मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(-९)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                   ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(-९)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-९.

कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणनें दोष |
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस ||

कथा-

साठिका गाँवके एक जने(शायद माताजीके भक्त,एक चारण भाई)ने सोचा कि इस गाँवको छोड़कर ओसियाँ गाँवमें चले जायँ (जो सौ कोसकी तरह दूर था)तो ज्यादा लाभ हो जायेगा;परन्तु वहाँ जाने पर पहलेसे भी ज्यादा घाटा दीखा; तब अपनी कुमतिके कारण पछताते हुए यह बात कहीं .

(हमारेमें जब दुर्बुध्दि आयी,तब यहाँसे कूदे,इस 'साठिका' गाँवको छौड़कर 'औसियाँ' गाँव जानेका निश्चय किया।जब यहाँ आकर देखा तो ऐसा लगा कि वहाँ ही(साठिकामें ही) रहते तो ठीक था; परन्तु अब क्या हो,साठिका तो वहाँ,इतनी दूर-सौ कोस रह गया।अब किसको दोष दें! यह कर्म(प्रारब्ध) तो खुदनें ही बनाया था)।

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श्रध्देय स्वामीजी श्री
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रविवार, 8 फ़रवरी 2015

भगवानसे अरदास-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                      ।।श्रीहरि:।।

भगवानसे अरदास-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे की गयी भगवानसे प्रार्थना(तारीख-23.11.1993/1800 बजेवाली) इस प्रवचन(19990123/1300) में जोड़ी गई है।वो अलगसे भी है, पर फाइल बड़ी है।

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प्रभुसे प्रार्थना।(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                     ।।श्रीहरि:।।

प्रभुसे प्रार्थना।

(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
                                
  हे नाथ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें।केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नहीं। 
    हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुःखों में डाल दें, पर आप मुझे प्यारे लगें। 
    हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूँ, ऐसी व्याकुलता आप दे दें। 
    हे नाथ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूँ। 
    हे नाथ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे कहूँ और कौन सुने?
    हे मेरे शरण्य! मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं। 
    मैं भूला हुआ कइयों को अपना मानता रहा। उनसे धोखा खाया, फिर भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें!

    हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण! हे पतितपावन! हे दीनबन्धो! हे अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे निराधार के आधार! हे अकारणकरुणावरुणालय! 
हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे असहाय के सहायक! क्या आप मेरे को जानते नहीं,मैं कैसा भड़्गप्रतिज्ञ(-भग्नप्रतिज्ञ),कैसा कृतघ्न,कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी,कैसा अकरण-करणपरायण हूँ। अनन्त दुःखों के कारणस्वरूप भोगों को भोगकर-जानकार भी आसक्त रहनेवाला,अहित को हितकर माननेवाला, बार-बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला,आपसे विमुख होकर बार-बार दुःख पानेवाला, चेतकर भी न चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?

    प्रभो! त्राहि माम्! त्राहि माम्!! पाहि माम्! पाहि माम्!! हे प्रभो! हे 
विभो! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुद्धि-प्राण-इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे कैसे हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह दशा क्या आपसे किञ्चिन्मात्र भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूँ! हे नाथ! हे नाथ!! हे मेरे नाथ!!! हे दीनबन्धो! हे प्रभो! आप अपनी तरफ से शरण में ले लें।
बस, केवल आप प्यारे लगें। 

(-परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

(श्रीपञ्चरत्नगीता, पृष्ठ १७९-१८१ से)।

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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन

                      ।।श्रीहरि:।।

फेसबुकके सदस्योंसे नम्र निवेदन-

फेसबुकके सभी सदस्योंसे विनम्र प्रार्थना है कि इसमें गन्दी,अश्लील सामग्री न भेजें।न ऐसी सामग्री साझा करें और न टैग करें।अगर कोई ऐसा करता है तो समझा-बुझाकर रोकें कि इस धार्मक-समुदायमें ऐसी सामग्री भेजते हो,तुम्हें शर्म आनी चाहिये।इसमें कई आदरणीय,पूज्य साधू-संत और माताएँ,बहनें हैं,कई परोपकारी सज्जन हैं।उन सबके सामने आप ऐसी सामग्री लाते हो! तुम्हें विचार होना चाहिये आदि आदि।फिर भी अगर वो न मानें तो तिरस्कार न करके उसको अपनी मित्रसूचीसे हटादें,जिससे कि उनकी वो सामग्री इस समुदायमें न दीखे।इस समुदायकी मर्यादा बनाये रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।यह गड़बड़ आज कलमें ही ज्यादा होने लगी है।कृपया,इस पर ध्यान दें,नहीं तो हो सकता है कि अच्छे-अच्छे लोग इसको छौड़कर अलग हो जायँ।अगर ऐसा हुआ तो यह समुदाय आदरणीय न रहकर, ऐक गन्दा समुदाय बनकर रह जायेगा और इससे समाजकी बड़ी हानि होगी,उससे बड़ा भारी नुक्सान होगा।इसलिये पहले ही चेत जाना अच्छा है।आप सबका भला हो-इसी आशाके साथ आप सबका हितैषी…।

