रविवार, 27 मई 2018

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 

                         ।।श्रीहरिः। ।
[श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 
अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजसे अन्तिम दिनोंमें यह प्रार्थना की गयी कि आपके शरीरकी अशक्त अवस्थाके कारण प्रतिदिन सत्संग-सभामें जाना कठिन पड़ता है।इसलिये आप विश्राम करावें।जब हमलोगोंको आवश्यकता मालुम पड़ेगी तब आपको हमलोग सभामें ले चलेंगे और कभी आपके मनमें सत्संगियोंको कोई बात कहनेकी आ जाय तो कृपया हमें बता देना,हमलोग आपको सभामें ले जायेंगे।
उस समय ऐसा लगा कि श्री महाराजजी ने यह प्रार्थना स्वीकार करली।
इस प्रकार जब भी परिस्थिति अनुकूल दिखायी देती तब समय-समय पर आपको सभामें ले जाया जाता था।
एक दिन (परम धाम गमन से तीन दिन पहले २९ जून २००५ को)
श्रद्धेय श्री स्वामीजी महाराजने अपनी तरफसे (अपने मनसे) फरमाया कि आज चलो अर्थात् आज सभामें चलें। सुनकर
तुरन्त तैयारी की गयी।
पहियोंवाली कुर्सी पर आपको  विराजमान करवा कर सभामें ले जाया गया और जो बातें आपके मनमें आयीं,वो सुनादी गयीं तथा वापस अपने निवास स्थान पर पधार गये।
दूसरे दिन भी सभामें पधारे और प्रवचन हुए।
इस प्रकार यह समझ में आया  कि जो अन्तिम बात सत्संगियोंको कहनी थी,वो उस (पहले) दिन कह दीं।
दूसरे दिन भी सभामें पधारे थे परन्तु दूसरों की मर्जी से पधारे थे।अपनी मर्जीसे तो जो आवश्यक लगा, वो पहले दिन कह चूके। दूसरे दिन (उन पहले दिन वाली बातों पर)प्रश्नोत्तर हुए]।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 
अन्तिम प्रवचन का यथावत् लेखन 
१-
              ■□मंगलाचरण□■
के बाद-
एक बात बहुत श्रेष्ठ (है )बहुत श्रेष्ठ बात, है बड़ी सुगम, बड़ी सरल । एक बात है। वो कठिन है- कोई इच्छा, किसी तरह की इच्छा मत रखो । किसी तरह की कोई भी इच्छा मत रखो। ना परमात्मा की, ना आत्मा की, ना संसार की, ना आपनी (अपनी) मुक्ति की , कल्याण की इच्छा , कुछ इच्छा, कुछ इच्छा मत रखो और चुप हो जाओ,बस। पूर्ण प्राप्त ! कुछ भी इच्छा न रख कर के चुप, शाऽऽऽऽऽन्त !! ।
क्योंकि परमात्मा सब जगह, शाऽऽऽन्त रूप से परिपूर्ण है । स्वतः, स्वाभाविक। सब ओर, सब जगह ; परिपूर्ण [है])। कुछ भी न चाहे, कोई इच्छा नहीं, कोई डर नहीं, किसी तरह की कामना न रहे। चुप हो जाय, (बऽऽस) । एकदम परमात्मा की प्राप्ति हो जाय, तत्त्वज्ञान है वो पूर्ण। कोई इच्छा (न रखें )। क्योंकि कोई इच्छा पूरी होती है, कोई नहीं होती। यह सब का अनुभव है । सबका यह अनुभव है क (कि) कोई इच्छा पूरी होती है, कोई इच्छा पूरी नहीं होती । यह कायदा (है) ।
पूरी...(होने पर भी) कुछ नहीं करना,अर (और) पूरी न होने पर भी कुछ नहीं करना
