।।श्रीहरिः।।
नित्य स्तुति ( प्रार्थना ), गीतापाठ और सत्संग
(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध ) ।।
[ कृपया इस जानकरी को पूरा पढ़ें, इसमें श्रीस्वामीजी महाराज के सत्संग की महत्त्वपूर्ण जानकरी लिखी गयी है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज प्रतिदिन, प्रातः पाँच बजे नित्य- स्तुति प्रार्थना, गीतापाठ आदि के बाद सत्संग करते थे जो बहुत ही बढ़िया और विलक्षण हुआ करता था। वैसा सत्संग आज भी हम सबलोग सुगमता से करलें - इसके लिये इकहत्तर दिनों के सत्संग- प्रवचनों के समुदाय का एक प्रबन्ध किया गया है। उसकी जानकारी यहाँ दी जा रही है- ]
(१)
प्रातः पाँच बजेवाली सत्संग के चार विभाग-
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के समय में प्रतिदिन पाँच बजते ही गीताजी के कुछ चुने हुए श्लोकों*१● द्वारा नित्य-स्तुति, प्रार्थना शुरु हो जाती थी। उसके बाद गीताजी के लगभग दस श्लोकोंका क्रमशः पाठ और हरि:शरणम् हरि:शरणम् ... इस प्रकार कीर्तन होता था।
इनके बाद श्रीस्वामीजी महाराज सत्संग-प्रवचन करते थे, जो प्रायः छः बजेसे पहले ही समाप्त हो जाते थे।
थोङे समय में होनेवाला यह सत्संग-प्रोग्राम*२● बहुत ही बढ़िया होता था। बहुत विलक्षण और प्रभावशाली था। उससे बङा लाभ होता था।
( इस विषयमें कुछ आगे बताया गया है। )
वो लाभ हम सब आज भी ले सकते हैं, सत्संग कर सकते हैं, सुन सकते हैं और उन्हीं की वाणी के साथ-साथ में प्रार्थना, गीतापाठ आदि भी कर भी सकते हैं।
'श्रीस्वामीजी महाराज' के समय में जिस प्रकार से सत्संग होता था उस प्रकार से हम आज भी करलें- इस बातको ध्यानमें रखते हुए यह इकहत्तर दिनों के प्रवचनों का सेट ( सत्संग- समुदाय ) तैयार किया गया है। इसमें ये चारों हैं - 1-नित्य-स्तुति (प्रार्थना) ,2-गीताजी के दस-दस श्लोकों का क्रमशः पाठ,3-हरि:शरणम्... वाला संकीर्तन तथा 4-सत्संग-प्रवचन।
ये चारों श्रीस्वामीजी महाराज की वाणी में ही तैयार किये गये हैं। चारों उन्हीकी आवाज़ में है।
यह "सत्संग-समुदाय" मोबाइल, टैबलेट आदि में आसानीसे देखा और सुना जा सकता है और दूसरे यन्त्रोंद्वारा भी यह सत्संग किया जा सकता है ( मेमोरी कार्ड, पेन ड्राइव, लेपटोप, कम्प्यूटर, सीडी प्लेयर, स्पीकर या टी.वी. आदि के द्वारा भी यह सत्संग सुना जा सकता है )।
चारों एक नम्बर पर, एक ही फाइल में जोङे गये हैं; इसलिये एक बार चालू कर देने पर ये चारों अपने-आप सुनायी पङेंगे, बार-बार चालू नहीं करने पङेंगे।
यन्त्र के द्वारा इसको एक बार शुरु करदो, बाकी काम अपने- आप हो जायेगा अर्थात् आप पाँच बजे प्रार्थना चालू करदो; तो प्रार्थना होकर आगे गीतापाठ अपने-आप आ जायेगा और उसके बाद हरि:शरणम् ... वाला संकीर्तन आकर अपने-आप प्रवचन आ जायेगा, सत्संग-प्रवचन शुरु हो जायेगा।
इस प्रकार नित्य नये-नये सत्संग-प्रवचन आते जायेंगे। इकहत्तर दिन पूरे हो जानेपर इसी प्रकार वापस एक नम्बर से शुरु कर सकते हैं और इस प्रकार उम्रभर सत्संग किया जा सकता है।
इनके अलावा श्री स्वामीजी महाराज के कोई दूसरे प्रवचन सुनने हों तो प्रार्थना आदि के बाद सुने हुए प्रवचनों की जगह दूसरे (नये) प्रवचन लगाकर सुन सकते हैं।
(२)
प्रत्येक दिन की जानकारी और विषय-सूची -
इनमें सुविधा के लिए प्रत्येक फाइल पर शुरु में फाइल और दिनों की संख्या तथा गीताजीके अध्याय और श्लोकोंकी संख्या लिखी गई है; इसके बाद हरिःशरणम्- संकीर्तन का संकेत और श्रीस्वामीजी महाराज का नाम लिखा गया है। इसके आगे प्रवचन की तारीख और सत्संग के विषय का नाम लिखा गया है।
इनके अलावा प्रार्थना शुरु होने से पहले, प्रतिदिन गीताजी के अध्याय और श्लोकों की संख्या बोली गई है जिससे पता लग जाता है कि आज नित्य स्तुति-प्रार्थना के बाद गीताजी के कौन से दस श्लोकों का पाठ आनेवाला है। उसके बाद दिनों की संख्या और प्रवचन का नाम बोला गया है, सत्संग का विषय बताया गया है; उसके बाद श्रीस्वामीजी महाराज का नाम और प्रत्येक प्रवचन की तारीख बोली गयी है।
(३)
साधक-संजीवनी और गीताजी अलग-अलग नहीं है-
कई अनजान लोग साधक-संजीवनी और गीताजीको अलग-अलग मान लेते हैं, उनको समझाने के लिये गीतापाठ की सूचना बोलते समय "गीता" नाम के साथ- साथ "साधक- संजीवनी" का नाम भी बोला गया है। इससे यह दर्शाया गया है कि गीताजी साधक-संजीवनी से अलग नहीं है, साधक- संजीवनी गीताजी से अलग नहीं है। दोनों एक ही हैं, दो नहीं है। जो श्लोक गीताजी में हैं वे- के वे ही श्लोक साधक- संजीवनी में है। गीताजी के श्लोकों को ही साधक- संजीवनी में अच्छी तरह से समझाया गया है।
