सोमवार, 17 मई 2021

स्वप्न में सेठजी ने कहा कि एक परमात्मा ही है- श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

(श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज के दिनांक 
20040225_0518_Sethji Ki Svapna Ki Baat वाले प्रवचन के अंश का यथावत लेखन)

एक बार स्वीकार करते ही पूरा काम हो जाता है-
20040225_0518_Sethji Ki Svapna Ki Baat
(दिनांक 25-2-2004_0518 बजे, 1 मिनिट से) एक बार, सरल हृदय से, दृढ़तापूर्वक, (यह) स्वीकार कर लें कि मैं भगवान् का हूँ, भगवान् का ही हूँ और किसी का नहीं और भगवान् ही मेरे (अपने) हैं और कोई मेरा नहीं है। पूर्ण हो गया काम। क्योंकि जो बात है, वो सच्ची है। ध्यान नीं (नहीं) दिया,ध्यान देते ही- एक वार सरल हृदय से...[इसमें] कोई अभ्यास की जरुरत नहीं, माळा की जरुरत नहीं, बार-बार याद करने की जरुरत नहीं, एक वार, सच्चे हृदय से, सरलतापूर्वक, दृढ़तापूर्वक- सरलता से दृढ़तापूर्वक (यह) स्वीकार कर लें कि मैं भगवान् का ही हूँ और भगवान् ही केवल मेरे हैं। सब (कुछ) और कोई है नहीं सिवाय भगवान् के- वासुदेवः सर्वम्ऽऽ (गीता ७।१९)। भागवत में आया है- भगवान् का पहला अवतार है (आदिअवतार है)– सर्वम् वासुदेवः••● (यथावत लेखन)। ×××
   (3 मिनट से) ●•• और किसीका मैं था भी नहीं, हूँ भी नहीं। हुआ भी नहीं, होउँगा भी नहीं। अर भगवान् ही मेरे हैं, शरीर- संसार मेरा नहीं है। मेरा था नहीं, मेरा है नहीं, मेरा होगा नहीं, मेरा हो सकता ही नहींऽऽ। एकदम पक्की बात है।  ×××
(4 मिनट से) सिवाय भगवान् के कुछ हुआ नहीं, है नहीं, होगा नहीं, कुछ हो सकता ही नहीं। भगवान् ही है- वासुदेवः सर्वम्। छोटा,बङा,जलचर, थलचर, नभचर, दूरबीन से दीखे वे ई (वे भी), सऽऽऽब वे ही, एक हीऽऽऽ  (सब भगवान् ही हैं)। (यथावत-लेखन)।
स्वप्नमें श्री सेठजी बोले कि एक परमात्मा ही है
[श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज ने (दिनांक 25-2- 2004 _0518 बजेवाले  सत्संग में) अपने स्वप्न की बात बतायी कि]
   आज ही, अभी सेठजी ने कहा (परमश्रद्धेय सेठजी श्री जयदयाल जी गोयन्दका ने कहा)। पाँच बत्तीस. (सपने में पाँच बजकर बत्तीस मिनिट पर। प्रवचन से पहले)।
श्रोता- सेठजी ने क्या कहा?
श्री स्वामी जी महाराज- सेठजी ने कहा- आ ज्याओ (आ जाओ)। अपने हम (-सब) बैठे थे। (श्री सेठजी आदि अपन सबलोग एक मकान में बैठे थे)। (श्री सेठजी) उठकरके बाहर, एक दूजे (दूसरे) मकान में गये। दूजे मकान में जाकर (सब को कहा कि-) आ ज्याओ।  मेरे को बैठाया पास में। दूजे बैठ गये यहाँ (कुछ दूरीपर)। (श्री सेठजी ने फिर) दोनों हाथ धरे- यहाँ (मेरे कन्धोंपर और बोले कि-) एक परमात्मा ही है। (यह) लिख लेना (श्री स्वामी जी महाराज ने यह बात श्रोता को लिखने के लिये कहा। श्रोता ने लिखना स्वीकार किया कि- अच्छ्या)। आज, अभी, सपना आया सपना। सेठजी ने कहा आओ, इधर आओ। कई आदमी थे। मैं पास में बैठा था। वे मकान (उस मकान) से उठकर दूसरे मकान में गये। सबको कहा कि- आ ज्याओ। मेरे ऊपर दोनों हाथ धरे- यहाँ (कन्धोंपर और बोले कि) एक परमात्मा ही है। ×××
