मंगलवार, 27 सितंबर 2016

बिगड़े वाक्य और चित्र इस श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग वाले समूहमें कृपया न भेजें।

                    ॥श्रीहरिः॥

बिगड़े वाक्य और चित्र  इस (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के) सत्संग वाले समूहमें कृपया न भेजें।

ये जो चित्रों पर श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से किसी ने कलाकारी और रंग देकर वाक्य बना कर अनधिकार चेष्टा की है - यह ठीक नहीं है।

इनमें श्री स्वामीजी महाराज की भाषा के अनुसार वाक्य भी नहीं है, बिगड़ गये हैं और अधूरे हैं।

  जिन चित्रों पर ये काँट छाँट की गई है, वे चित्र भी असली नहीं रहे-बिगड़ गये हैं।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है। 

विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक या प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो और वो ही हमें स्वीकार है ; अन्य नहीं।

इसलिये  इन वाक्यों वाले चित्र कृपया इस श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग वाले समूहमें न भेजें। 

{कोटेशन, सत्संग वाक्य बनाने वाले जो हैं,उन्होंने क्या पता कि किसी पुस्तक से लेकर लिखा है या अपने अनुमान से लिखा है?
आजकल ऐसी प्रवृत्ति देखने में आती है कि वाणी तो हो किसी और की तथा उसपर नाम लिख देते हैं किसी और का।
ऐसे ही कोई अपने मनसे गढ़कर लिख देते हैं और उसपर नाम किसी ग्रंथ या संत का लिख देते हैं। ऐसे कोई भी कुछ लिखदे,क्या पता लगे?
जिस वाणी का पता ठिकाना नहीं, उसका और ऐसी रिवाज का प्रचार करना उचित नहीं लगता।

वाट्स एप्प पर भेजे गये ओडियो- प्रवचनों की ऊपर लिखी तारीख और प्रवचन का विषय मिट जाता है। इसलिये ओडियो भेजने पर तारीख लिखना लाभदायक रहता है। उसको देखकर लोग अपने पास संग्रहीत प्रवचनों में से सुन लेते हैं या उस प्रवचन का विषय देखकर उनको यह तै करने में सहायता मिलती है कि यह हमारे सुना हुआ है या नहीं? अथवा यह सुनें या नहीं।
कई लोग वाट्स एप्प पर भेजे गये प्रवचनों को डाउनलोड नहीं करते हैं।
उनको तारीख और विषय देखने पर प्रवचन को डाउनलोड करने और सुनने की प्रेरणा मिलती है}। 

अधिक जानने के लिए कृपया इस पते (ठिकाने) पर देखें -

महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें -

http://dungrdasram.blogspot.in/2014/01/blog-post_17.html?m=1

संत-वाणी यथावत रहने दें,संशोधन न करें|

('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html?m=1

बुधवार, 21 सितंबर 2016

भगवान के दर्शन की बात।(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरिः॥

भगवान के दर्शन की बात।

(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

एक बालक ने श्रध्देश्रद्धेय  स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से पूछा कि आपको भगवान के दर्शन हुए हैं क्या?

जवाब देते हुए तर्क की मुद्रा में श्री स्वामीजी महाराज बोले कि तुम अपना खजाना बताते हो क्या?

बालक समझ भी नहीं पाया और बोल भी नहीं पाया कि अब क्या कहना चाहिये। फिर किसीने बालक को वहीं रोक दिया।

श्री स्वामीजी महाराज का कहना है कि 'जब लोग अपने लौकिक धन को भी (हरेक को) बताना नहीं चाहते, बताने योग्य नहीं समझते, तो फिर अलौकिक धन, पारमार्थिक खजाना (भगवान् के दर्शन आदि ) बताने योग्य है! अर्थात् हरेक को बताने योग्य नहीं है।' 

लोगों को अगर कह दिया जाय कि हाँ मेरे को भगवान के दर्शन हुए हैं तो लोगों के जँचेगी नहीं, उलटे तर्क पैदा होगा। दोषदृष्टि करेंगे। (इससे उनका नुक्सान होगा)।