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सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

असली मन्त्र और सरल साधन(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                 ।।श्रीहरि:।।

असली मन्त्र और सरल साधन-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)

(सबसे सरल साधन-)

आप भगवान् के हो जाओगे तो आपका सब काम भगवान् का हो जायेगा।आप भगवान् के,घर भगवान् का कुटुम्ब भगवान् का,वस्तुएँ भगवान् की -यह मानलो तो आपका सत्संग करना सफल हो गया ! सबकुछ भगवान् का मानलें -इससे सरल उपाय और क्या बताऊँ?

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'सीमाके भीतर असीम प्रकाश'४१ से)।

(असली मन्त्र-)

'हम भगवान् के हैं,भगवान् हमारे हैं' - यह असली मन्त्र है।इसे मानलो तो थोड़े दिनोंमें आपका जीवन बदल जायेगा।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'नये रास्ते नयी दिशाएँ',२१ से)।

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रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सूक्तियाँ-(७-८)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(७-८)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-७.

गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख |
ऊठ सँवारे देखियै मुरलीधरको मुख||

शब्दार्थ-

मुरलीधर(भगवान).

सूक्ति-८.

आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप |
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप ! ||

शब्दार्थ-

लिगतर(जूते).

कथा-

एक चारण भाई इस मन्दिरमें दर्शनके लिये भीतर गये,पीछेसे कोई उनके पुराने जूते(लिगतर) लै गया.तब उन्होने मुरलीधर(सबके माता पिता) भगवानसे यह बात कहीं;इतनेमें किसीने नये जूते देते हुए कहा कि बारहठजी ! ये जूते पहनलो ; मानो भगवानने दुखी बालककी फरियाद सुनली |

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सूक्तियाँ-(शुरु)श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                     ।।श्रीहरि:।।


सूक्तियाँ-(शुरु)

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

(संशोधित)

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनकर लिखी हुई जो कहावतें आदि सूक्तियाँ थीं,वो यहाँ कुछ विस्तारसे लिखी जा रहीं है।

( प्रसंग-

एक बारकी बात है कि मैंने(डुँगरदास राम ने) 'परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'को 'राजस्थानी कहावतें'नामक पुस्तक दिखाई कि इसमें यह कहावत लिखी है,यह लिखी है,आदि। तब श्री स्वामीजी महाराज ने कुछ कहावतें बोलकर पूछा कि अमुक कहावत लिखी है क्या? अमुक  लिखी है क्या? आदि:
देखने पर कुछ कहावतें तो मिल गई और कई कहावतें ऐसी थीं जो न तो उस पुस्तकमें थीं और न कभी सुननेमें ही आयी थीं |
उन दिनों महाराजजीके श्री मुखसे सुनी हुई कई कहावतें लिख ली गई थीं और बादमें भी  ऐसा प्रयास रहा कि आपके श्रीमुखसे प्रकट हुई कहावतें, दोहे, सोरठे, छन्द, सवैया, कविता, साखी आदि लिखलें।

उन दिनोंमें तो मारवाड़ी-कहावतोंकी मानो बाढ-सी आ गई थीं;कोई कहावत याद आती तो पूछ लेते कि यह कहावत लिखी है क्या |
इस प्रकार कई कहावतें लिखी गई |
इसके सिवा श्री महाराजजीके सत्संग-प्रवचनोंमें भी कई कहावतें आई है |

महापुरुषोंके श्रीमुखसे प्रकट हुई सूक्तियोंका संग्रह एक जगह सुरक्षित हो जाय और दूसरे लोगोंको भी मिले-इस दृष्टिसे कुछ सूक्तियाँ यहाँ संग्रह करके लिखी जा रही है |

इसमें यह ध्यान रखा गया है कि जो सूक्ति श्री महाराजजीके श्रीमुखसे निकली है उसीको यहाँ लिखा जाय |

कई सूक्तियोंके और शब्दोंके अर्थ समझमें न आनेके कारण श्री महाराजजीसे पूछ लिये थे, कुछ वो भी इसमें लिखे जा रहे हैं-

१-७५१ सूक्ति-प्रकाश.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज के
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक का पताः-)। 

 http://dungrdasram.blogspot.in/2014/09/1-751_33.html?m=1 

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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सूक्तियाँ-(१-३)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                  ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(१-३)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

     •संग्रह-कर्ता और भावार्थ-कर्ता-
  
                          डुँगरदास राम•

                             (संशोधित)
……………………………………………………………………

सूक्ति-०१.