कुछ इच्छा नहिं रखनी, कुछ चाहना नहीं एकदम । एकदम परमात्मा की प्राप्ति । ख्याल में आयी ? कोई इच्छा नहीं, कोई चाहना नहीं। परमात्मा में स्थिति हो गई पूरी आपकी। आपसे आप स्वतः, स्थिति है। है, पहले से है। वह अनुभव हो जाएगा । कोई इच्छा नहीं, कोई चाहना नहीं, कुछ करना नहीं, कहीं जाना नहीं, कहीं आना (जाना) नहीं, कुछ अभ्यास नहीं । ...(कुछ करना नहीं)। इतनी ज(इतनी सी) बात है, इतनी बात में पूरी, पूरी हो गई । अब शंका हो तो बोलो । कोई इच्छा मत रखो। परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी; परमात्मा की प्राप्ति,एकदम। क्योंकि परमात्मा सब जगह परिपूर्ण (है) , समान रीति से, ठोस है । भूमा अचल [शाश्वत अमल] सम ठोस है तू सर्वदा। ठोस है ठोस । "है" । कुछ इच्छा मत करो, एकदम, परमात्मा की प्राप्ति । एकदम । बोलो ! शंका हो तो बोलो। कोई इच्छा (नहीं)। अपनी इच्छा से ही संसार में हैं । अपनी इच्छा छोड़ी,...(और उसमें स्थिति हुई)। पूर्ण है स्थिति, स्वतः , स्वाभाविक। और जो काम हो, उसमें तटस्थ रहो, ना राग करो, ना द्वेष करो ।
तुलसी ममता रामसों समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दुख दास भये भव पार।
(दोहावली 94)
एक भगवान है!! कोई इच्छा (नहीं), किसी तरह की इच्छा , कोई संसार की क, परमात्मा की क, आत्मा की क ...(किसी की) क, मुक्ति की क , 
कल्याण की क , प्रेम की क , कुछ इच्छा (नहीं) ।... (बऽऽस)। पूर्ण है प्राप्ति । क्यों(कि) परमात्मा है ।
कारण हैऽऽ (कि) एक करणा (करना,क्रिया) और एक आश्रय। एक क्रिया अर (और) एक पदार्थ । एक क्रिया है, एक पदार्थ है। ये प्रकृति है। क्रिया और पदार्थ - ये छूट जाय। कुछ नहीं करना, चुप रहना। अर (और एक) भगवान के, भगवान के शरण हो गये ... (परमात्मा के) आश्रय । कुछ नहीं। करना कुछ नहीं । परमात्मा में ही स्थित ... ( स्थित करना) नहीं, उसमें स्थिति आपकी है। है। है स्थिति , एकदम।
है एकदम परिपूर्ण ,
परमात्मा में ही स्थिति है। एकदम। 
परमात्मा सब ...(जगह) शान्त है। "है" "है" वह "है" उस "है" में स्थिति हो जाय।
"है" में स्थिति, स्वभाविक, स्वभाविक है। "है" में स्थिति, सबकी स्वाभाविक। 
कुछ भी इच्छा (और एक उनका- क्रिया और पदार्थों का
•••) आश्रय
- दो छोङने से --- ("है", परमात्मा में स्थिति हो जायेगी, जो कि पहले से ही है । अनुभव नहीं था।अब अनुभव हो गया।)। 
पद आता है न ! 
एक बालक, एक बालक खो गया। एक माँ का बालक खो गया। सुणाओ , वोऽऽ, वो पद सुणाओ। ( भजन गाने वाले बजरंगजी बोले- हाँ ) , बालक खो गया, व्याकुल हो गयी अर (और) जागर देख्या(जगकर देखा) तो , वहीं सोता है, साथ में ही। (हाँ, ठीक है, हाँ हाँ - सुनाते हैं ) बहोत (बहुत) बढ़िया पद है। कबीरजी महाराज का है... (वो पद)। (जो हुकम, कह कर , पद शुरु कर दिया गया - परम प्रभु अपने ही में पायो।••• - कबीरजी महाराज)।
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श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा दिया गया यहाँ यह अन्तिम प्रवचन दिनांक,२९ जून २००५ को सायं लगभग ४ बजे का है। इसकी रिकोर्डिंग को सुन-सुनकर उस के अनुसार ही, यथावत् लिखने की कोशिश की गयी है।  
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अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढें-
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/07/blog-post_27.html?m=1
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बुधवार, 23 मई 2018

