रविवार, 29 दिसंबर 2013

सूक्तियाँ (संख्यामें) १-१०

                         ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)
सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |

सूक्ति-०२.
बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

सूक्ति-५.
मौत चावे तो जा मकोळी,
हरसूँ मिले हाथरी होळी,
पीहीसी नहीं तो धोसी पाँव,
मरसी नहीं तो आसी(चढसी) ताव|

सूक्ति-६.
घंट्याळी घोड़ घणाँ आहू घणा असवार|
चाखू चवड़ा झूँतड़ा पाणी घणो पड़ियाळ||
झूँतड़ा(मकान).

सूक्ति-७.
गारबदेसर गाँवमें सब बाताँरो सुख|
ऊठ सँवारे देखिये मुरलीधरको मुख||
सूक्ति-८.
आयो दरशण आपरै परा उतारण पाप|
लारे लिगतर लै गयो मुरलीधर माँ बाप!||
लिगतर(जूते).

सूक्ति-९.
कुबुध्द आई तब कूदिया दीजै किणने दोष|
आयर देख्यो ओसियाँ साठिको सौ कोस||
सूक्ति-१०.
आप कमाया कामड़ा दीजै किणने दोष|
खोजेजीरी पालड़ी काँदे लीन्ही खोस||

सूक्ति-४. खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर| लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

भावार्थ-
अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी लहर(हवा) तो ठण्डी आती है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है),लकड़ियों पर लापसी है(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू) लापसीकी तरह मालुम होते हैं ,पीलवाण पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है ),
परन्तु पानी खारा जहर(की तरह) है

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

सूक्तियाँ-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई सूक्तियाँ,कहावतें आदि

सूक्ति-३.घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग| साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-०२.बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

अर्थ-
समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|
भावार्थ-
समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीस करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|
इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

÷सूक्ति-प्रकाश÷ -स्वामी रामसुखदास | (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि-)|

                         ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)

•भावार्थ कर्ता-डुँगरदास•

…………………………………………………

                 ÷सूक्ति-प्रकाश÷

                स्वामी रामसुखदास

सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-
[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-
रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

सूक्ति-०२.

बेळाँरा बायोड़ा मोती नीपजे|

अर्थ-
समय (अवसर) पर बोया हुआ मोती उत्पन्न होता है|
भावार्थ-
समय पर जो काम किया जाता है,वो बहुुत कीमती होता है| जब वर्षा होती है तब खेती करनेवाले जल्दी ही बीज बोनेकी कोशीस करते हैं और कहते हैं कि देर मत करो;गीली,भीगी हुई धरतीमें बीज बो दोगे तो मोतीके के समान कीमती और बढिया फसल होगी|
अगर एक-दो दिनकी भी देरी करदी जाय,तो वैसी फसल नहीं होती;ज्यों-ज्यों देरी होती है,त्यों-त्यों कम होती जाती है|
इसी प्रकार भगवद्भजन,सत्संग आदि शुभ कामोंमें भी देरी नहीं करनी चाहिये|समय पर करनेसे बहुत बड़ा लाभ (परमात्मप्राप्तिका अनुभव) हो जायेगा|

सूक्ति-३.
घेरा घाल्या नींदड़ी, अर भागण लागा अंग|
साधराम अब सो ज्यावो राँड बिगाड़्यो रंग||

सूक्ति-४.
खारियारे खारिया! (थारी) ठण्डी आवे लहर|
लकड़ाँ ऊपर लापसी (पण) पाणी खारो जहर||

भावार्थ-
अरे खारिया गाँव ! तुम्हारी लहर(हवा) तो ठण्डी आती है(खारा पानी  ठण्डा होता है और ठण्डेकी हवा भी ठण्डी होती है),लकड़ियों पर लापसी है(जाळ-पीलवाणके पक्के हुए फल(पीलू) लापसीकी तरह मालुम होते हैं ,पीलवाण पेड़के सहारे पेड़ पर चढ जाती है,अगर वो पेड़ सूखकर लकड़ा जाता है तो भी पीलवाणके कारण हरा दीखता है ),
परन्तु पानी खारा जहर(की तरह) है

