॥श्रीहरिः॥
बिगड़े वाक्य और चित्र इस (श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के) सत्संग वाले समूहमें कृपया न भेजें।
ये जो चित्रों पर श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम से किसी ने कलाकारी और रंग देकर वाक्य बना कर अनधिकार चेष्टा की है - यह ठीक नहीं है।
इनमें श्री स्वामीजी महाराज की भाषा के अनुसार वाक्य भी नहीं है, बिगड़ गये हैं और अधूरे हैं।
जिन चित्रों पर ये काँट छाँट की गई है, वे चित्र भी असली नहीं रहे-बिगड़ गये हैं।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है।
विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक या प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो और वो ही हमें स्वीकार है ; अन्य नहीं।
इसलिये इन वाक्यों वाले चित्र कृपया इस श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के सत्संग वाले समूहमें न भेजें।
{कोटेशन, सत्संग वाक्य बनाने वाले जो हैं,उन्होंने क्या पता कि किसी पुस्तक से लेकर लिखा है या अपने अनुमान से लिखा है?
आजकल ऐसी प्रवृत्ति देखने में आती है कि वाणी तो हो किसी और की तथा उसपर नाम लिख देते हैं किसी और का।
ऐसे ही कोई अपने मनसे गढ़कर लिख देते हैं और उसपर नाम किसी ग्रंथ या संत का लिख देते हैं। ऐसे कोई भी कुछ लिखदे,क्या पता लगे?
जिस वाणी का पता ठिकाना नहीं, उसका और ऐसी रिवाज का प्रचार करना उचित नहीं लगता।
वाट्स एप्प पर भेजे गये ओडियो- प्रवचनों की ऊपर लिखी तारीख और प्रवचन का विषय मिट जाता है। इसलिये ओडियो भेजने पर तारीख लिखना लाभदायक रहता है। उसको देखकर लोग अपने पास संग्रहीत प्रवचनों में से सुन लेते हैं या उस प्रवचन का विषय देखकर उनको यह तै करने में सहायता मिलती है कि यह हमारे सुना हुआ है या नहीं? अथवा यह सुनें या नहीं।
कई लोग वाट्स एप्प पर भेजे गये प्रवचनों को डाउनलोड नहीं करते हैं।
उनको तारीख और विषय देखने पर प्रवचन को डाउनलोड करने और सुनने की प्रेरणा मिलती है}।
अधिक जानने के लिए कृपया इस पते (ठिकाने) पर देखें -
महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें -
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/01/blog-post_17.html?m=1
संत-वाणी यथावत रहने दें,संशोधन न करें|
('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)।
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html?m=1
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