।।श्रीहरिः। ।
(१८)- सत्संग से बहुत ज्यादा लाभ -
('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')
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यह बात जरूर है कि संतोंसे लाभ बहुत होता है। संत-महात्माओंसे बहुत लाभ होता है।
मैं कहता हूँ कि (कोई) साधन करे एकान्तमें खूब तत्परतासे, उससे भी लाभ होता है; पर सत्संगसे लाभ बहुत ज्यादा होता है।
साधन करके अच्छी, ऊँची स्थिति प्राप्त करना कमाकर धनी बनना है और सत्संगमें गोद चला जाय( गोद चले जाना है)। साधारण आदमी लखपतिकी गोद चला जाय तो लखपति हो जाता है, उसको क्या जोर आया। कमाया हुआ धन मिलता है।
इस तरह सत्संगमें मार्मिक बातें बिना सोचे-समझे(मिलती है), बिना मेहनत किये बातें मिलती है।
कोई उद्धार चाहे तो मेरी दृष्टिमें सत्संग सबसे ऊँचा(साधन) है।
भजनसे, जप- कीर्तनसे, सबसे लाभ होता है, पर सत्संगसे बहुत ज्यादा लाभ होता है। विशेष परिवर्तन होता है। बड़ी शान्ति मिलती है। भीतरकी, हृदयकी गाँठें खुल जाती है एकदम साफ-साफ दीखने लगता है। तो सत्संगसे (बहुत)ज्यादा लाभ होता है।
सत्संग सुनानेका सेठजीको बहुत शौक था, वो सुनाते ही रहते, सुनाते ही (रहते)।
सगुण का ध्यान कराते तो तीन घंटा (सुनाते), सगुण का ध्यान कराने में, मानसिक-पूजा करानेमें तीन घंटा।
निर्गुण-निराकार का (ध्यान) कराते तीन घंटा(सुनाते)। बस, आँख मीचकर बैठ जाते। अब कौन बैठा है, कौन ऊठ गया है, कौन नींद ले रहा है, कौन (जाग रहा है)। परवाह नहीं, वो तो कहते ही चले जाते थे। बड़ा विचित्र उनका स्वभाव था। बड़ा लाभ हुआ, हमें तो बहुत लाभ हुआ भाई। अभी(भी) हो रहा है। गीता पढ़ रहा हूँ, गीतामें भाव और आ रहे हैं, नये-नये भाव पैदा हो रहे हैं, अर्थ पैदा हो रहे हैं। बड़ा विचित्र ग्रंथ है भगवद् गीता।
साधारण पढ़ा हुआ आदमी भी लाभ ले लेता है बड़ेसे (बहुत पढ़े हुए बड़े आदमीसे भी ज्यादा लाभ साधारण पढ़ा हुआ आदमी गीतासे ले लेता है)। गीता और रामायण- ये दो ग्रंथ बहुत विचित्र है। इनमें बहुत विचित्रता भरी है।
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' द्वारा दिये गये दि. 19951205/830 बजेके सत्संग-प्रवचनका अंश। ( goo.gl/cLtjIi )।
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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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( इस पुस्तक ("महापुरुषों के सत्संग की बातें") के बाकी लेख भी इसी ब्लॉग पर है और यह पुस्तक रूप में भी छप चूकी है।
-डुँगरदास राम, मोबाइल नं• 9414722389)।