रविवार, 1 दिसंबर 2013

सूक्ति-०१.[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |

                                    ||श्री हरिः||      
    
                        ÷सूक्ति-प्रकाश÷

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके श्रीमुखसे सुनी हुई कहावतें आदि)

भावार्थ कर्ता-डुँगरदास•

…………………………………………………

सूक्ति-०१.
[रातमें] दूजा सोवे,अर साधू पोवे |
अर्थ-
[रात्रिमें]दूसरे सोते हैं और साधू पोते हैं
भावार्थ-
रातमें दूसरे तो सोते हैं और साधू-संत,गृहस्थी संत,साधक आदि पोते हैं अर्थात् भगवद्भजन आदि करते हैं और जिससे दूसरोंका हित हो,कल्याण हो,वो उपाय करते हैं|

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

संत-वाणीकी रक्षा करें

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें ...
इसी प्रकार कोई भी फोल्डर,सेट या सामग्री पूरी लोड करनी चाहिये,अधूरी नहीं रखनी चाहिये;क्योंकि ऐसे अधूरी सामग्री लोड करनेसे या कोपी(प्रतिलिपी) करनेसे कभी-कभी वो अधूरी ही रह जाती है| कारण,कि एक तो ऐसी सत्संग आदिकी सामग्रीमें रुचि रखनेवाले लोग कम है और उनमें भी ऐसी जानकारीकी कमी है|
दूसरी बात,कि कई लोग लापरवाही रखनेवाले होते हैं,बेपरवाही करते हैं,अधूरीको पूरी करनेका परिश्रम नहीं करते और कई तो पूरीको भी अधूरी कर देते हैं|इससे बड़ा नुक्सान होता है,महापुरुषोंकी वाणीका सेट बिखरता है और मूल-सामग्री दुर्लभ होती चली जाती है,जिससे लोगोंके कल्याणमें बड़ी कठिनता होती है,जो कि महापुरुषोंको पसन्द नहीं है|
इसलिये महापुरुषोंकी वाणीको यथावत रखनेका प्रयास करना चाहिये,इससे लोगोंको सुगमतासे उत्तम,असली चीज मिल जायेगी और उनका सुगमता-पूर्वक तथा जल्दी कल्याण हो जायेगा||
सीताराम सीताराम ||

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

पहले गीता-पाठका पता- स्वर (-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

पहला गीता-पाठ

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ
करनेका लाभ ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
पहला गीता-पाठ(नई रिकोर्डिंग) यहाँसे प्राप्त करें - http://db.tt/umrsxMnU

हरिःशरणम्(संकीर्तन-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें)!

हरिःशरणम्(संकीर्तन-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें)!

प्रातः पाँच बजे श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकार्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति,प्रार्थना और दस श्लोक गीताजीके पाठ कर लेनेके बाद यह -हरिः शरणम् (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें ही) सुनें और साथ-साथ बोलें,इसके बाद सत्संग जरूर सुनें(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग सुनें) l

हरिःशरणम् यहाँ(इस पते) से प्राप्त करें-
https://db.tt/0b9ae0xg

छःप्रकारके नौकर

काम करनेवाले (नौकर अथवा सेवक) छः प्रकारके होते हैं -
पीर तीर चकरी पथर और फकीर अमीर |
जोय-जोय राखो पुरुष ये गुण देखि सरीर ||

१)पीर -इसे कोई काम कहें तो यह उस बातको काट देता है, २)तीर -इसे कोई काम कहें तो तीरकी तरह भाग जाता है,फिर लौटकर नहीं आता,३)चकरी-यहचक्रकी तरह चट काम करता है,फिर लौटकर आता है,फिर काम करता है|यह उत्तम नौकर होताहै,४)पथर-यह पत्थरकी तरह पड़ा रहता है,कोई काम नहीं करता,५)फकीर-यह मनमें आये तो काम करता है अथवा नहीं करता,६)अमीर-इसे कोई काम कहें तो खुद न करके दूसरेको कह देता है|
(इसलिये मनुष्यको सेवकमें ये गुण देखकर रखना चाहिये)|
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी पुस्तक 'अनन्तकी ओर'से इसका यह अर्थ लिखा गया.