[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-

[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-

रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय,सुअवसर).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

(भजन,कीर्तन आदिके समय जब सब तरफसे निद्रा घेर लेती है,नींद प्रभाव जमा लेती है, तो शरीरके अंगोंमें बड़ी पीड़ा होने लगती है,वो रँग-रस बिगड़ जाता है।ऐसे समय पर कहा गया कि हे संतों! अब सो जाइये,इस रण्डी-नींदने रँग बिगाड़ दिया)।

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पता-
सूक्ति-प्रकाश.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजके
श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि
(सूक्ति सं.१ से ७५१ तक)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/09/1-751_33.html

सूक्तियाँ-(४-६)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ-(४-६)

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

सूक्ति-४.

खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

शब्दार्थ-

खारिया(राजस्थानका एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).

भावार्थ-

अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी हवा (लहर) तो ठण्डी आती है;परन्तु पानी खारा जहर-दुखदायी है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है)।
लकड़ों-लकड़ियों पर लापसी है
(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू,इकट्ठे करनेपर) लापसीकी तरह मालुम होते हैं।पीलवाण(लता) पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा हो जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है,उसकी छायामें हवा भी ठण्डी आती है,परन्तु वहाँका पानी खारा है)|

सूक्ति-५.

मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव |

शब्दार्थ-

मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).

(कोई कवि कहते हैं कि अगर तू मरना चाहता है तो मकौळी चला जा।वहाँ मरना-भगवानसे मिलना हाथकी बात है।अगर वो पानी पायेगी नहीं तो बुखार तो पैर धौनेसे ही आ जायेगा।

सूक्ति-६.

घँट्याळी घोड़ा घणाँ आहू घणा असवार।
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ।।

(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)

शब्दार्थ-

झूँतड़ा(मकान).

('घँट्याऴी'में घौड़े बहुत है,'आउ'गाँवमें असवार,'चाखू'में चौड़े मकान और 'पड़ियाल'में पानी खूब है)।

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सूक्तियाँ-(२-३)श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।

:                 ।।श्रीहरि।।

सूक्तियाँ-(२-३)

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ)।

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायौड़ा मोती नीपजे|

शब्दार्थ-

बेळाँ(समय,सुअवसर).

अर्थ-

समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|

भावार्थ-

समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीश करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|

इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.

घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

(भजन,कीर्तन आदिके समय जब सब तरफसे निद्रा घेर लेती है,नींद प्रभाव जमा लेती है, तो शरीरके अंगोंमें बड़ी पीड़ा होने लगती है,वो रँग-रस बिगड़ जाता है।ऐसे समय पर कहा गया कि हे संतों! अब सो जाइये,इस रण्डी-नींदने रँग बिगाड़ दिया)।

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खारिये गाँवका खारा पानी(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)।

                     ।।श्रीहरि:।।

सूक्तियाँ(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ)। 

सूक्ति-४.

खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

शब्दार्थ-

खारिया(राजस्थानका एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).

भावार्थ-

अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी हवा (लहर) तो ठण्डी आती है;परन्तु पानी खारा जहर-दुखदायी है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है)।
लकड़ों-लकड़ियों पर लापसी है
(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू,इकट्ठे करनेपर) लापसीकी तरह मालुम होते हैं।पीलवाण(लता) पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा हो जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है,उसकी छायामें हवा भी ठण्डी आती है,परन्तु वहाँका पानी खारा है)|

सूक्ति-५.

मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव |

शब्दार्थ-

मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).

(कोई कवि कहते हैं कि अगर तू मरना चाहता है तो मकौळी चला जा।वहाँ मरना-भगवानसे मिलना हाथकी बात है।अगर वो पानी पायेगी नहीं तो बुखार तो पैर धौनेसे ही आ जायेगा।


सूक्ति-६.

घँट्याळी घोड़ा घणाँ आहू घणा असवार।
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ।।

(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)

शब्दार्थ-

झूँतड़ा(मकान).


('घँट्याऴी'में घौड़े बहुत है,'आउ'गाँवमें असवार,'चाखू'में चौड़े मकान और 'पड़ियाल'में पानी खूब है)।

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