शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

ज्ञानगोष्ठीके सदस्योंसे चौथी बार निवेदन।

                         ॥श्रीहरि:॥

ज्ञानगोष्ठीके सदस्योंसे चौथी बार निवेदन। 

कृपया ज्ञानगोष्ठी वाले सदस्य ध्यान दें।
१.कई मैसेज एक साथ न भेजें।
२.लम्बे मैसेज न भेजें।
३.जो मैसेज आ चूके,वो बार-बार न भेजें।
४.फालतू मैसेज न भेजें।
५.मनगढंत,कल्पित,असत्य सामग्री न भेजें।
६.बिना प्रमाणकी निराधार सामग्री न भेजें।

आज कल यहाँ ऐसी अनावश्यक सामग्री भेजी जाने लगी है कि जिसको देखनेमें भी समयकी बर्बादी लगती है,पूरा पढना तो और भी दूरकी बात,पढ भी लें तो कुछ हाथ नहीं लगता, दिमागमें उलटे कचरा भरता है।
इसलिये आपलोगोंसे नम्र निवेदन है कि उपरोक्त बातोंपर ध्यान दें,नहीं तो हम सोच रहे हैं यह समूह किसी औरको सम्हलादें।
अथवा आपलोगोंको जैसा चल रहा है,वही ठीक लग रहा हो तो आपलोगोंमेंसे ही कोई इसको सम्हालनेके लिये नियुक्त हो जाइये,हमारे जँची तो हम उसको ही समूहका प्रशासक बना देंगे।

सीताराम सीताराम

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

                        ॥श्रीहरि:॥

जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

किसीने पूछा है कि जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

(ऐसे प्रश्न लोग श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगके समय भी करते थे)।

उत्तरमें निवेदन है कि-

राजा जनकजीने सीता-स्वयंवरमें आनेके लिये किसीको भी निमन्त्रण नहीं भेजा था।

उन्होने तो यह प्रतिज्ञा बहुत पहले ही करली थी, जो तीनों लोकोमें प्रसिध्द हो गई थी।

जनकजी महाराजकी प्रतिज्ञा सुन-सुनकर ही सब आये थे।(स्वर्गसे देवता,पृथ्वीमण्डलसे राजागण और पाताल लोकसे राक्षस आदि मनुष्य शरीर धारण करके आये थे)।

जैसा कि रामायणके बालकाण्डके २५१ वें दोहेकी चौपाइयोंमें लिखा है-

दीप दीप के भूपति नाना।
आए सुनि हम जो पनु ठाना॥
देव दनुज धरि मनुज सरीरा।
बिपुल बीर आए रनधीरा॥

इसके पीछे कारणस्वरूप,  मूर्खतायुक्त एक कल्पित कहानी प्रचलित है,जो कहीं लिखी हुई नहीं मिलती।पाठकोंसे निवेदन है कि उस पचड़ेके भ्रममें न पड़ें।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

मनसे एक बार रामनाम लेनेसे दसलाख रामनाम-जपका लाभ।

                       ॥श्रीहरि:॥

मनसे एक बार रामनाम लेनेसे
दसलाख रामनाम-जपका लाभ।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज कहते हैं कि साथमें चलनेवाली पूँजी है- 'भगवानका नाम लेना'।

रामनाम पूँजी पल्ले बाँधरे मन्ना।
ध्रुव बाँधी प्रह्लाद बाँधी बाँधी जाट धन्ना॥
रामनाम पूँजी पल्ले बाँधरे मना)।

अधिक जाननेके लिये कृपया यह लेख पढें-

स्त्रियोंके लिये ॐनाम लेना मना नहीं है,जप करना ही मना है। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/10/blog-post.html


सहसनाम सम सुनि सिव बानी।
जपि जेईं पिय संग भवानी॥…

(रामचरितमा.१।१९;)।

इस प्रकार भगवानके दूसरे नामोंकी अपेक्षा रामनाम हजारगुणा ज्यादा लाभदायक हुआ।

{विधियज्ञसे जपयज्ञ दसगुणा जादा लाभदायक होता है और उपांशुजप(जो होठोंसे किया जाता है,बाहर सुनायी नहीं देता) सौगुणा तथा मानसिकजप हजारगुणा ज्यादा लाभदायक होता है-मनुस्मृति }

वो(१०००-हजारगुणा) रामनाम मुखसे एक बार उच्चारण किया जाय तो (यह जपयज्ञ होनेके कारण) दसगुणा (१००००-दसहजारगुणा) ज्यादा लाभदायक होता है।

उस रामनामका उपांशु जप किया जाय अर्थात् बाहर सुनायी न देनेवाला मुखसे रामरामका उपांशुजप किया जाय तो सौगुणा(१०००००-लाखगुणा) ज्यादा लाभदायक होता है और