हरिःशरणम्( श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें)

हरिःशरणम्( श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें)|
प्रातः पाँच बजे श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें (रिकार्डिंग वाणीके साथ-साथ) नित्य-स्तुति,प्रार्थना और दस श्लोक गीताजीके पाठ कर लेनेके बाद यह -हरिः शरणम् (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें ही) सुनें और साथ-साथ बोलें,इसके बाद सत्संग जरूर सुनें(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग सुनें) l
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सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

पहला गीता-पाठ इस पतेसे प्राप्त करें-

पहला गीता-पाठ इस पतेसे प्राप्त करें-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ
करनेका लाभ ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
पहला गीता-पाठ यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें -
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शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

पाँच श्लोक पाठ और आवाज (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज )

                          ।।श्रीहरि।।

पाँच श्लोक पाठ और आवाज

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा शुरु करवाये हुए गीताजी(४/६-१०)के
पाँच श्लोकोंका उन्हीकी आवाजमें पाठ यहाँसे प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

नया आविष्कार(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                    ।।श्रीहरि:।।

नया आविष्कार-

श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजने
सरल,श्रेष्ठ और जल्दी सिध्द
होनेवाले साधनका आविष्कार किया है-

भगवानमें अपनापन।

इसलिये एक बार सरल हृदयसे दृढतापूर्वक यह स्वीकार करलें कि

(१)मैं केवल भगवानका ही हूँ
(२)और(दूसरे) किसीका नहीं
(३)केवल भगवान ही मेरे अपने हैं तथा
(४)और(दूसरा) मेरा कोई नहीं है।

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संगसे

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

खास काम

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी रिकोर्डिंग वाणीसेे सत्संग करें और उनके गीता साधक-संजीवनी आदि ग्रंथ पढें-
https://db.tt/v4XtLpAr 

यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

विशेष-प्रवचन-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

                     ।।श्रीहरि:।।

विशेष-प्रवचन।

'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके विशेष कैसेटोंके ७१ सत्संग-प्रवचन चुने गये हैं।इनके नाम (विषय) भी लिखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।

वो ७१ प्रवचन यहाँ(इस पते)से) प्राप्त करें- 
http://db.tt/FzrlgTKe

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

पुराने-प्रवचन-परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन

परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के जो प्रवचन छूट गये थे (जो कि इन्टरनेट पर दूसरी जगह सब उपलब्ध नहीं हैं ), उनमें से कुछ प्रवचन पोस्ट(अपलोड) किये गये हैं | डाउनलोड करने के लिए इन लिंक(Link) पर क्लिक करें |


सोमवार, 2 सितंबर 2013

भगवत्कृपा

(भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे

शनिवार, 31 अगस्त 2013

पता-(सत्संग,गीता आदिका)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराजके सत्संग,गीता आदिका पता

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराजका सत्संग ( SATSANG GITA AADI -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ )और गीता-पाठ,गीता-गान(सामूहिक आवृत्ति),गीता-माधुर्य(उन्हीकी आवाजमें),गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस दिनोंका सेट),कल्याणके तीन सुगम मार्ग[नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा व्याख्या],नानीबाईका माहेरा,भजन,कीर्तन,पाँच श्लोक(गीता ४/६-१०),गीता 'साधक-संजीवनी' तथा नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
71दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट),मानसमें नाम-वन्दना आदि आप यहाँके इस पतेसे प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

तीन प्रकारके मनुष्य

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः|
विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति||
(मुद्राराक्षस २/१७)
'नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं|मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं,पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं|परन्तु उत्तम गुणोंवाले  मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना (प्ररम्भ किया हुआ) कार्य छोड़ते नहीं|'
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे

दृढता

निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्षमीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् |
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ||
(भर्तृहरिनीतिशतक)
'नीति-निपुण लोग निन्दा करें अथवा स्तुति(प्रशंसा),लक्षमी रहे अथवा जहाँ चाहे चली जाय और मृत्यु आज ही हो जाय अथवा युगान्तरमें,अपने उध्देश्यपर दृढ रहनेवाले धीर पुरुष न्यायपथसे एक पग भी पीछे नहीं हटते|'
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे

बुधवार, 28 अगस्त 2013

पता-नानीबाईका माहेरा (गायक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)|

