रविवार, 24 फ़रवरी 2013

२.सत्संग(नित्य-स्तुति आदि) - स्वामी रामसुखदासजी महाराज।

।। हरि: ॥ 

 

नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके इकहत्तर

 दिनोंके सत्संग-प्रवचनोंका सेट) ।। 

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके वर्तमान समयमें प्रतिदिन सबेरे पाँच बजते ही नित्य-स्तुति,प्रार्थना होती थी फिर गीताजीके करीब दस श्लोकोंका पाठ होता था और पाठके बादमें हरिःशरणम् हरिःशरणम् आदि कीर्तन होता था.

इन सबमें करीब अठारह या बीस मिनिट लगते थे.इतनेमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज पधार जाते थे और सत्संग (प्रवचन) सुनाते थे जो प्रायः छःह(6) बजेसे 13 या17 मिनिट पहले ही समाप्त हो जाते थे।

यह सत्संग-परोग्राम कम समयमें ही सारगर्भित और अत्यन्त कल्याणकारी था। वो सब हम आज भी और उनकी ही वाणीमें सुन सकते हैं और साथ-साथ कर भी सकते हैं।


इस
(1.@NITYA-STUTI,GITA,SATSANG -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ@
नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग-

श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके ७१दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।)में वो सहायक-सामग्री है,इसलिये यह प्रयास किया गया है।

सज्जनोंसे निवेदन है कि श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके समयमें जैसे सत्संग होता था,वैसे ही आज भी करनेका प्रयास करें.इस बीचमें कोई अन्य प्रोग्राम न  जोङें।। 


उस इकहत्तर दिनोंवाले सेटका पता-ठिकाना यहाँ है।आप वो यहाँसे नि:शुल्क प्राप्त कर सकते हैं-

@नित्य-स्तुति,गीता,
सत्संग-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज@

(-इकहत्तर दिनोंके  सत्संग-प्रवचनके सेटका पता-) 
https://www.dropbox.com/sh/p7o7updrm093wgv/AABwZlkgqKaO9tAsiGCat5M3a?dl=0
सीताराम सीताराम

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(1-)
(3-)




25 टिप्‍पणियां:

  1. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है.इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं.इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी आवाजमें कई भजन,कीर्तन,नानीबाईका मायरा,विष्णुसहस्रनाम-पाठ,गीता-माधुर्य,गीता-गान(सामूहिक गीता-पाठ),गीता-पाठ, गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तकका सेट, जिसमें पूरी गीताजी समझायी गई है),मानसमें नाम-वन्दना आदि कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है.इस प्रकार ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है. डुँगरदास राम गाँव पोस्ट चाँवण्डिया जिला नागौर राजस्थान(भारत).मोबाइल नं०9414722389 तथा ई-मेल एड्रेस है- DUNGRDAS@GMAIL.COM और ब्लाँगका नाम है- सत्संग-संतवाणी

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  2. आजके जमानेका असली सत्संग है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी रिकोर्डिंग वाणी और उनकी साधक-संजीवनी आदि पुस्तकें|

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  3. चुप होनेका तात्पर्य है कि साधक स्वतः होनेवाले
    चिन्तनकी उपेक्षा कर दे, उससे उदासीन हो जाय अर्थात्
    उसको न ठीक समझे, न बेठीक समझे और न अपनेमें समझे
    तथा अपनी तरफसे कोई नया चिन्तन भी न करे । वह न
    चिन्तन करनेसे मतलब रखे, न चिन्तन नहीं करनेसे मतलब
    रखे । वह न तो किये जानेवालेका कर्ता बने और न
    होनेवालेका भोक्ता बने । ऐसा करनेसे साधक धीरे-धीरे
    अचिन्त्य हो जायगा । परन्तु अचिन्त्य होनेका, सुख
    लेनेका भी आग्रह नहीं रखना है । ऐसा होनेपर साधक
    चिन्तन करने और चिन्तन होने‒दोनोंसे रहित हो जायगा‒‘नैव
    तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन’ (गीता ३/१८)
    श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी ‘अमरताकी ओर’ पुस्तकसे