इसलिये प्रार्थना के बाद गीताजी के दस- दस श्लोकों का पाठ करने से पहले, उनकी श्लोकसंख्या वाली सूचना बोलते समय "गीता साधक- संजीवनी, अमुक अध्याय, श्लोक अमुक से अमुक तक" बोला गया है। इससे गीता साधक-संजीवनीका प्रचार भी होगा और कोई ध्यान लगाकर साधक- संजीवनी पढ़ेंगे तो उनको गीताजी सुगमता से समझमें आ जायेगी। उनको एक नयी दिशा मिलेगी। व्यवहार और परमार्थ की विलक्षण विलक्षण बातें मिलेगी। सत्संग की बातें समझ में आयेगी। और भी बहुत कुछ होगा। सब संशय मिट जायेंगे। सब द्वन्द्व समाप्त हो जायेंगे। परमशान्ति मिल जायेगी।
इनके सिवाय इस प्रबन्ध में प्रवचनों के नामों वाली "बोली हुई विषयसूची" एक साथ (इकट्ठी) भी जोङी गई है (इकहत्तर दिनोंवाली विषयसूची एक फाइल में ही जोङदी गयी है)। इस सूची में से अपने पसन्द का प्रवचन चुनकर सुनने से बङी शान्ति मिलती है, बङा लाभ होता है और अच्छा लगता है। अपने मन में पङी अनेक शंकाएँ मिट जाती है। नया प्रकाश (ज्ञान) मिल जाता है।
(४)
श्लोकों के विभागों की मर्यादा -
यह प्रवचन- समूह ( सत्संग-समुदाय ) इकहत्तर दिनोंका इसलिये बनाया गया कि इतने दिनों में अङ्गन्यास आदि सहित क्रमशः पूरी गीताजी का पाठ हो जाता है।
( प्रतिदिन प्रार्थना के बाद गीताजी के करीब दस-दस श्लोकों का क्रमशः पाठ करते-करते इकहत्तर दिनोंमें अङ्गनास करन्यास, माहात्म्य और आरती सहित पूरी गीताजी का पाठ हो जाता है। )
७०० श्लोकों वाली गीताजी के दस-दस श्लोकों का विभाग करने से ७० दिन होते हैं ; परन्तु गीता जी के अङ्गन्यास करन्यास, माहात्म्य, आरती, प्रत्येक अध्यायों की श्लोक संख्या और अध्यायों के आरम्भ तथा समाप्ति की मर्यादाओं को ध्यान में रखते हुए यह काम ७१ दिनों में पूरा किया गया है।
अध्यायों की मर्यादा रखते हुए दस- दस श्लोकों का विभाग उनके भीतर ही किया गया है। अन्तिम विभाग में श्लोक कम पङ जाने पर भी उस अध्याय की मर्यादा को लाँघकर अगले अध्याय में दखल नहीं दी गयी है। अध्याय की शुरुआत और समाप्ति का गौरव रखते हुए उस विभाग को छोटा ही रहने दिया है। जहाँ अन्तिम विभाग में कुछ श्लोक अधिक हो गये तो उसी अध्याय के विभागों को बाँट दिया गया है; पर श्लोकों की संख्या दस ही करने का आग्रह रखकर जन मानस में जटिलता पैदा नहीं की गयी है। विभागों को सहज ही रहने दिया है।
[ श्रीस्वामीजी महाराज के समय में भी ( पाँच बजे वाले सत्संग से पहले ) गीताजी के दस- दस श्लोकों का पाठ इसी प्रकार से विभाग करके किया जाता रहा है। ]
जैसे, पहले अध्याय में सैंतालीस श्लोक है। इसके पाँच विभाग किये गये। अन्तिम विभाग में तीन श्लोक कम पङ गये। कम पङ जाने पर भी पहले अध्याय के समाप्ति की सीमा (मर्यादा) लाँघकर और दूसरे अध्याय के शुरुआत की मर्यादा तोङकर तीन श्लोक उसमें से ले- लेने की दखल नहीं दी गयी है। ऐसे ही तीसरे अध्याय में तैंतालीस श्लोक है। उसमें दस- दस श्लोकों के तीन विभाग किये गये। बचे हुए तीन श्लोक उस अध्याय के विभागों को ही बाँट दिये गये अर्थात् ग्यारह- ग्यारह श्लोकों के तीन विभाग बना दिये गये। इस प्रकार सात सौ श्लोक उनहत्तर दिनों में पूरे हुए। फिर एक दिन गीताजी के माहात्म्य और आरती का तथा एक दिन गीता जी के अङ्गन्यास- करन्यास आदि का- इस प्रकार मिलकर- सब इकहत्तर दिन हुए। इनके साथ-साथ प्रवचनों*३● की संख्या भी इकहत्तर हो गयी।
(५)
महापुरुषों की वाणी के साथ-साथ पाठ करने का माहात्म्य-
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने गीता-पाठ*४● के आरम्भ में अङ्गन्यास करन्यास आदि का पाठ किया है तथा गीता-पाठ के अन्त में गीता जी के माहात्म्य का पाठ किया है और गीताजी की आरती गायी है। ये इकहत्तर विभाग उसी गीतापाठ के किये गये हैं।
ये नित्य-स्तुति, गीतापाठ और हरिःशरणम्- संकीर्तन- तीनों उन्हीं की आवाज ( स्वर ) के साथ-साथ करने चाहिये। ऐसा करने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा। महापुरुषों की वाणी के साथ में पाठ करने का बङा महत्त्व है। भगवान् की बङी कृपा होती है तभी ऐसा मौका मिलता है।
(६)
सत्संग सुनना जरूरी -
इसके बाद श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका सत्संग- प्रवचन जरूर सुनना चाहिये।