मनसे(मानसिक) एक बार रामनाम लिया जाय तो हजारगुणा(१००००००-दस लाखगुणा) ज्यादा लाभदायक होता है।

इस प्रकार यह सिध्द हुआ कि कोई एक बार मनसे रामनाम ले ले तो भगवानके दसलाख रामनाम आ गये (जो कि एक-एक रामनाम हजार भगवन्नमोंके बराबर हैं), अर्थात् एक बार रामका नाम मनसे ले लिया,तो दसलाख रामनामके जप हो गये।

भगवानके दूसरे नामोंका दसलाख बार जप करना और मनसे एक बार रामनाम लेना-इन दोनोंमेंसे एकबार  रामनाम लेना अधिक लाभदायक हुआ।

चाहे दसलाख बार भगवानके दूसरे नाम लो अथवा चाहे एक बार मनसे रामनाम लो,ये दोनों एक ही बात नहीं,अधिक लाभदायक बात हुई।

इसलिये एक बार मनसे रामनाम ले लो, दसलाख जप हो गये,दसलाख रामनाम होगये।

अब हिसाब करो कि जब एक रामनाम हजार भगवन्नामोंके समान है और वो रामनाम मनसे लेनेपर हजारगुणा हो जाता है, तो कितने भगन्नाम हो गये?

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

स्त्रियोंके लिये ॐनाम लेना मना नहीं है,जप करना ही मना है।

                        ॥श्रीहरि:॥

स्त्रियोंके लिये ॐनाम लेना मना नहीं है,
जप करना ही मना है।

(किसीने लिखा है कि स्त्रियोंको ॐनाम नहिं लेना चाहिये,श्रीस्वामीजी महाराज मना करते थे;परन्तु)


श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने भगवानका ॐनाम लेनेके लिये मना नहीं किया है। 

कृपया बातको ठीक तरहसे समझें।

स्त्रियों और शूद्रोंको ॐनामका जप इसलिये मना किया गया है कि यह वैदिक-मन्त्र है।वेदका अधिकार जनऊ-संस्कार होनेके बाद ही होता है।

जनेऊ-संस्कारका अधिकार द्विजाती(ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य)मात्रको ही है।

अगर संस्कार नहीं हुआ है तो पण्डितजीका बेटाभी शूद्रतुल्य माना गया है,उनको भी वेदका अधिकार नहीं है।

यथा-

जन्मना जायते शूद्र संस्काराद्द्विज उच्यते.

इसलिये जैसे स्त्रियाँ पतिका नाम नहीं लेती,पतिका नाम अटकता है,ऐसे ॐका नाम अटकता नहीं है।

यह तो भगवानका नाम है,सभीको लेना चाहिये;पर जप उन्हीको करना चाहिये  जिन्होने संस्कार करा लिया है।

श्रध्दाभक्तिपूर्वक ॐनामके उच्चारणसे जो लाभ होता है,वही लाभ रामनामके उच्चारणसे भी हो जाता है।

एक बार रामनामका उच्चारण भगवानके दूसरे हजार नामोंके बराबर माना गया है।

एक बार श्रीशंकर भगवान बोले कि हे पार्वती! आओ, भोजन करलें।

तब श्रीपार्वतीजी बोली कि हे प्रभो! मेरे तो श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रंका पाठ करना बाकी है,(आप भोजन करलें,मैं पाठ करके बादमें भोजन कर लूंगी।वे नित्य श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रवाले भगवानके हजार नाम लेकर भोजन करती थीं)।

तब श्रीशंकर भगवान बोले कि
राम राम राम-इस प्रकार मैं तो इस मनोरम राममें ही रमण करता हूँ।
हे सुमुखी पार्वती! यह रामनाम हजार नामोंके समान है।

यथा-

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने॥
                                  (पद्मपुराण)

श्रीशंकर भगवानकी यह बात सुनकर श्रीपार्वतीजीने एक बार रामनाम लिया और शंकर भगवानके साथ ही भोजन कर लिया।

पार्वतीजीके हृदयमें रामनाम आदिके प्रेमको देखकर श्रीशंकरजीने उनको अर्ध्दांगमें (आधे अंगमें)धारण कर लिया। 

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सहसनाम सम सुनि सिव बानी।
जपि जेईं पिय संग भवानी॥

हरषे हेतु हेरि हर हीको।
किय भूषन तिय भूषन तीको॥

(रामचरितमा.१।१९;)।

नारदजीको तो भगवानने माँगनेपर यह वरदान ही दे दिया कि रामनाम सबसे श्रेष्ठ होगा- 

राम सकल नामन्हते अधिका।
होउ नाथ अघ खगगन बधिका॥
+
एवमस्तु मुनि सन कहेउ…

(रामचरिमा.३।४२;) आदि।

इस प्रकार भगवानके दूसरे
नामोंकी अपेक्षा रामनाम सबसे बढकर है

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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