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  4. एक बार मैंने(डुँगरदासने) श्री महाराजजी(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)से पूछा कि शरीरसे स्वयं अलग है-यह अनुभव हो जानेपर शरीर कैसा दीखता है?
    श्री
    महाराजजी बोले-जैसे तेरे पहना हुआ कुर्ता दीखता है।अर्थात् जैसे तेरेको पहना हुआ कुर्ता(अंगरखी,कपङा) शरीरसे अलग दीखता है,ऐसे स्वयं(ईश्वर अंश जीव)से शरीर अलग दीखता है||

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. अननत-ब्रह्माण्डोंमें केश जितनी वस्तु भी अपनी नहीं है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगके आधार पर

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  7. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें
    दो प्रकारके रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले
    गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी महाराज बोलते हैं और पीछे
    दूसरे लोग दोहराते हैं।
    दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ
    श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज है।

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  8. थोड़ी-थोड़ी देरमें कहते रहो (मनसे,वचनसे या स्वयं-) -हेनाथ! हे मेरे नाथ!! मैं आपको भूलुँ नहीं||
    -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगके आधार पर

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  9. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र-
    राम राम राम राम राम राम राम,
    राम राम राम राम राम राम राम||

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  10. बड़े-बड़े अनुष्ठानोंसे वो काम नहीं होता जो काम प्रार्थनासे हो जाता है.
    -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के सत्संगके आधार पर

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  11. कीचक बाली गदक पुरुरवा औ पबिपाणी.
    लम्पट भये लंकेश जूत खाया जग जाणी..
    पीथल जयचन्द प्रगट मार खायी रण मीठी.
    नौ रोजी परनाळ दिल्ली गळ गई सहदीठी..
    आँख खोल देखो (अबे) जगत न सौभा जाररी.
    कोटरा कोट ढह गया किताही चौट लगी व्यभिचाररी..
    -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके प्रवचनसे

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  12. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है.इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं.इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी आवाजमें कई भजन,कीर्तन,नानीबाईका मायरा,विष्णुसहस्रनाम-पाठ,गीता-माधुर्य,गीता-गान(सामूहिक गीता-पाठ),गीता-पाठ, गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तकका सेट, जिसमें पूरी गीताजी समझायी गई है),मानसमें नाम-वन्दना आदि कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है.इस प्रकार ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है. डुँगरदास राम गाँव पोस्ट चाँवण्डिया जिला नागौर राजस्थान(भारत).मोबाइल नं०9414722389 तथा ई-मेल एड्रेस है- DUNGRDAS@GMAIL.COM और ब्लाँग- सत्संग-संतवाणी.

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  13. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है.इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं.इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी आवाजमें कई भजन,कीर्तन,नानीबाईका मायरा,विष्णुसहस्रनाम-पाठ,गीता-माधुर्य,गीता-गान(सामूहिक गीता-पाठ),गीता-पाठ, गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तकका सेट, जिसमें पूरी गीताजी समझायी गई है),मानसमें नाम-वन्दना आदि कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है.इस प्रकार ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है. डुँगरदास राम गाँव पोस्ट चाँवण्डिया जिला नागौर राजस्थान(भारत).मोबाइल नं०9414722389 तथा ई-मेल एड्रेस है- DUNGRDAS@GMAIL.COM और ब्लाँगका नाम है- सत्संग-संतवाणी.
    इनके शिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ सकते हैं.राम राम सीताराम

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  14. जैसे दूध पिलाते समय गाय अपने बछ्ड़े
    को स्नेहपूर्वक चाटती है तो उससे बछ्ड़े
    की जो पुष्टि होती है, वह केवल दूध पीनेसे
    नहीं होती। ऐसे ही भगवान् की कृपा से
    जो ज्ञान होता है, वह अपने विचार से
    नहीं होता; क्योंकि विचार करने में स्वयं
    की सत्ता रहती है। (‘साधक-संजीवनी- ७/३)