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।

                            ।।श्रीहरिः। ।

  श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के बहुत वर्षों के सत्संग- प्रवचनों वाले हाथ से लिखे हुए (अप्रकाशित) रजिस्टर पङे हुए हैं । वो श्री महाराज जी के रिकोर्ड किये हुए सत्संग- प्रवचनों को टेप के द्वारा सुन-सुन कर उन प्रवचनों के अनुसार लिखे गये हैं ।

श्री महाराज जी कभी-कभी लोगों को लिखने के लिये कह भी देते थे।

कभी-कभी तो ऐसा अवसर आता कि लिखने वाले उपस्थित न रहने के कारण सब प्रवचन लिखने में कठिनता होती; तो लिखवाने वालों के पूछने पर श्री महाराज जी  कह देते कि सिर्फ प्रातः पाँच बजे वाले प्रवचन ही (रोजना के) लिख लो (पर लिखो अवश्य)।

एक बार तो प्रवचन लिखने वाले एक सज्जन श्री महाराज जी से बोले कि बहुत वर्षों के लिखे हुए ढेर सारे हस्तलिखित रजिस्टर पहले के भी पङे हुए हैं। वे भी पूरे पुस्तक रूप में छपवाये नहीं जा रहे हैं। यह देखकर लिखने का उत्साह नहीं हो रहा है। इसलिये मनमें आती है कि रोजाना के सब प्रवचन लिखना बन्द कर दें और कभी-कभी कोई विशेष प्रवचन हों तो उन-उन को ही लिख लें।

ऐसा कहने पर भी श्री महाराज जी ने लिखने का काम बन्द नहीं करने दिया और लिखवाते रहे। (शायद इसलिये कि आगे जब कभी ऐसा अवसर आये तो ये प्रवचन पुस्तक रूप में छपवाये जा सके। सामग्री उपलब्ध रहेगी तभी तो छपवा सकेंगे और यदि सामग्री ही नहीं होगी तो क्या छपवायेंगे)।

जबकि बिना मन के किसी से ऐसा करवाना उनको पसन्द नहीं था, महाराज जी के लिये यह बङे संकोच की बात थी। फिर भी लोकहित के लिये वो यह सत्संग प्रवचन लिखवाने का काम करवाते रहे।

महापुरुषों ने कृपा करके जो सामग्री तैयार करवायी थी, वो सामग्री अभी तो उपलब्ध है । उनकी कोई फोटो काॅपी भी करवायी हुई नहीं है। मूल रूप में ही पङी है। अगर पाँच- दस प्रवचनों की सामग्री भी क्षतिग्रस्त हो गई तो दुबारा प्राप्त कर लेना हाथ की बात नहीं है ; क्योंकि उनकी कोई प्रतिलिपि नहीं है।

भविष्य में न जाने कैसा समय आये और यह पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने वाला काम हो पाये या न हो पाये।

यह सामग्री ऐसे ही पङी न रह जाय। पङी- पङी सामग्री बेकार भी हो जाती है तथा पुरानी होकर नष्ट भी हो जाती है।

उनको पुस्तक या पत्रिका आदि के रूप में क्रमशः छपवाकर लोगों तक पहुँचाया जाय तो दुनियाँ की बङी भारी सेवा होगी। बङा भारी काम हो जायेगा।

यह भगवान् और महापुरुषों की भी बङी सेवा है। इस सामग्री के कुछ लेख तो पुस्तक रूप में प्रकाशित हुए थे ; लेकिन बहुत सारी सामग्री अभी-भी अप्रकाशित ही पङी है।

कई लोगों को तो इस सामग्री का पता भी नहीं है। कुछ लोगों को पता है पर वो भी मूकदर्शक-से ही बने हुए हैं। काम कुछ नहीं हो पा रहा है।

(वो लिखी हुई सामग्री पहले बीकानेर आदि में थी। अब वो गीताप्रेस गोरखपुर में है। लेकिन वहाँ भी उनका कोई काम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। सुना है कि (उनका महत्त्व न समझने के कारण ) वहाँ भी भाररूप में ही पङी है । उस सामग्री के कारण जगह रुकी हुई लगती है)। 

इसलिये हमलोगों को चाहिये कि प्रयास करके, पुस्तक आदि छपवा कर के वो सामग्री लोगों तक पहुँचायें।

http://dungrdasram.blogspot.in/?m=1

शनिवार, 12 मई 2018

"राम कथा में सत्संग" - https://drive.google.com/folderview?id=0B1hTIYwow9O-VUFxZ1pzMnlKUVE

यह "राम कथा में सत्संग" का लिंक है।
इस में राम कथा गान (डुँगरदास राम आदि के द्वारा) और श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का सत्संग है।
इस में वो सत्संग है जो श्री स्वामी जी महाराज  राम कथा के बाद में सुनाते थे।

"राम कथा में सत्संग" - https://drive.google.com/folderview?id=0B1hTIYwow9O-VUFxZ1pzMnlKUVE