।।श्रीहरि:।।
सूक्तियाँ-(४-६)
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ।
सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||
शब्दार्थ-
खारिया(राजस्थानका एक गाँव),लकड़ाँ ऊपर लापसी(पीलू-पीलवाण,'जाळ' वृक्षके फल).
भावार्थ-
अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी हवा (लहर) तो ठण्डी आती है;परन्तु पानी खारा जहर-दुखदायी है(खारा पानी ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है)।
लकड़ों-लकड़ियों पर लापसी है
(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू,इकट्ठे करनेपर) लापसीकी तरह मालुम होते हैं।पीलवाण(लता) पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा हो जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है,उसकी छायामें हवा भी ठण्डी आती है,परन्तु वहाँका पानी खारा है)|
सूक्ति-५.
मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव |
शब्दार्थ-
मकोळी(एक गाँव,जिसका पानी भयंकर-बिराइजणा है,पीनेसे ऐसी शिथिलता आ जाती है कि मृत्यू भी हो सकती है.),हाथरी होळी(अर्थात् हाथकी बात).
(कोई कवि कहते हैं कि अगर तू मरना चाहता है तो मकौळी चला जा।वहाँ मरना-भगवानसे मिलना हाथकी बात है।अगर वो पानी पायेगी नहीं तो बुखार तो पैर धौनेसे ही आ जायेगा।
सूक्ति-६.
घँट्याळी घोड़ा घणाँ आहू घणा असवार।
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ।।
(यहाँ चार गाँवोंकी विशेषता बताई गई है)
शब्दार्थ-
झूँतड़ा(मकान).
('घँट्याऴी'में घौड़े बहुत है,'आउ'गाँवमें असवार,'चाखू'में चौड़े मकान और 'पड़ियाल'में पानी खूब है)।
------------------------------------------------------------------------------------------------
पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें