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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2015

जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

                        ॥श्रीहरि:॥

जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

किसीने पूछा है कि जनकजी महाराजने सीता-स्वयंवरमें राजा दशरथजीको निमन्त्रण क्यों नहीं भेजा?

(ऐसे प्रश्न लोग श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगके समय भी करते थे)।

उत्तरमें निवेदन है कि-

राजा जनकजीने सीता-स्वयंवरमें आनेके लिये किसीको भी निमन्त्रण नहीं भेजा था।

उन्होने तो यह प्रतिज्ञा बहुत पहले ही करली थी, जो तीनों लोकोमें प्रसिध्द हो गई थी।

जनकजी महाराजकी प्रतिज्ञा सुन-सुनकर ही सब आये थे।(स्वर्गसे देवता,पृथ्वीमण्डलसे राजागण और पाताल लोकसे राक्षस आदि मनुष्य शरीर धारण करके आये थे)।

जैसा कि रामायणके बालकाण्डके २५१ वें दोहेकी चौपाइयोंमें लिखा है-

दीप दीप के भूपति नाना।
आए सुनि हम जो पनु ठाना॥
देव दनुज धरि मनुज सरीरा।
बिपुल बीर आए रनधीरा॥

इसके पीछे कारणस्वरूप,  मूर्खतायुक्त एक कल्पित कहानी प्रचलित है,जो कहीं लिखी हुई नहीं मिलती।पाठकोंसे निवेदन है कि उस पचड़ेके भ्रममें न पड़ें।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/