कई जने पाँच बजे प्रार्थना तो कर लेते हैं (और कई जने गीतापाठ भी कर लेते हैं ), परन्तु सत्संग नहीं सुनते, सत्संग को महत्त्व नहीं देते। वे प्रार्थना आदि को ही जरूरी समझते हैं, सत्संग को नहीं; किन्तु जरूरी सत्संग ही है। यह समझना चाहिये। श्री स्वामीजी महाराज सबसे अधिक महत्त्व सत्संग को देते थे। इसलिये प्रार्थना आदि के बाद सत्संग जरूर सुनना चाहिये। सत्संग सुनना छोङदेने वाले तो वैसे ही हैं, जैसे कोई भोजन की तैयारी करके भोजन छोङदे।
अर्थात् जैसे कोई भोजन करने की सब तैयारी करके भोजन नहीं करता, तो उसको भोजन का लाभ नहीं मिलता; ऐसे ही कोई प्रार्थना आदि के द्वारा सत्संग सुनने की तैयारी करके सत्संग नहीं सुनता, तो उसको सत्संग का लाभ नहीं मिलता। इसलिये हमको सत्संग के लाभ से वञ्चित नहीं रहना चाहिये।
(७)
सत्संग के लिये तैयारी -
ये प्रार्थना आदि सत्संगके लिये ही होते थे, ऐसा समझना चाहिये। लोग जब आकर*५● बैठ जाते तो पाँच बजते ही*६● तुरन्त प्रार्थना शुरु हो जाती थी और उसके साथ ही सत्संग-स्थल का दरवाजा भी बन्द हो जाता था,बाहरके (लोग) बाहर और भीतरके भीतर (ही रह जाते थे)।
फिर लोग प्रार्थना, गीता-पाठ आदि करते, इतनेमें उनका मन शान्त हो जाता था, हलचल मिट जाती थी और उनका मन सत्संग सुनने के लिये तैयार हो जाता था। उस समय उनको सत्संग सुनाया जाता था। ( ऐसी अवस्थामें सत्संग सुनने से बङा लाभ होता है। सत्संग हृदय में बैठता है।)
सत्संग सुनते समय भी कोई थोड़ी-सी भी आवाज नहीं करता था। अगर किसी कारण से कोई आवाज हो भी जाती तो बड़ी अटपटी और खटकनेवाली लगती थी।
पहले नित्य-स्तुति एक कागज के लम्बे पन्ने में छपी हुई होती थीं। प्रार्थना आदि के बाद में लोग उस पन्ने को गोळ-गोळ करके समेट लेते थे। समेटते समय सत्संग में उस पन्ने की आवाज होती थीं,तो उस कागजकी आवाज (खड़के) से भी सुनने में विक्षेप होता था, ध्यान उधर चला जाता था। फिर वो प्रार्थना पुस्तकमें छपवायी गयी, जिससे कि आवाज न हो और उसके कारण सत्संग सुनने में विक्षेप न हो। ध्यान सत्संग सुनने में लगा रहे। इस प्रकार सत्संग सुनते समय कागज की आवाज भी सुहाती नहीं थी। इतना ध्यान से सुना जाता था सत्संग। ध्यान देकर सुनने से सत्संग समझ में बहुत बढ़िया आता है। समझ में आने से बात जँच जाती है और हृदय में बिठायी जा सकती है।
सत्संग सुनते समय मनकी वृत्ति इधर-उधर चली जाती है तो सत्संग ठीक तरह से समझ में नहीं आता। शान्तचित्त से, मन लगाकर सुनने से समझ में आता है और लगता भी बहुत अच्छा है।
(८)
सत्संग की बातों को हृदय में ठहरावें, बैठावें -
इस प्रकार दरवाजा बन्द करके प्रार्थना, गीतापाठ और संकीर्तन आदि करके सत्संग सुनने की तैयारी की जाती थी जिससे कि सत्संग सुनते समय ध्यान इधर-उधर न जाय, कोई विक्षेप न हो और एकाग्रता से सत्संग सुनी जाय, सुननेका प्रवाह टूटे नहीं, सत्संगका प्रवाह अबाध-गति से श्रोताओं के हृदय में आ जाय और वो उसी में भरा रहे।
सत्संग के बाद*७● भी भजन-कीर्तन आदि कोई दूसरा प्रोग्राम नहीं किया जाता था। दूसरी बातें भी नहीं की जाती थीं।
( क्योंकि ऐसा करने से हम सत्संग में सुनी हुई कई बातें भूल जाते हैं, याद नहीं रहती, हृदय में ठहर नहीं पाती।
इसलिये सत्संग के बाद कुछ देर तक बिल्कुल चुप रहना चाहिये। सुनी हुई बातों को हृदय में ठहरने देना चाहिये। उनको हृदय में बैठाना चाहिये।)
इस प्रकार शान्तचित्त से, मन लगाकर सत्संग सुनने के लिये दरवाजा बन्द, प्रार्थना, गीतापाठ और संकीर्तन आदि उपयोगी होते थे। इसलिये यह समझना चाहिये कि ये सब सत्संग के लिये किये जाते थे। ( ये सब सत्संग सुनने की तैयारियाँ समझनी चाहिये।)
जिसके लिये इतनी तैयारी की जाती है, ध्यान लगाकर सुनने की कोशिश की जाती है, ऐसा वो श्रीस्वामीजी महाराज का सत्संग छोड़ना नहीं चाहिये, प्रार्थना आदि के बाद सत्संग जरूर सुनना चाहिये। सत्संग तो प्रार्थना आदि सब साधनों का फल है-
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला।।
(रामचरित.बाल.३)।
(९)
दूसरे लोगों को भी सत्संग-लाभ सुलभ करावें -
इस इकहत्तर दिनों वाले सत्संग- समुदाय में खास बात यह है कि प्रार्थना,गीतापाठ, हरि:शरणम् ( संकीर्तन ) और प्रवचन- ये चारों श्रीस्वामीजी महाराज की ही आवाज (वाणी) में हैं, उन्हीके स्वर में हैं। महापुरुषों की वाणी में बङी विलक्षणता होती है, बङा प्रभाव होता है। जहाँ महापुरुषों की वाणी चलती है, वहाँ बङा आनन्द मङ्गल रहता है। बङा लाभ होता है। इसलिये कृपा करके इसके द्वारा वो लाभ स्वयं लें और दूसरों को भी लाभ लेनेके लिये प्रेरित करें।।
अपने घर, मोहल्ले या सत्संग भवन आदि में प्रातः पाँच बजे इस नित्य- सत्संग की व्यवस्था करनी चाहिये जिससे कि सबलोग सुगमता पूर्वक सत्संग का लाभ ले सकें।
(१०)