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  15. Swami Ramsukhdasji
    ‘सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।’ असत्से विमुख होनेपर
    सत् का संग हो जाता है । राग, द्वेष, ईर्ष्या आदिका जो कूड़ा-
    करकट भीतरमें भरा है, यह सत्संग नहीं होने देता ।
    ऐसा मालूम होता है कि मनुष्य चाहे तो इनका त्याग कर
    सकता है; परन्तु फिर भी इसे कठिनता Swami Ramsukhdasji
    ‘सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं ।’ असत्से विमुख होनेपर
    सत् का संग हो जाता है । राग, द्वेष, ईर्ष्या आदिका जो कूड़ा-
    करकट भीतरमें भरा है, यह सत्संग नहीं होने देता ।
    ऐसा मालूम होता है कि मनुष्य चाहे तो इनका त्याग कर
    सकता है; परन्तु फिर भी इसे कठिनता मालूम देती है;
    कबतक ? जबतक पक्का विचार न हो जाय । पक्का विचार
    करनेपर यह कठिनता नहीं रहती । चाहे जो हो, हमें तो इधर
    ही चलना है, पक्का विचार हो जाय, फिर
    सुगमता हो जाती है । ‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे मालूम देती है;
    कबतक ? जबतक पक्का विचार न हो जाय । पक्का विचार
    करनेपर यह कठिनता नहीं रहती । चाहे जो हो, हमें तो इधर
    ही चलना है, पक्का विचार हो जाय, फिर
    सुगमता हो जाती है । ‒ ‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे

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  16. Swami Ramsukhdasji

    परमात्मतत्वकी प्राप्तिमें उद्देश्यका महत्व पन्द्रह
    आना,भाव का महत्व तीन पैसा और क्रिया का महत्व एक
    पैसा है।-स्वामी श्रीरामसुखदासजी

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  17. Swami Ramsukhdasji

    मैं बार-बार ’नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते
    सत:’(गीता २/१६)-यह बात कहता हूँ,फिर भी यह
    पुरानी नहीं दीखती और इससे बड़ा लाभ होता है।
    हमारी पुनरक्ति भी ’राम-राम’ के जप की तरह
    कल्याणकारक है!-स्वामी श्रीरामसुखदासजी

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  18. www.swamiramsukhdasji.org/

    श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक) सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और इससे पहलेके(1975 से 1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है.इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके विषय भी लिखे हुए हैं.इनके सिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी आवाजमें कई भजन,कीर्तन,नानीबाईका मायरा,विष्णुसहस्रनाम-पाठ,गीता-माधुर्य,गीता-गान(सामूहिक गीता-पाठ),गीता-पाठ, गीता-व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तकका सेट, जिसमें पूरी गीताजी समझायी गई है),मानसमें नाम-वन्दना आदि कल्याणकारी उपयोगी-सामग्री उपलब्ध है.इस प्रकार ये सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे कोपी करके नि:शुल्क दी जा सकती है. डुँगरदास राम गाँव पोस्ट चाँवण्डिया जिला नागौर राजस्थान(भारत).मोबाइल नं०9414722389 तथा ई-मेल एड्रेस है- DUNGRDAS@GMAIL.COM और ब्लाँगका नाम है- सत्संग-संतवाणी.

    इनके शिवाय श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी साधक-संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें भी निःशुल्क दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट या मोबाइल पर भी पढ सकते हैं.राम राम सीताराम