(लोगों को बताने से विघ्न बाधाएँ भी आती है-)।

सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका ने कहा है कि भक्त प्रह्लाद की भक्ति में इतनी बाधाएँ इसलिये आयीं कि उन्होंने भक्ति को (लोगों के सामने) प्रकट कर दिया था। (अगर प्रकट न करते तो इतनी बाधाएँ नहीं आतीं)।

श्री सेठजी ने भी गुप्त रीति से ही साधन किया है और सिद्धि पायी है।

चूरू की हवेली के ऊपर कमरे में उनको चतुर्भुज भगवान विष्णु के दर्शन हुए थे।

श्री स्वामीजी महाराज ने वहाँ पधार कर वो जगह बताई थी कि यहाँ श्री सेठजी को भगवान के दर्शन हुए थे।

श्री सेठजी मुँह पर चद्दर ओढ़े सो रहे थे उस समय भगवान् ने दर्शन दिये। कह, ऊपर चद्दर ओढ़ी होने पर भी भगवान दिखलायी कैसे पड़ रहे हैं?

उन्होंने चद्दर हटा कर देखा तो भगवान वैसे ही दिखाई दिये , जैसे चद्दर के भीतर से (साफ) दीख रहे थे। बीच में चद्दर की आड़ होने पर भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ा।

श्री सेठजी कहते हैं कि ऐसे चाहे बीच में पहाड़ भी आ जाय तो भी भगवान के दीखने में कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

यह बात प्रसिद्ध है कि श्री सेठजी ने कई लोगों की मौजूदगी में भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार को भगवान् के दर्शन करवाये थे।

भाईजी से जब कहा गया कि भगवान के चरण पकड़ो। तब उन्होंने चरण पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाये , तो वो हाथ श्री सेठजी के चरणों में गये।

(कई लोगों के मन में जिज्ञासा रहती है कि ऐसे ही श्री स्वामीजी महाराज को भी भगवान् के दर्शन हुए थे क्या?

उनके लिये ये बातें काम की है) ।

आज ही एक पुराने सत्संगी सज्जन बोले कि श्री स्वामीजी महाराज ने मेरे सामने बताया है कि श्री सेठजी ने स्वामीजी महाराज से कहा कि आप अपनी भगवत्प्राप्ति (वाली सिद्धि) लोगों में प्रकट न करें तो अच्छा रहेगा ; क्योंकि (अयोग्य) लोग पीछे पड़ जाते हैं कि मेरे को भी करवादो, हमारे को भी भगवान के दर्शन करवादो आदि आदि।

(मेरे को जो भगवान के दर्शन हुए थे उसको) मैंने प्रकट कर दिया था जिसके कारण मेरे को भी मुश्किल का सामना करना पड़ा। अस्तु।

अपने को साधक मानने में हानि नहीं  है , हानि तो सिद्ध मानने में है। अपने को सिद्ध मानने में बहम भी हो सकता है पर साधक मानने में क्या बहम होगा।

जो अपने को साधक मानता है वह उन्नति करता ही चला जाता है (सिद्ध मानकर रुकता नहीं कि अब मेरे को क्या करना है,जो करना था सो तो कर लिया)। 

श्री सेठजी ने कहा है (इतने महान होकर भी) स्वामीजी अपने को साधक ही मानते हैं। (यह इनकी विशेषता है)।

इस प्रकार पारमार्थिक लाभ गोपनीय रखने में ही फायदा है। ऐसे अधिकारी मिलने दुर्लभ हैं जिनको ऐसी रहस्य की बातें बतायी जायँ।

अधिकारी को तो महापुरुष अत्यन्त गोपनीय रहस्य भी बता देते हैं-

श्रोता सुमति सुसील सुचि कथा रसिक हरि दास।
पाइ उमा अति गोप्यमपि सज्जन करहिं प्रकास।।

रामचरितमा.७। ६९(ख)।।

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