सत्संग करने का तरीका महापुरुषों वाला ही अपनायें-
'श्रीस्वामीजी महाराज' के समय में पाँच बजे जिस प्रकार से सत्संग होता था आज भी उसी प्रकार से करना चाहिये। प्रकार में परिवर्तन नहीं करना चाहिये। महापुरुषों ने जिस तरीके से सत्संग किया और करवाया था उसी तरीके से करने से बङा लाभ होता है, बङी शक्ति मिलती है। महापुरुषों द्वारा आचरित इस प्रकार इस सत्संग को कोई भी करेंगे और करवायेंगे तो उनको बङा भारी लाभ होगा। यह दुनियाँ की बङी भारी सेवा है। किसी को भगवान् की तरफ लगाना परमसेवा है।
गीताप्रेस के संस्थापक सेठजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका कहते थे कि लाखों मनुष्यों की भौतिक सेवा से एक मनुष्य की परमसेवा ( भगवान् की तरफ लगा देना ) बढ़कर है।
इस प्रकार हम नित्य सत्संग का लाभ ले सकते हैं और लोगों को भी यह लाभ दिला सकते हैं। प्रातः पाँच बजते ही यन्त्र के द्वारा शुरु करके यह सत्संग अनेक लोगों को सुनाया जा सकता है और इस प्रकार सत्संग करवाया जा सकता है। सत्संग प्रतिदिन करें।
(११)
सत्संग के बाद, "आपस में सत्संग-चर्चा" करने से भारी लाभ -
फिर सत्संग में सुनी हुई बातों की बैठकर आपस में चर्चा करें। एक- दूसरे आपस में सत्संग की बातों का आदान-प्रदान करते हुए ठीक तरह से समझें और समझावें।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज कहते हैं कि सत्संग के बाद सुनी हुई बातों की बैठकर आपस में चर्चा करने से, समझने से बङा लाभ होता है। बुद्धि का विकास होता है।
इस प्रकार करने से सत्संग की बातें विशेष समझ में आती है। एक बात पर किसी का ध्यान नहीं गया या याद नहीं रही तो दूसरा याद दिला देता है। जैसे दीपकके नीचे अँधेरा रहता है, पर दो दीपक एक-दूसरेके सामने रख दें तो दोनों दीपकोंके नीचेका अँधेरा दूर हो जाता है।
साधक- संजीवनी गीता (१०\११ की व्याख्या) में लिखा कि
••• फिर वे आपसमें एक-दूसरेको भगवान् के तत्त्व, रहस्य, गुण, प्रभाव आदि जनाते हैं तो एक विलक्षण सत्संग होता है। जब वे आपसमें भावपूर्वक बातें करते हैं, तब उनके भीतर भगवत्सम्बन्धी विलक्षण-विलक्षण बातें स्वत: आने लगती हैं।
जैसे दीपकके नीचे अँधेरा रहता है, पर दो दीपक एक-दूसरेके सामने रख दें तो दोनों दीपकोंके नीचेका अँधेरा दूर हो जाता है। ऐसे ही जब दो भगवद्भक्त एक साथ मिलते हैं और आपसमें भगवत्-सम्बन्धी बातें चल पड़ती हैं, तब किसीके मनमें किसी तरहका भगवत्सम्बन्धी विलक्षण भाव पैदा होता है तो वह उसे प्रकट कर देता है तथा दूसरेके मनमें और तरहका भाव पैदा होता है तो वह भी उसे प्रकट कर देता है। इस प्रकार आदान-प्रदान होनेसे उनमें नये-नये भाव प्रकट होते रहते हैं। परन्तु अकेलेमें भगवान् का चिन्तन करनेसे उतने भाव प्रकट नहीं होते। अगर भाव प्रकट हो भी जायँ तो अकेले अपने पास ही रहते हैं, उनका आदान-प्रदान नहीं होता। ■
इस प्रकार सत्संग की बातों को अच्छी तरह समझना चाहिये और प्रतिदिन सत्संग करना चाहिये।
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टिप्पणियाँ-
(१२)
नित्य-स्तुति आदि की जानकारी -
*१. नित्य-स्तुति प्रार्थना के चुने हुए उन (उन्नीस) श्लोकों की संख्या गीताजी में इस प्रकार है- (२/७; ८/९; ११/१५-२२, ३६-४४;)।
इस प्रार्थना की शुरुआत से पहले, श्रीगणेश में यह श्लोक बोला जाता था-
'गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वरपादपड़्कजम्'।।
और समाप्ति के बाद यह श्लोक बोला जाता था -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ।।
( इस प्रकार केवल प्रार्थना के ही इक्कीस श्लोक हो जाते थे। इसके बाद प्रतिदिन गीताजी के लगभग दस श्लोकों का क्रमशः पाठ तथा संकीर्तन और होता था।)
ये सब लगभग सत्रह से लेकर बीस मिनिटों में पूरे हो जाते थे। इसके बाद
(करीब 0518 बजे से) श्रीस्वामीजी महाराज सत्संग-प्रवचन करते थे। यह सत्संग पहले बाईस मिनिट के आसपास और बाद में करीब सत्ताईस मिनिट होने लगा। यह प्रायः छः बजे से 18 या 13 मिनिट पहले ही समाप्त कर दिया जाता था।
*२. श्री स्वामी जी महाराज का पाँच बजेवाला यह सत्संग-प्रोग्राम थोङे समयमें ही बहुत लाभ देनेवाला था। उनके सत्संग से लोगों को आज भी बहुत लाभ हो रहा है और आगे, भविष्य में भी बहुत लाभ होगा।
(१३)
सत्संग के अनेक लाभ -
●("श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज" की रिकोर्डिंग वाणीवाला "सत्संग" सुनें और "साधक- संजीवनी" आदि पुस्तकों के द्वारा उनका "सत्संग" करें।) "श्री स्वामीजी महाराज" के "सत्संग" में हर प्रकार के मनुष्यों को अपने- अपने काम की सामग्री मिलती है। इसलिये यह सत्संग सबके काम का है। इसमें बहुत विलक्षणताएँ भरी हुई हैं। इसमें तरह-तरह के लाभ हैं। ●
