।।श्रीहरि:।।
प्रभुसे प्रार्थना।
(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।
हे नाथ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे प्यारे लगें।केवल यही मेरी माँग है और कोई माँग नहीं।
हे नाथ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरक में डाल दें, सुख चाहूँ तो अनन्त दुःखों में डाल दें, पर आप मुझे प्यारे लगें।
हे नाथ! आपके बिना मैं रह न सकूँ, ऐसी व्याकुलता आप दे दें।
हे नाथ! आप मेरे हृदय में ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीति के बिना मैं जी न सकूँ।
हे नाथ! आपके बिना मेरा कौन है? मैं किससे कहूँ और कौन सुने?
हे मेरे शरण्य! मैं कहाँ जाऊँ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं।
मैं भूला हुआ कइयों को अपना मानता रहा। उनसे धोखा खाया, फिर भी धोखा खा सकता हूँ, आप बचायें!
हे मेरे प्यारे! हे अनाथनाथ! हे अशरणशरण! हे पतितपावन! हे दीनबन्धो! हे अरक्षितरक्षक! हे आर्तत्राणपरायण! हे निराधार के आधार! हे अकारणकरुणावरुणालय!
हे साधनहीन के एकमात्र साधन! हे असहाय के सहायक! क्या आप मेरे को जानते नहीं,मैं कैसा भड़्गप्रतिज्ञ(-भग्नप्रतिज्ञ),कैसा कृतघ्न,कैसा अपराधी, कैसा विपरीतगामी,कैसा अकरण-करणपरायण हूँ। अनन्त दुःखों के कारणस्वरूप भोगों को भोगकर-जानकार भी आसक्त रहनेवाला,अहित को हितकर माननेवाला, बार-बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला,आपसे विमुख होकर बार-बार दुःख पानेवाला, चेतकर भी न चेतनेवाला, जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवाय आपको ऐसा कौन मिलेगा?
प्रभो! त्राहि माम्! त्राहि माम्!! पाहि माम्! पाहि माम्!! हे प्रभो! हे
विभो! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन-बुद्धि-प्राण-इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं हैं, फिर वस्तु-व्यक्ति आदि मेरे कैसे हो सकते हैं! ऐसा मैं जानता हूँ, कहता हूँ, पर वास्तविकता से नहीं मानता। मेरी यह दशा क्या आपसे किञ्चिन्मात्र भी कभी छिपी है? फिर हे प्यारे! क्या कहूँ! हे नाथ! हे नाथ!! हे मेरे नाथ!!! हे दीनबन्धो! हे प्रभो! आप अपनी तरफ से शरण में ले लें।
बस, केवल आप प्यारे लगें।
(-परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
(श्रीपञ्चरत्नगीता, पृष्ठ १७९-१८१ से)।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
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