  एक परमात्मा ही है। शान्त। ×××  चुपचाप। पक्की, अच्छी पक्की बात है- एकदम्म्म।
   (सपनेमें उस समय लगभग साढ़े पाँच (५.३०-३२) बजे थे। कई आदमी थे- पाँच सात जने। मकान परिचित नहीं था। किस स्थानपर और कौन- कौन थे, यह याद नहीं है)।
  भगवान् की बङी भारी कृपा है अलौकिक कृपा है, जबरदस्ती कृपा है जबरदस्ती, माँग नहीं, हमारा कहना नहीं था, माँग नहीं (की) थी।आपे ही (अपने-आप ही) कह, आ जाओ। कृपा है विलक्षण कृपा। जितने सत्संगी है, सबके लिये है (यह)। एक परमात्मा ही है। एक बार, सरल हृदय से, दृढ़तापूर्वक (यह) स्वीकार करलें (कि मैं भगवान् का ही हूँ और केवल भगवान् ही मेरे अपने हैं)...  यह मैं पढ़ रहा था। अलौकिक कृपा है भगवान् की। सच्ची बात है एकदम। सप्तर्षि, सप्तर्षि है। राम महाराज। विलक्षण कृपा है विलक्षण। आ ज्याओ, आ ज्याओ कह, सबको ही यह कहा।
[शीतकाल में यह प्रवचन गीताभवन नम्बर तीन, संतनिवास वाले कमरे के भीतर हुए थे। माइक लगा हुआ था।  बाहर, पाण्डाल में बैठे लोग सुन रहे थे। भीतर में भी कई सज्जन श्री स्वामी जी महाराज के पास में बैठे थे। भीतरवाले लोगों की गिनती करते हुए श्री स्वामीजी महाराज बोले - सप्तर्षि, सप्तर्षि है। (ऐसा कुछ अब स्मृति में, याद भी आ रहा है)। श्री स्वामी जी महाराज ने 'राम महाराज'- वाक्य उच्चारण किया। इससे लगता है कि कोई सज्जन बाहर से कमरे में आये हैं और उन्होंनेे प्रणाम किया है। जवाब श्री स्वामी जी महाराज ने 'राम महाराज' बोला है। किसीके प्रणाम करनेपर ऐसे 'राम महाराज' बोला करते थे जिसका रहस्य भी बताया करते कि यह प्रणाम 'राम महाराज' (भगवान्) को किया गया। स्वयं स्वीकार न करके भगवान् को अर्पण कर दिया)।
   ...  सबको ही कहा- आ ज्याओ। (सब आ गये) सच्ची बात है। केवल स्वीकार करलो, मानलो। बात तो इत्ती ही है। सब पूरी हो गई। एकदम, कुछ बाकी नहीं है। बहूनां जन्मनामन्ते ••• स महात्मा सुदुर्लभः।। गीता ७|१९; अनन्यचेताः••• तस्याहं सुलभः गीता ८|१४; अर स महात्मा सुदुर्लभः।। यह सातवें (अध्याय) में (कहा), वो आठवें में। एक परमात्मा ही है। (यह बहुत ऊँची बात है। सब भगवान् ही है- ऐसा माननेवाला महात्मा बहुत दुर्लभ है। भगवान् ने गीता जी के इन श्लोकों में महात्मा को दुर्लभ और अपने को सुलभ बताया है)। एक परमात्मा ही है बस। छोटे हो, बङे हो, शुभ हो, अशुभ हो ••• (अच्छे, बुरे आदि) सऽऽब  वासुदेवः। क्रूर हो, सौम्य हो, भूत, प्रेत, पूतनाग्रह आदि- (सब परमात्मा ही है-) ये चैव सात्त्विका भावा॰ (गीता ७।१२ {-सात्त्विक, राजस और तामसी- सब भाव मेरे से ही पैदा होते हैं; परन्तु मैं उनमें और वे मेरे में नहीं है } ••• मानो मेरी प्राप्ति चाहो, तो मेरे शरण हो जाओ। हूँ मैं- ही- मैं -सब। नारायण नारायण नारायण नारायण।।
{इससे पहले जो श्री सेठजी की एक बात बोले थे। उसको लिखने के लिये मना किया कि यह बात नहीं कहनी है - नहीं लिखनी है}।
■ 