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  19. श्रध्देय
    स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
    सोलह वर्षोंके तो लगातार (1990 से 2005 तक)
    सत्संग-प्रवचन उपलब्ध है और इससे पहलेके(1975 से
    1989 तकके) कई छुटपुट सत्संग-प्रवचन उपलब्ध
    है.इन (1975-2005)में कई प्रवचनोंके साथ उनके
    विषय भी लिखे हुए हैं.इनके सिवाय श्रध्देय
    स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाजकी आवाजमें
    कई
    भजन,कीर्तन,नानीबाईका मायरा,विष्णुसहस्रनाम-
    पाठ,गीता-माधुर्य,गीता-गान(सामूहिक
    गीता-पाठ),गीता-पाठ, गीता-
    व्याख्या (करीब पैंतीस दिन तकका सेट, जिसमें
    पूरी गीताजी समझायी गई है),मानसमें नाम-
    वन्दना आदि कल्याणकारी उपयोगी-
    सामग्री उपलब्ध है.इस प्रकार ये
    सारी सामग्रियाँ इण्टरनेट पर उपलब्ध
    नही है.किसीको चाहिये तो कम्प्यूटरसे
    कोपी करके नि:शुल्क(मुफ्त) दी जा सकती है.
    डुँगरदास राम गाँव पोस्ट
    चाँवण्डिया जिला नागौर राजस्थान
    (भारत).मोबाइल नं०9414722389 तथा ई-मेल
    एड्रेस है- DUNGRDAS@GMAIL.COM और
    ब्लाँगका नाम है- सत्संग-संतवाणी.
    इनके शिवाय श्रध्देय
    स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी साधक-
    संजीवनी,गीता-दर्पण,साधन-सुधा-सिन्धु,एक
    संतकी वसीयत आदि करीब तीस पुस्तकें
    भी निःशुल्क(मुफ्त)
    दी जा सकती है,जिनको कम्प्यूटर,टेबलेट
    या मोबाइल पर भी पढ सकते हैं.राम राम
    सीताराम

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  20. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका निर्वाण दिवस आषाढ कृष्णा एकादशी(११) २००५ लिखना चाहिये|
    द्वादशी(१२) लिखना उचित नहीं|
    कारण, कि निर्वाणके समय रात्रि एकादशी(११)की थी| द्वादशी(१२) का सूर्योदय हुआ ही नहीं था||

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  21. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने करीब पैंतीस दिन तक पूरी गीताजीकी व्याख्या की है अर्थात् सत्संग-प्रवचनमें
    पूरी गीताजी समझाकर कही है,जिसकी पैंतीस कैसेटें है| वो सब सीडी डीवीडी और मेमोरी कार्डमें भी उपलब्ध है|
    किसीकी इच्छा हो तो प्रतिलिपि करके निःशुल्क दी जा सकती है|

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    उत्तर
    1. मेरे को भी स्वामी जी महाराज के सत्संग पूरी शिर्डी डीवीडी या पेनड्राइव में हो ताकि मैं भी उन सब को सुनकर जीवन में उतारने की कोशिश करसकु ओर आगे में भी इस मानव कल्याण के कार्य में निस्वार्थ भाव से आप सभी के साथ जुड़े रहते भगवत प्रचार प्रसार में लग कर अपने मानव जीवन को सार्थक कर सकु जय सियाराम 99504608508

      हटाएं
  22. प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
    प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः|
    विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
    प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति||
    (मुद्राराक्षस २/१७)
    'नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं|मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं,पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं|परन्तु उत्तम गुणोंवाले  मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना (प्ररम्भ किया हुआ) कार्य छोड़ते नहीं|'
    -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे

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  23. (भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
    जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
    तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
    -श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे

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  24. एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज विराजमान हो रहे थे|ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
    मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
    तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
    (ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
    फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये-
    गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां वृजेत्|
    गीताभ्यासःपुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम्||
    (गीता महात्म्य)
    अर्थात् ,गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है,तो ] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है|

    अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
    कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
    फिर अन्दरसे बाहर सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा)के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ शुरु करवा दिया||
    यह पाठ रोजाना सत्संग-प्रवचनसे पहले होता था|

    श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-

    गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक
    (गीता ४/६-१०)-

    वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
    देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

    अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरो$पि सन् |
    प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||

    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
    धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

    जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
    त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||

    वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
    बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||

    वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
    देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||
    कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

    और फिर भगवन्नाम संकीर्तन|

    तत्पश्चात श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका संत्संग ||

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