इसमें अनेक प्रकार की विशेषताएँ हैं।
जैसे-
१."श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज" का यह सत्संग गीताज्ञान, रहस्य युक्त, शास्त्र सम्मत, अनुभव सहित, युक्तियुक्त, सत- असत का विभाग बतानेवाला और तत्काल परमात्मप्राप्ति का अनुभव कराने वाला है।
२.यह सत्संग बिना कुछ किये परमात्मा की प्राप्ति करानेवाला, सरलता से भगवत्प्राप्ति करानेवाला, करणसापेक्ष तथा करणनिरपेक्ष साधन बताने वाला और करणरहित साध्य का अनुभव करानेवाला है।
३.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग आजकल की आवश्यकता युक्त, सामयिक, रुचिकर और तरह-तरह की शंकाओं का समाधान करनेवाला है।
४.यह संशयछेदक, दुःख मिटानेवाला, राग-द्वेष मिटानेवाला, समता लानेवाला, शोकनाशक, चिन्ता मिटानेवाला और पश्चात्ताप हरनेवाला है।
५.यह उन्माद, डिप्रेशन, टेंशन मिटानेवाला, स्वास्थ्य ठीक करनेवाला, संसार का मोह मिटानेवाला, संसार की निःसारता बतानेवाला, चेतानेवाला, तीनों तापों का नाश करनेवाला और व्यवहार में परमार्थ की कला सिखानेवाला है।
६.यह गर्भपात आदि बङे-बङे महापापों से बचानेवाला, मृत्यु से बचानेवाला, आत्महत्या से बचानेवाला, दुर्घटनानाशक, बुराई रहित करनेवाला और संसारमात्र् की असीम सेवा का रहस्य बतानेवाला है।
७.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग परिवार में प्रेम से रहने की विद्या सिखानेवाला, आपसी मतभेद मिटानेवाला, खटपट मिटानेवाला, लङाई- झगङे का समाधान करनेवाला और सुख शान्ति लानेवाला है।
८.यह गऊ, ब्राह्मण, हिन्दू और हिन्दु संस्कृति की रक्षा करनेवाला, साधकों को सही रास्ता बतानेवाला, साधू और गृहस्थों को सही मार्ग बतानेवाला और साधुता सिखानेवाला है, सज्जनता सिखानेवाला है।
९.यह सत्संग अहंता ममता मिटानेवाला, भय, आशा, तृष्णा, आसक्ति आदि मिटानेवाला, काम क्रोध आदि विकारों से छुङानेवाला और त्याग वैराग्य सिखानेवाला है।
१०.श्री स्वामी जी महाराज का सत्संग परमात्मा का परमप्रेम प्रदान करनेवाला,भगवान् की लीला समझानेवाला, भक्ति का रहस्य बतानेवाला, भगवान् से अपनापन करानेवाला और परम प्रभुसे नित्य-सम्बन्ध जोङनेवाला है।
११.यह भगवत्कृपा का रहस्य बतानेवाला, सगुण- निर्गुण, साकार- निराकार का रहस्य समझानेवाला, वासुदेवः सर्वम् , समग्ररूप भगवान् का ज्ञान करानेवाला, सबका समन्वय करनेवाला, संसार और परमात्मा का भेद मिटानेवाला है।
१२.यह तर्कयुक्त (तर्कसहित), तात्त्विक और सत्य- परमात्मा का महत्त्व बतानेवाला है।
१३.यह गुरुज्ञान, तत्त्वज्ञान, ब्रह्मज्ञान तथा कर्म का रहस्य बतानेवाला, अर्थयुक्त, सारगर्भित, सर्वहितकारी, मानवमात्र् का कल्याण करनेवाला, बङा विलक्षण और अत्यन्त प्रभावशाली है।
१४.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग अपने प्रियजन की मृत्यु का शोक हरनेवाला, सम्पत्तिनाश से होनेवाला दुःख मिटानेवाला, दरिद्रतानाशक और व्यापार की कला सिखानेवाला है।
१५.यह फिज़ूलखर्च मिटानेवाला, आमदनी बढानेवाला, बरकत करनेवाला, सिखानेवाला, कञ्जूसी मिटानेवाला, सदुपयोग सिखानेवाला, लक्ष्मी लानेवाला और सौभाग्य बढ़ानेवाला है।
१६.यह मनोमालिन्य मिटानेवाला, सास-बहू में प्रेम बढ़ानेवाला, दाम्पत्य जीवन सुखमय करनेवाला, वंशवृद्धि करनेवाला, बाल बच्चों को मृत्यु से बचानेवाला और बहन बेटी की रक्षा करनेवाला है।
१७.श्री स्वामी जी महाराज का सत्संग माता- पिता, सास- ससुर आदि की सेवा करवानेवाला, शारीरिक कष्ट मिटानेवाला, जादू-टोना, देवी-देवता, प्रेत-पितर, भूत-पिशाच आदि का भय मिटानेवाला, बहम का दुःख मिटानेवाला और मिथ्या भ्रम का निवारण करनेवाला है।
१८.यह दोषदृष्टिनाशक, स्वभाव सुधारनेवाला, लोक- परलोक सुधारनेवाला, पापी का भी कल्याण करनेवाला और जीवन्मुक्ति प्रदान करनेवाला है।
१९.यह भगवान् में प्रेम बढानेवाला, भगवद्धाम की प्राप्ति करानेवाला, नित्यप्राप्त की प्राप्ति करवानेवाला और आनन्द- मङ्गल करनेवाला है।
२०.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग खान-पान शुद्ध करनेवाला, शुद्ध आचार-विचार सिखानेवाला, नियम व्रत सिखानेवाला, उत्साह बढ़ानेवाला और निराशा का दुःख मिटानेवाला है।
२१.यह सत्संग असहाय को सहायता देनेवाला, दुःखों से व्यथित की व्यथा मिटानेवाला, भीतर का दुःख मिटानेवाला और हारेहुए को सहारा देनेवाला है।