मंगलवार, 4 मई 2021

अनुभवी पुरुष के सत्संग की महिमा - श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

अनुभवी पुरुष के सत्संग की महिमा 

 श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज 
के दिनांक
19940305_0518_Satsang Ki Mahima वाले प्रवचन के अंश का यथावत लेखन-
(2:51)••• तो इसका विवेचन क्या करें,यह तो प्रत्यक्ष है।सत्संगति करने से आदमी की विलक्षणता आती है।यह हमारे कुछ देखणे में आई है।शास्त्रों के अच्छे नामी पण्डित हो,उनमें बातें वे नहीं आती है जो सत्संग करणेवाळे साधकों में आती है।पढ़े-लिखे नहीं है,सत्संग करते हैं।वे जो मार्मिक बातें जितनी कहते हैं इतनी शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं कह सकता,केवल पुस्तकें पढ़ा हुआ। शास्त्रों की बात पूछो,ठीक बता देगा।ठीक बता देगा,परन्तु कैसे कल्याण हो,जैसे, जीवन कैसे सुधरे, अपणा व्यवहार कैसे सुधरे,भाव कैसे सुधरे,इण बातों को सत्संगत करणेवाळा पुरुष विशेष समझता है।तो सत्संगति सबसे श्रेष्ठ साधन है।सत्संगीके लिये तो ऐसा कहा है कि "और उपाय नहीं तिरणे का सुन्दर काढ़ी है राम दुहाई। संत समागम करिये भाई।" और ऐसा साधन नहीं है।तो इसका विवेचन क्या करें,जो सत्संग करणेवाळे हैं,उनका अनुभव है। कि कितना प्रकाश मिला है सत्संग के द्वारा।कितनी जानकारी हुई है।कितनी शान्ति मिली है।कितना समाधान हुआ है।कितनी शंकाएँ,बिना पूछे समाहित हो गई है,उनका समाधान हो गया है।तो सत्संग के द्वारा बहोत लाभ होता है।हमें तो सत्संग से भोहोत (बहुत)लाभ हुआ है भाई।हमतो कहते हैं क हम सुणावें तो हमें लाभ होता है अर सुणें तो लाभ होता है।जो अनुभवी पुरुष है,जिन्होंने शास्त्रों में जो बातें लिखी है,उनका अनुभव किया है,अनुष्ठान किया है,उसके अनुसार अपना जीवन बनाया है।उनके संग से बोहोत लाभ होता है।विशेष लाभ होता है।उनकी बाणी में वो अनुभव है।जैसे,बन्दूक होती है,उसमें गोळी भरी न हो,बारूदभरा छूटे तो शब्द तो होता है,पर मार नहीं करती वो।गोळी भरी होती है तो मार करती है,छेद कर देती है।तो बिना अनुभव के बाणी है वो तो खाली बन्दूक है।शब्द तो बङा होता है पर छेद नहीं होता।और अनुभवी पुरुष की बाणी होती है,उसमें वो भरा हुआ है शीशा,जो सुननेवालों के छेद करता है- उनमें विलक्षणता ला देता है।उसके विलक्षण भाव को जाग्रत कर देता है,उद्बुद्ध कर देता है,जाग्रत कर देता है।तो अनुभव में ताकत है।वो बाहर में नहीं है।तो उनका माहात्म्य कितना है,कैसा है,इसको समझावें क्या।मैं तो ऐसा कहता हूँ (कि) एक कमाकर के धनी बनता है और एक गोद चला जाता है।तो कमाकर धनी बनने में जोर पङता है,समय लगता है फिर धनी बनता है अर गोद जाणेवाळे को क्या तो जोर पङा अर क्या समय लगा?कल तो यह कँगला अर आज लखपति।जा बैठा गोद।ऐसे सत्संगति में कमाया हुआ धन मिलता है।बरसों जिसने साधना की है,अध्ययन किया है,बिचार किया है।तो वो मार्जन की हुई बस्तु है- परिमार्जित। तो वो वस्तु सीधी-सीधी मिल ज्याती है एकदम।•••