                     ।।श्रीहरि:।।

नानीबाईका माहेरा।

गायक-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

कभी-कभी श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भक्त नरसिंह(नरसीजी) मेहताका माहेरा सुनाते थे,जिसको लोग बड़े राजी होकर सुनते थे।

वो बड़ा रोचक,हास्यप्रद तथा भक्तिमय होता था।

यह काव्य मारवाड़ी भाषामें होते हुए भी अन्य भाषावालोंको भी बड़ा प्रिय है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज इसको गाकर सुनाते और फिर हिन्दीभाषामें अर्थ भी बताते थे तथा साथ-साथ सत्संग भी कराते थे।

इस प्रकार वो बड़ा कीमती,रहस्यमय,आनन्ददायक,प्रेरणाप्रद और समझनेमें बड़ा सुगम था।

वो प्रोग्राम चार,पाँच या छः दिन तक चलता था।

यह रिकोर्डिंग छः दिनोंवाली है(जो कोलकातामें हुई थी)।

सुगमताके लिये इसकी अड़ताळीस फाइलें बनाई है और उनके नाम भी हिन्दीमें लिख दिये गये हैं।

इसमें साफ आवाजवाली सामग्रीका उपयोग किया गया है।

इसका नाम रखा है -'

"1@NANIBAIKA MAHERA -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAAHARAJ@"

इसको यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/mgMy966T

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

बुधवार, 14 अगस्त 2013

गीता-माधुर्य(की रिकोर्डिंगका पता-)[लेखक और स्वर (बोलनेवाले)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज]।

गीता-माधुर्य

(की रिकोर्डिंगका पता-)

[लेखक और स्वर (बोलनेवाले)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज]।-


रिकोर्डिंग पाठका  पता- http://db.tt/ylSe6rQi


श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने प्रश्नोत्तर-शैलीमें गीताजी समझायी है।

उसमें श्लोकके अर्थसे से पहले प्रश्न लिखा है और उत्तरमें उस श्लोकका अर्थ लिखा है,जिससे गीताजी समझनेमें बड़ी सुगम और रुचिकर हो गई है।

इसका नाम है-'गीता-माधुर्य।

इसमें सिर्फ हिन्दी अर्थ है,संस्कृत श्लोक नही है,इसलिये कम पढे-लिखे मनुष्य भी इसको सुगमतासे समझ सकते हैं,वैसे यह बड़े-बड़े गीता-विशारदोंको भी सरलतासे गीताका रहस्य बताती है।

यह नित्य पाठ करने लायक है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाज(स्वर)में इसकी रिकोर्डिंग है[इसके कुछ श्लोक(१४/१-२७,१५/१-५) कट गये हैं,किसी सज्जनके पास हों तो सूचना दें,बड़ी सेवा हो जायेगी] 

महापुरुषोंकी वाणी(स्वर)का महत्त्व समझनेवालोंके लिये तथा गीता और वाणीके प्रेमीजनोंके लिये यह बड़े कामकी वस्तु है।


गीता-माधुर्य (की रिकोर्डिंग) यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें- http://db.tt/ylSe6rQi


यह ग्रंथ गीता-प्रेस गोरखपुरसे प्रकाशित हुआ है और इंटरनेट पर भी उपलब्ध है-
http://www.swamiramsukhdasji.org/

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पता-
सत्संग-संतवाणी. 
श्रध्देय स्वामीजी श्री 
रामसुखदासजी महाराजका 
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। 
http://dungrdasram.blogspot.com/



पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज…

                   ।।श्रीहरिः।। 


पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-

एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज एकान्त में अकेले ही विराजमान थे|

ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|

मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?

(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|

फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये

(बहुत पहले कि बात है कि एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से एक हैड मास्टर ने पूछा कि मनुष्य को कम- से कम क्या कर लेना चाहिये?

