

पहले नहीं थी,बादमें नहीं रहेगी और अभी भी नहीं है। जो 'नहीं'(शरीर,संसार) है उसको 'नहीं' मानलो और जो 'है'(स्वयं,परमात्मा) उसको 'है' मानलो।

(जो बात जैसी है उसको वैसी ही मानलो,स्वीकार करलो- इतनी सी ही बात है)। है जैसा जान लेने का नाम ही ज्ञान है। 

समझमें नहीं आवे तो भी बात तो यही है  (क्योंकि गीताजी कहती है) -यह स्वीकार करलो। करना कुछ नहीं है। ( आप जीवन्मुक्त हो जाओगे) । और समझमें नहीं आवे तो भगवानको पुकारो।

एक तो वस्तु का निर्माण करना होता है,उसको बनाना होता है और एक वस्तु की खोज होती है। परमात्मतत्त्व को बनाना नहीं है,वो तो है पहले से ही।उधर दृष्टि डालनी है (खोज करनी है)।

खोज में भी उधर दृष्टि डालना है। (नया कुछ नहीं  करना है, सिर्फ दृष्टि डालना है । दृष्टि डालते ही प्राप्ति हो जायेगी इसमें-प्राप्ति में देरी नहीं लगती। सांसारिक काम में देरी लगती है,परमात्मा की प्राप्ति में देरी नहीं लगती। परमात्मा की प्राप्ति का कायदा और सांसारिक प्राप्ति का कायदा दो है,अलग-अलग है) हमारे भाई बहनों ने कायदा एक ही समझ रखा है

(वो समझते हैं कि जैसे सांसारिक प्राप्ति होती है ऐसे ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। जैसे सांसारिक काम करने से होता है ऐसे ही परमात्मा की प्राप्ति भी करने से होती है; जैसे उसमें देरी लगती है,ऐसे इसमें भी देरी लगती है; पर बात यह नहीं है। परमात्मा की प्राप्ति का तरीका अलग है)। अधिक जानने के लिये कृपया श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का यह  (19900511_0830_Jeevan Mukti Sahaj Hai) प्रवचन सुनें।

http://dungrdasram.blogspot.com

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