२२.यह सत्संग "जिसका कोई नहीं", उसको सहारा देनेवाला, गरीबों को अपनापन देनेवाला, अपनानेवाला, उदारता सिखानेवाला, कुरीति मिटानेवाला और गिरेहुए को ऊपर उठानेवाला है।
२३.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग सुख की नींद देनेवाला, आपस का मनमुटाव मिटानेवाला, प्रेम करानेवाला, बुराई करनेवाले की भी भलाई करनेवाला, दोष मिटानेवाला, निर्वाह की चिन्ता मिटानेवाला, और आनन्द करनेवाला है।
२४.श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का सत्संग सद्गुण सदाचार लानेवाला, शौचाचार और सदाचार सिखाने वाला है।
२५. यह चुप-साधन बतानेवाला, अपने स्वरूप से अहंता (मैं-पन,अहंकार) को अलग करके बतानेवाला, अपने अहंरहित स्वरूप का अनुभव करानेवाला और परमात्मतत्त्व में तत्काल स्थिति करानेवाला है। ■
● इस प्रकार यह सत्संग और भी अनेक प्रकार से लाभ देनेवाला है, यह तो कुछ दिग्दर्शन है।
इसमें और भी कई विलक्षणताएँ भरी हुई है। इससे बङा भारी लाभ होता है। यह भगवान् की बङी कृपा है जो हमलोग उस समय के सत्संग से आज भी वैसा ही लाभ ले सकते हैं।
*३. इस सत्संग-समुदाय में पसन्द किये गये विशेष प्रवचन जोङे गये हैं। जो अनेक वर्षोंतक सत्संग सुनते- सुनते पसन्द किये गये थे।
प्रवचन सुनते समय जब किसी प्रवचन में कोई विशेष बात समझ में आयी, तब उस प्रवचन को अलग से संग्रह के लिये रख लिया था। ऐसे अनेक प्रवचनों में से ये इकहत्तर प्रवचन चुनकर, इस सत्संग- समुदाय में जोङे गये हैं। इनमें पाँच बजे के अलावा दूसरे समय के प्रवचन भी हैं। कुछ मिनिटों के अलावा ये प्रवचन भी लगभग आधे घंटे के हैं।
(इन प्रवचनों के नामों की सूची भी बतायी गयी है। बोली गयी है।)
(१४)
"शुद्ध उच्चारण" करके गीता सीखने का उपाय-
*४. श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज द्वारा किया गया गीतापाठ अनेक प्रकार से बङा उपयोगी है। इसलिये इससे सबको लाभ लेना चाहिये।
जिनको ठीक तरह से गीता पढ़ना नहीं आता हो तो उनको चाहिये कि श्रीस्वामीजी महाराज द्वारा किये गये गीतापाठ के साथ- साथ गीतापाठ करें। इससे उनको ठीक तरह से गीता पढ़ना आ जायेगा।
जिनको गीता पढ़ना तो आता है पर शुद्ध उच्चारण करना नहीं आता, तो उनको चाहिये कि इसके साथ-साथ ध्यान देकर गीतापाठ करें। इससे उनको शुद्ध उच्चारण करना आ जायेगा, वे शुद्ध उच्चारण करके गीता पढ़ना सीख जायेंगे।
श्रीस्वामीजी महाराज से कोई पूछता कि मेरे को गीता जी के संस्कृत श्लोक शुद्ध उच्चारण करके पढ़ने नहीं आते, मैं श्लोकों का उच्चारण शुद्ध कैसे करूँ? तो श्रीस्वामीजी महाराज उनको उपाय बताते कि यहाँ, सुबह चार बजे गीताजी की टैप (कैसेट) लगती है; उसके साथ-साथ गीताजी पढ़ो।
( इस प्रकार संस्कृत श्लोकों का उच्चारण शुद्ध किया जा सकता है। इस गीतापाठ के साथ गीताजी पढ़कर कोई भी उच्चारण शुद्ध कर सकता है। )
प्रश्न-
गीताजी के संस्कृत श्लोक आदि पढ़ने में कोई गलती हो जाय तो कोई दोष तो नहीं लगेगा?
उत्तर-
नहीं लगेगा; क्योंकि पढ़नेवाले की नीयत (मन का भाव) सही है।
[इसको ठीकसे समझनेके लिये कृपया श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका यह प्रवचन सुनें- 19930620_0830_Prapti Ki Sugamta ]
ऐसा प्रश्न किसीने श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज से किया था। तब वे बोले कि आप गीताजी पढ़ो, भगवान् नीयत देखते हैं अर्थात् भगवान् देखते हैं कि इसकी नीयत गीता पढ़ने की है, पढ़ने में यह जान बूझकर गलती नहीं करता। शुरुआत में ऐसे गलतियाँ हो जाती है। भगवान् गलतियों की तरफ नहीं देखते, नीयत की तरफ देखते हैं। नीयत सही होने से गलतियाँ होनेपर भी माफ कर देते हैं।
पढते समय बालक से शुरु- शुरु में गलतियाँ होती है; परन्तु पढ़ानेवाले माफ कर देते हैं ( तभी पढ़ना होता है ; नहीं तो पढ़ना और पढ़ाना- दोनों मुश्किल हो जायेंगे)। इसलिये अशुद्ध उच्चारण की गलती के डर से गीताजी को छोड़ नहीं देना चाहिये, गीताजी पढ़नी चाहिये। हमारी नीयत गीता पढ़ने की है और ठीक तरह से नहीं पढ़ पा रहे हैं तो भी भगवान् राजी होते हैं। जैसे बालक की तोतली बातों से माता पिता राजी होते हैं, ऐसे भगवान् भी गीता पढ़ने से राजी होते हैं।
इसलिये नित्यस्तुति के बाद श्रीस्वामीजी महाराज की वाणी के साथ- साथ गीतापाठ जरूर करना चाहिये। ठीक तरह से पढ़ना न आये तो भी गीताजी पढ़नी चाहिये, पढ़ने की कोशिश करनी चाहिये। कोशिश करने से ठीक तरह से पढ़ना आ जाता है।
अधिक जानकारी के लिये यह लेख पढ़ें-
गीता का शुद्ध उच्चारण करके पढ़नेकी सुगमता।".