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज ने बताया कि मनुष्य को कर तो लेना चाहिये अपना कल्याण। तत्त्वज्ञान। भगवान् का परम प्रेम प्राप्त कर लेना चाहिये। परन्तु इतना न हो सके तो कम- से कम इतना तो कर ही लेना चाहिये कि मनुष्य जन्म से नीचा न चला जाय (मनुष्य जन्म से नीचे न गिर जाय)। 

अर्थात् इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति न कर सके तो मरने के बाद वापस मनुष्य जन्म मिल जाय। पशु-पक्षी,कीट-पतंग आदि नीच योनियों में न जाना पङे। इतना तो कर ही लेना चाहिये। 

(तब उन्होंने पूछा कि)  इसका क्या उपाय है (कि वापस मनुष्य जन्म ही मिल जाय)?

इसके उत्तर में श्री स्वामी जी महाराज बोले कि गीता याद (कण्ठस्थ) करलें। गीता पाठ करें ।  क्योंकि-

गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां व्रजेत् ।।१६।।
गीताभ्यासं पुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम् ।

(वराह पुराण, गीता माहात्म्य)

अर्थात्, गीता-पाठ करनेवाला [अगर मुक्ति होनेसे पहले ही मर जाता है, तो] मरनेपर फिर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्तिको प्राप्त कर लेता है)। 19930714_0518_Parlok Ki Chinta Kare Swabhav Sudhar ( परलोक की चिंता करे स्वभाव सुधार, यह प्रवचन सुनें) अस्तु। 

(इसलिये हमलोगों को चाहिये कि गीताजी याद करलें  और गीताजी का पाठ करें )।  

[ पूरी गीता का तो कहना ही क्या, गीताजी के तो एक अध्याय का भी बङा माहात्म्य है। एक श्लोक या आधे श्लोक अथवा चौथाई श्लोक (एक चरण) का भी बङा माहात्म्य है।

इसलिये हमलोगों को चाहिये कि कम-से कम गीता जी के पाँच श्लोकों का तो पाठ कर ही लें ]।

अब गीताजीके कौन-कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|

फिर अन्दरसे बाहर, सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा) के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ (करना) शुरु करवा दिया||

(यह पाठ रोजाना सत्संग- प्रवचनसे पहले होता था|)

पाँच श्लोक आदिका पाठ उन महापुरुषों('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज') की ही आवाजके साथ- साथ करेंगे तो अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूपमें अत्यन्त लाभ होगा।  

( श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लोक-कल्याण- हित शुरु करवाये हुए  गीताजी(४/६-१०) के पाँच श्लोकोंका उन्हीकी आवाजमें पाठ यहाँसे प्राप्त करें- https://db.tt/moa8XQh7 )

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके बताये हुए और लोक-कल्याण हित नित्य-पाठके लिये शुरु करवाये हुए-

● गीताजीके नित्य-पठनीय पाँच श्लोक ●

(गीता ४/६-१०)-

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतनामीश्वरोऽपि सन् |
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया||

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्||

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः |
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन||

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः |
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ||

वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् |
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ||

और फिर भगवन्नाम संकीर्तन|

तत्पश्चात श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका संत्संग (होता था) ||

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पता-
सत्संग- संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

दूसरे गीता-पाठका पता- स्वर (-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

दूसरा गीता-पाठ-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें दो प्रकारके
रिकोर्ड किये हुए गीता-पाठ उपलब्ध है।पहले गीता-पाठमें आगे श्री स्वामीजी
महाराज बोलते हैं और पीछे दूसरे लोग दोहराते हैं।
दूसरे प्रकारके गीता-पाठमें सिर्फ श्री स्वामीजी महाराज बोलते(पाठ करते) है।
महापुरुषोंकी वाणीके साथ पाठ करनेवालेको अचिन्त्य-लाभ होता है।
श्री स्वामीजी महाराजकी आवाज(वाणी)के साथ-साथ पाठ करके हम उनके
संगी(सत्संगी) बन जाते हैं।
गीताका प्रचार करनेवाला भगवानको अत्यन्त प्यारा होता है (गीता 18.68,69)।
इस प्रकार हम गीता-प्रचारमें सम्मिलित होकर भगवानके अत्यन्त प्यारे बन जाते हैं।
श्री स्वामीजी महाराजका कहना है कि जितने लोग एक साथ पाठ करते हैं,उतना
ही गुना अधिक लाभ होता है।जैसे,सौ लेग एक साथ बैठकर पाठ करते हैं तो
एक-एकको सौ-सौ गुना अधिक लाभ होगा अर्थात् एक जनेको सौ पाठ करनेका लाभ
होगा,दूसरे आदमीको भी सौ पाठ करनेका लाभ होगा और तीसरे आदमीको भी सौ पाठ
करनेका लाभ होगा।इस प्रकार हम महापुरुषोंके साथ एक पाठ करके सौ पाठ
करनेका लाभ ले लेते हैं।
इसके सिवा और भी अनेक लाभ है।....
दूसरा गीता-पाठ यहाँ(इस पते)से प्राप्त करें - http://db.tt/L5hJrHtt

