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मंगलवार, 4 मई 2021

अनुभवी पुरुष के सत्संग की महिमा - श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज

अनुभवी पुरुष के सत्संग की महिमा 

 श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज 
के दिनांक
19940305_0518_Satsang Ki Mahima वाले प्रवचन के अंश का यथावत लेखन-
(2:51)••• तो इसका विवेचन क्या करें,यह तो प्रत्यक्ष है।सत्संगति करने से आदमी की विलक्षणता आती है।यह हमारे कुछ देखणे में आई है।शास्त्रों के अच्छे नामी पण्डित हो,उनमें बातें वे नहीं आती है जो सत्संग करणेवाळे साधकों में आती है।पढ़े-लिखे नहीं है,सत्संग करते हैं।वे जो मार्मिक बातें जितनी कहते हैं इतनी शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं कह सकता,केवल पुस्तकें पढ़ा हुआ। शास्त्रों की बात पूछो,ठीक बता देगा।ठीक बता देगा,परन्तु कैसे कल्याण हो,जैसे, जीवन कैसे सुधरे, अपणा व्यवहार कैसे सुधरे,भाव कैसे सुधरे,इण बातों को सत्संगत करणेवाळा पुरुष विशेष समझता है।तो सत्संगति सबसे श्रेष्ठ साधन है।सत्संगीके लिये तो ऐसा कहा है कि "और उपाय नहीं तिरणे का सुन्दर काढ़ी है राम दुहाई। संत समागम करिये भाई।" और ऐसा साधन नहीं है।तो इसका विवेचन क्या करें,जो सत्संग करणेवाळे हैं,उनका अनुभव है। कि कितना प्रकाश मिला है सत्संग के द्वारा।कितनी जानकारी हुई है।कितनी शान्ति मिली है।कितना समाधान हुआ है।कितनी शंकाएँ,बिना पूछे समाहित हो गई है,उनका समाधान हो गया है।तो सत्संग के द्वारा बहोत लाभ होता है।हमें तो सत्संग से भोहोत (बहुत)लाभ हुआ है भाई।हमतो कहते हैं क हम सुणावें तो हमें लाभ होता है अर सुणें तो लाभ होता है।जो अनुभवी पुरुष है,जिन्होंने शास्त्रों में जो बातें लिखी है,उनका अनुभव किया है,अनुष्ठान किया है,उसके अनुसार अपना जीवन बनाया है।उनके संग से बोहोत लाभ होता है।विशेष लाभ होता है।उनकी बाणी में वो अनुभव है।जैसे,बन्दूक होती है,उसमें गोळी भरी न हो,बारूदभरा छूटे तो शब्द तो होता है,पर मार नहीं करती वो।गोळी भरी होती है तो मार करती है,छेद कर देती है।तो बिना अनुभव के बाणी है वो तो खाली बन्दूक है।शब्द तो बङा होता है पर छेद नहीं होता।और अनुभवी पुरुष की बाणी होती है,उसमें वो भरा हुआ है शीशा,जो सुननेवालों के छेद करता है- उनमें विलक्षणता ला देता है।उसके विलक्षण भाव को जाग्रत कर देता है,उद्बुद्ध कर देता है,जाग्रत कर देता है।तो अनुभव में ताकत है।वो बाहर में नहीं है।तो उनका माहात्म्य कितना है,कैसा है,इसको समझावें क्या।मैं तो ऐसा कहता हूँ (कि) एक कमाकर के धनी बनता है और एक गोद चला जाता है।तो कमाकर धनी बनने में जोर पङता है,समय लगता है फिर धनी बनता है अर गोद जाणेवाळे को क्या तो जोर पङा अर क्या समय लगा?कल तो यह कँगला अर आज लखपति।जा बैठा गोद।ऐसे सत्संगति में कमाया हुआ धन मिलता है।बरसों जिसने साधना की है,अध्ययन किया है,बिचार किया है।तो वो मार्जन की हुई बस्तु है- परिमार्जित। तो वो वस्तु सीधी-सीधी मिल ज्याती है एकदम।•••