http://dungrdasram.blogspot.com/2016/07/blog-post.html
[ अबकी बार इस प्रबन्ध में साफ आवाज वाली गीतापाठ के श्लोक जोङे हैं। इस गीतापाठ की आवाज सिंगापुर भेजकर साफ करवायी गयी थी। ]
(१५)
माता-बहनों का प्रवेश निषेध और कारण-
*५. शीतकाल में सूर्योदय देरी से होता है। सुबह पाँच जल्दी बज जाते हैं। इस कारण सुरक्षा के लिये प्रातः पाँच बजेवाली प्रार्थना सत्संग में माता- बहनों का आना वर्जित था। वृन्दावन, ऋषिकेश आदि तीर्थस्थलों में पाँच बजे भी माताएँ बहनें आ सकती थीं। जिस गाँव या शहर में सत्संग का आखिरी दिन होता था , उस दिन भी पाँच बजे माता बहनों के लिये आने की छूट थी, वो भी सत्संग में आ सकती थीं और पाँच बजे सत्संग- स्थल का दरवाज़ा भी बन्द नहीं होता था। देरी से आनेवाले भी प्रवेश कर सकते थे।
(१६)
पाँच बजते ही "प्रार्थना-सत्संग" शुरु करने से विशेष लाभ-
*६. श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज कहते हैं कि पाँच बजते ही हम प्रार्थना शुरु कर देते हैं तो दुनियाँभर में जो प्रार्थना होती है, हम सब उनके साथ एक हो जाते हैं (अपने घर, गाँव, देश, विदेश आदि दुनियाँ भर में, जहाँ- जहाँ पाँच बजेवाली प्रार्थना होती है, वहाँ- वहाँ के सबलोग एक ही समय में होनेवाली इस प्रार्थना में एक साथ शामिल माने जाते हैं )। जितने लोग एक साथ प्रार्थना करते हैं, उतने ही गुना लाभ अधिक होता है, उनमें से प्रत्येक को उतने ही गुने अधिक लाभ मिलता है। जैसे, दस हजार लोग एक साथ में, एक बार प्रार्थना करते हैं तो उनमें से, एक एक को दस हजार बार प्रार्थना करने का लाभ, एक बार में होता है।
इसलिये यह प्रार्थना सत्संग प्रातः पाँच बजे ही करनी चाहिये, आगे- पीछे नहीं। पाँच बजे करने से ही सब एक साथ शामिल होते हैं। विदेश में रहने वालों को चाहिये कि भारत में जिस समय पाँच बजते हैं उस समय यह प्रार्थना सत्संग वाला प्रोग्राम करें।
(अगर समय पर नहीं कर पाये तो आगे-पीछे या किसी भी समय करके सत्संग का लाभ ले सकते हैं। अन्य समय में सत्संग करने का निषेध नहीं है। यह तो उस समुदाय में एक साथ शामिल होनेवालों के लिये कहा गया है।)
(१७)
सत्संग हो जाने के बाद, पर्याप्त समय तक दूसरा प्रोग्राम शुरु न करें-
*७. सज्जनों से निवेदन है कि श्रीस्वामीजी महाराज के समयमें जिस प्रकार से सत्संग होता था, आज भी उसी प्रकार से करें। इसके बीचमें और शुरुआत में तथा समाप्ति पर कोई दूसरा प्रोग्राम न जोङें। सत्संग- समाप्ति के बाद में भी पर्याप्त समय तक अन्य प्रोग्राम शुरु न करें और न दूसरी बातें करें ; क्योंकि इससे हम सत्संग में सुनी हुई कई बातें भूल जाते हैं। दूसरी बातें करने से उन्हींकी प्रधानता हो जाती है और सत्संग की बातें गौण हो जाती है। सुनी हुई बातें चली जाती है।
इसलिये सत्संग सुनने के बाद कुछ देरतक बिल्कुल चुप रहें और सत्संग की बातें हृदय में बैठने दें।
यह इकहत्तर दिनोंवाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध इस पते पर मुफ्त में मिलता है-
bit.ly/PRARTHANA_GEETAPATH
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इकहत्तर दिनों वाले प्रवचन- समुदाय का प्रबन्ध एक पहले भी किया गया था जिसकी सूची "श्रीस्वामीजी महाराज की यथावत् वाणी" नामक पुस्तक में दी गयी है। इस पुस्तक में सोलह जीबी मेमोरी कार्ड वाली, श्रीस्वामीजी महाराज की सत्संग- सामग्री की सूची भी दी गयी है। श्रीस्वामीजी महाराज के ग्यारह चातुर्मासों वाले प्रत्येक प्रवचनों के नामों की सूची दी है और अन्तिम प्रवचन आदि को यथावत् लिखा गया है, प्रवचन करते समय जैसे-जैसे श्रीस्वामीजी महाराज बोले हैं, वैसेके वैसे ही (हू- ब हू ) लिखे हुए प्रवचन इस पुस्तक में दिये गये हैं। ये सब इण्टरनेट के इस पते पर निःशुल्क उपलब्ध हैं-
bit.ly/1satsang और bit.ly/1casett
यह सामग्री हमारे यहाँ निःशुल्क मिलती है। मुफ्त में दी जाती है। यह इण्टरनेट पर भी निःशुल्क उपलब्ध है।
इण्टरनेट पर सत्संग सामग्री का और श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज का नाम लिखदें, जब अनेक प्रकार की सामग्री सामने आवे तब उनमें से अपनी इच्छित सामग्री चुनकर प्राप्त करलें, डाउनलोड करलें।
अबकी बार वाले सत्संग-प्रबन्ध में साफ़ आवाज़ वाला गीतापाठ, नये चुने हुए प्रवचन, उनके विषय और सूची, तथा अधिक जानकारी आदि और कुछ अधिक विशेषताएँ जोङी गई है। जिससे यह अधिक उपयोगी, रुचिकर और सुगम हो गया है।
यह इस पते पर निःशुल्क उपलब्ध है- ( bit.ly/PRARTHANA_GEETAPATH