गीता-व्याख्या।व्याख्याता-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराज।

                        ।।श्रीहरि:।।

@गीता-व्याख्या@

व्याख्याता-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराज।

एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराजसे प्रार्थना की गयी कि सत्संग-प्रवचनोंमें गीताजीकी व्याख्या करके समझावें।गीताजीका अर्थ करके,अर्थ समझाकर,विस्तारसे सत्संगमें सुनावें।

तब उन्होने करीब पैंतीस दिनतक गीताजी समझाकर कही,जिसकी अभी(१४.८.२०१३)तक पुस्तक नहीं छपी है।

यह गीता-व्याख्या गीता"साधक-संजीवनी" ग्रंथ लिखनेके बाद की गयी है

(इसलिये यह मानकर संतोष नहीं कर लेना चाहिये कि इसकी पूरी बातें सधक-संजीवनीमें तो आ ही गयीं,प्रत्यूत इस पूरी व्याख्याको सुनना चाहिये)।

उसकी रिकोर्डिंग(१२४ फाइलोंमें) है।

वो गीता-व्याख्या यहाँ(इस पतेसे)से प्राप्त करें-
http://db.tt/C65YU58m

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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सोमवार, 12 अगस्त 2013

पुरानी सत्संग(-सामग्री)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन

श्रध्देय  स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के जो प्रवचन छूट गये थे (जो कि इन्टरनेट पर दूसरी जगह सब  उपलब्ध नहीं हैं ), उनमें से कुछ (१९७५-१९८९ के बीचवाले) प्रवचन और कुछके विषय हिन्दीमें लिखे गये हैं,वो पोस्ट(अपलोड) किये गये हैं | डाउनलोड करने के लिए इस लिंक(Link) पर क्लिक करें |





रविवार, 4 अगस्त 2013

नित्य पठनीय पाँच श्लोकोंका इतिहास

एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज विराजमान हो रहे थे|ऐसा प्रतीत होता था कि किसी विचारमें हैं(विचार मग्न हैं)|
मैंने(डुँगरदासने) पूछा कि क्या बात है?
तब उत्तरमें चिन्ता और खेद व्यक्त करते हुएसे बोले कि इन लोगों की क्या दशा होगी?
(ये सत्संग करते हैं,सुनते हैं,पर ग्रहण नहीं कर रहे हैं,कल्याणमें ढिलाई कर रहे हैं,बातोंकी इतनी परवाह नहीं कर रहे हैं आदि आदि)|
फिर बताया कि कमसे कम इनकी दुर्गति न हों,इसके लिये क्या करना चाहिये कि गीताजीके कुछ श्लोकोंका पाठ करवाना चाहिये-गीता पाठ समायुक्तो मृतो मानुषतां वृजेत्|
गीताभ्यासःपुनः कृत्वा लभते मुक्तिमुत्तमाम्||(गीता महात्म्य)
अर्थात् गीता-पाठ करनेवाला [मुक्ति होनेसे पहले] मरनेपर मनुष्य ही बनता है और फिर गीता अभ्यास करता हुआ उत्तम मुक्ति पा जाता है|
अब गीताजीके कौनसे श्लोकोंका पाठ करना चाहिये?
कि अवतार-विषयक(गीता ४/६-१०) श्लोकोंका पाठ बढिया रहेगा|
फिर अन्दरसे बाहर सत्संगमें पधारे तथा लोगोंसे कह कर रोजाना(हमेशा)के लिये इन पाँच श्लोंकों (गीता४/६-१०) का पाठ शुरु करवा दिया||
यह पाठ सत्संग-प्रवचनसे पहले होता था|


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पता-सत्संग-संतवाणी. श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/