श्रोता-
स्वामीजी-
(इसमें एक) बात बतावें आपको।यह 'अहम्' जो चीज है, यह दो तरहका होता है।
यह मुक्त हो गये,छूट गया।…
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
।।श्रीहरि:।।
परम हितैषी,भगवान अचिन्त्यरूपसे अपने भक्तकी रक्षा करते हैं।
आपने रघुनाथ भक्तकी कथा सुनी या पढी होगी।यह कथा 'भक्त पञ्चरत्न' नामक पुस्तकमें है और
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' भी कहते थे।
(…कि) जब वो दौनों (पति-पत्नि) चारों ओरसे शत्रुओं द्वारा घिर गये और पत्नि डरने लगी तो रघुनाथ भक्तने उपालम्भ (ओलबा) देते हुए कहा कि प्रिये! (अपने परम हितैषी, भगवान् के मौजूद रहते हुए भी तुम) डरती हो! ? डरो मत।डरना है-यह भगवानका तिरस्कार करना है।
…और उसी समय अचिन्त्य रूपसे भगवान् ने आकर उन दौनोंकी रक्षा की।…
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।।श्रीहरि:।।
(संसारकी याद) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
प्रश्न-
संसार की स्मृति (याद) मिटती नहीं है, क्या करें ?
(स्वामीजी -)
(संसारकी स्मृति) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है। अच्छा,
आपको स्वप्न क्या आया था,बता सकते हो? रात स्वप्न आया, परसों रातने (को) आया, वो स्वप्न बताओ; क्या आया?
(श्रोता -
नहीं बता सकते)।
(स्वामीजी -)
क्यों?
(श्रोता -)
याद नहीं रहता है वो ।
तो उसमें बुद्धि आपकी 'है वो' - यह (बुद्धि) है ही नहीं;जागते हुए, जगे है ही नहीं। तो स्मृति नहीं रहती। 'है' (सत्य) मानते हो तब स्मृति रहती है।
-
सुपना सा हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम।
हो सचेत बलदेव नींद से जप ईश्वरका नाम॥
मनुषतन फिर फिर नहिं होई॥
ऊमर सब गफलत में खोई,
किया शुभकरम नहीं कोई ॥
...
(--श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के
दि.२८-४-१९९५ _१६०० बजे वाले सत्संग प्रवचन से)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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