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के लगातार सोलह वर्षों ( सन् 1990 से 2005 तक ) के प्रवचन, भजन, कीर्तन, नरसीजी का माहेरा, गीताजी की व्याख्या, गीता-माधुर्य, पुराने प्रवचन आदि और श्रीस्वामीजी महाराज के सिद्धान्तों आदि की जानकारी "महापुरुषोंके सत्संगकी बातें" नामक पुस्तक में दी गयी है। श्रीस्वामीजी महाराज के विषय में सही जानकारी न होने के कारण लोग कल्पित, मनगढन्त और भ्रामक बातें करने लग जाते हैं, उनका निवारण करने के लिये इस पुस्तक में सही जानकारी दी गयी है। तथा इसमें और भी उपयोगी सामग्री दी गयी है।
यह यहाँ पर निःशुल्क मिलती है-
(१८)
सत्संग के पते, ठिकाने-
श्री स्वामीजी महाराज में आवाजमें गीता-पाठ, गीता-गान(सामूहिक आवृत्ति,साफ आवाज वाली रिकार्डिंग ), 卐●गीता-पाठ●卐(स्वामी श्रीरामसुखदासजी म)सिंगापुर (में आवाज़ साफ करवायी हुई), गीता-माधुर्य, गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस कैसेटोंका सेट), 'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'[नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा व्याख्या], नानीबाईका माहेरा, भजन, कीर्तन, पाँच श्लोक(गीता ४/६-१०), तथा नित्य-स्तुति, गीता, सत्संग(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके 71 दिनोंका सत्संग-प्रवचनोंका सेट), मानसमें नाम-वन्दना, राम-कथामें सत्संग आदि तथा इनके सिवाय और भी सामग्री आप यहाँ(के इन पते-ठिकानों) से मुफ्तमें-निशुल्क प्राप्त करें-
[ 4-
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
की
सत्संग-सामग्री ( 16 GB मेमोरी-कार्ड में ) -
](4-)
bit.ly/1satsang और bit.ly/1casett
(5-)
एक ही फाइल में सम्पूर्ण गीतापाठ ( विष्णुसहस्रनामसहित )
इस पते पर उपलब्ध है- bit.ly/SampoornaGitapathSRAMSUKHDASJIM, तथा यहाँ लगभग सवा दो घंटे में सम्पूर्ण गीतापाठ ( द्रुतगति में ) भी उपलब्ध है।
(6-)
नित्य स्तुति ( प्रार्थना ), गीतापाठ और सत्संग (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के इकहत्तर दिनों वाले सत्संग- समुदाय का प्रबन्ध )-bit.ly/PRARTHANA_GEETAPATH
(1-)
http://db.tt/v4XtLpAr
(2-) http://www.swamiramsukhdasji.org
(3-)
http://goo.gl/28CUxw
नोट-
यहाँ पर श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी मोबाइल आदि पर पढने योग्य गीता साधक-संजीवनी, साधन-सुधा-सिन्धु, गीता-दर्पण आदि करीब तीस से अधिक पुस्तकें भी नि:शुल्क उपलब्ध है।
ये सब सामग्रियाँ मेमोरी कार्ड आदि में भी भर कर नि:शुल्क दी जा सकती है। ■
पहलेवाला इकहत्तर दिनोंवाला सत्संग-समुदाय नीचे दिये गये लिंक, पते द्वारा कोई भी निःशुल्क प्राप्त कर सकते हैं, डाउनलोड कर सकते हैं और सुन सकते हैं -
नं १ - goo.gl/DMq0Dc (ड्रॉपबॉक्स)
नं २ - goo.gl/U4Rz43 (गूगल ड्राइव) ।
तथा-
@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@
(- पहलेवाले इकहत्तर दिनोंके सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-)
bit.ly/NityaStutiGitaSatsang
(हरिःशरणम् (संकीर्तन) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- db.tt/0b9ae0xg )।
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(१९)
महापुरुषों को नमन -
जिन महापुरुषों ने कलियुग की जलती हुई आग से दुनियाँ को बचाया, जिन महापुरुषों ने करुणा की बरसात से दुनियाँ को शान्ति प्रदान की, जिन महापुरुषों ने भटके हुए लोगों को सही रास्ता दिखाया और उनकी रक्षा की, जिन महापुरुषों की वाणी और ग्रंथों के द्वारा असंख्य नर नारी कल्याण को प्राप्त हुए और आगे भी होते रहेंगे, जिन महापुरुषों ने दुनियाँ का बङा भारी हित किया, जिन महापुरुषों की दुनियाँ सदा ऋणी रहेंगी। ऐसे उन महापुरुषों को बारम्बार प्रणाम है। बारम्बार प्रणाम है।
जिन करुणा सागर प्रभु ने गीताप्रेस के प्रवर्तक, संस्थापक, उत्पादक,संरक्षक और हितकारक "परमश्रद्धेय सेठजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका" जैसे महापुरुषों को ऐसे अवसर भेजा तथा "श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज" जैसे महापुरुषों का सत्संग दिया, उन परम हितकारी, परम प्रभु परमेश्वर को बारम्बार प्रणाम है, प्रणाम है।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।।
राम राम राम राम राम राम राम।
राम राम राम राम राम राम राम।।
•••
इस प्रकार हमलोगों को चाहिये कि इनके द्वारा अधिक से अधिक लाभ लें और दूसरों को भी लाभ लेने के लिये प्रेरित करें।
निवेदक- डुँगरदास राम।
सीताराम सीताराम।
दीपावली, विक्रम संवत् २०७७, शुक्रवार
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/