शनिवार, 23 जुलाई 2016

भगवान को भक्त प्यारा क्यों लगता है? (श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                         ।।श्रीहरि:।।

भगवान को भक्त प्यारा क्यों लगता है?

(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

...
(मीराँबाई) ठाकुरजी के आगे गूँघरू बाँध करके नाचती है,नृत्य करती है वहाँ, भगवान को रिझाती है और भगवान् (!)  महाराज! मस्त हो जाते हैं मीराँबाई को, नाचना देख करके।

उसके हृदय में प्रेम था।भक्त  हुए भगवान के नाते-भक्ति के नाते भगवान को प्यारा लगता है कोई कैसा ही क्यों न हो। जिनके हृदय में प्रेम है वह(वो) भगवान को प्यारे लगते हैं।
-
श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
19930704_0800_Bhakti Ki Mahima  वाले प्रवचन का अंश।

http://dungrdasram.blogspot.com/

बुधवार, 13 जुलाई 2016

सच्ची और पक्की बात-(श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

तिहत्तर पुस्तकें (लेखक - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।


                        ।।श्रीहरि।।

तिहत्तर पुस्तकें 

(लेखक - श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजकी साधक-संजीवनी, साधन-सुधा-सिन्धु (इसमें करीब तैंतालीस पुस्तकोंका संग्रह है) गीता-दर्पण, गीता-माधुर्य आदि तिहत्तर  पुस्तकें पढनेके लिये कृपया इस पते (ठिकाने) पर जायें और पढ़ें -

 http://swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/pustak/pustak1/html/picture/list.htm 


-------------------------------------------
http://dungrdasram.blogspot.in/?m=1

बुधवार, 6 जुलाई 2016

गीता का शुद्ध उच्चारण करके पढ़नेकी सुगमता।

                        ।।श्रीहरि:।।


गीता का ‘शुद्ध उच्चारण करके’ पढ़नेकी सुगमता

    एक बार श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज से किसीने पूछा कि गीताजी के सिर्फ हिन्दी अर्थका पाठ ही करलें क्या? क्योंकि है तो वो गीताजी के संस्कृत श्लोकोंका बी अर्थ।

इसलिए संस्कृत न पढ़कर सिर्फ़ हिन्दी अर्थ का पाठ करलें तो एक ही बात होगी क्या?

    जवाब में श्री स्वामीजी महाराज बोले कि-

    नहीं, संस्कृत श्लोकोंका पाठ भी करना चाहिए (क्योंकि ये श्लोक) भगवान की वाणी है।

(कई लोग गीताजी इसलिए नहीं पढ़ते कि संस्कृत श्लोकोंका उच्चारण शुद्ध नहीं होगा तो दोष लग जायेगा। हमको ठीकसे संस्कृत तो आती नहीं है और पढ़ते समय अगर अशुद्ध उच्चारण हो गया तो दोष लग जायेगा; पर बात ऐसी नहीं है। कृपया इस रहस्य को ठीकसे समझलें)।

    गीता पढ़ने वालेकी नियत तो शुद्ध पढ़नेकी है; पर पढ़ते समय अगर अशुद्ध उच्चारण हो जाता है तो दोष नहीं लगता; क्योंकि भगवान नीयत देखते हैं।

    बालक जब पढ़ाई शुरु करता है तो शुरुआत में अशुद्ध बोलता है, अशुद्ध पढ़ता है; पर उसकी नीयत शुद्ध है।

    अगर नीयत शुद्ध है, ईमानदारी से पढ़ना चाहता है तो अध्यापक नाराज नहीं होता; प्रत्युत उसकी नीयत देख कर प्रसन्न हो जाता है। ऐसे भगवान भी हमारी गीता पढ़नेकी नीयत शुद्ध देखकर प्रसन्न होते हैं।

 [ इसको ठीक तरह से समझनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका यह प्रवचन सुनें- 19930620_0830_Prapti Ki Sugamta ]

     इस प्रवचनमें श्री महाराजजीने गीता पढ़नेके लिये फरमाया है। (प्रेमपूर्वक गीताजी पढ़ें। अशुद्ध उच्चारण होगा तो दोष लग जायेगा– ऐसे डरें नहीं)। इसके समर्थनमें श्री स्वामीजी महाराजने यह कथा सुनायी है–

    एक भक्त ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करते हुए 'नमस्तस्यै' 'नमस्तस्यै' के स्थान पर ‘नमस्तस्मै' 'नमस्तस्मै' का उच्चारण करने लग गया था।

    यह देखकर किन्ही जानकार पण्डितजीने उनको समझाया कि (संस्कृत भाषा के अनुसार 'नमस्तस्मै' तो पुरुष के लिये बोला जाता है और 'नमस्तस्यै' स्त्री के लिये बोला जाता है) दुर्गा स्त्री है (इसलिए तुम यहाँ 'नमस्तस्यै' बोला करो)।

    तब वो 'नमस्तस्यै' बोलनेका प्रयास करने लगा; परन्तु बार बार ('नमस्तस्यै' के स्थान पर) 'नमस्तस्मै' का ही उच्चारण होने लग जाता था(यह उनके लिये एक झंझट हो गया)। रात्रि (स्वप्न) में माताजीने दर्शन दिये और (शुद्ध उच्चारण के लिये कहने वालेकी) छाती पर चढ़कर दुर्गाने धमकाया कि तू मेरेको स्त्री समझता है? मैं न स्त्री हूँ और न परुष हूँ। मेरी तो जो उपासना करे, वो मैं हूँ (जो भक्त मेरे जिस स्त्री या पुरुष रूपकी उपासना करता है उसके लिये मैं वही हूँ)।

    उस भक्त का 'नमस्तस्मै' उच्चारण मुझे प्रिय लगता है। तब उन्होंने माताजी से क्षमा माँगी कि माँ! अब ऐसा नहीं करुँगा।

मन्दो वदति विष्णाय धीरो वदति विष्णवे। 

उभयोश्च फलं तुल्यं भावग्राही जनार्दन:।।

    {कम जानकार ‘विष्णाय नमः' (अशुद्ध) कहता है और अधिक जानकार ‘विष्णवे नमः' (शुद्ध) कहता है। परन्तु दोनोंका फल बराबर है; क्योंकि भगवान् भाव ग्रहण करते हैं}

     इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अशुद्ध बोलो। अपनी समझसे शुद्ध बोलो। अशुद्ध मत बोलो। शुद्ध सीखलो।

    अपनी दृष्टि से बढ़िया से बढ़िया, शुद्ध से शुद्ध उच्चारण करो, गफलत मत रखो, प्रमाद मत करो।

कह, आवे नहीं तो? (कह, शुद्ध उच्चारण आये नहीं तो? कह,) वो लागू होता ही नहीं (शक्ति से अधिक की जिम्मेवारी ही नहीं है)। बालककी तोतली वाणी माँ बापको जैसी प्यारी लगती है, वैसी पण्डितजीकी शुद्ध उच्चारण वाली (वाणी) प्यारी नहीं लगती।

(ऐसे जो गीताजी पढ़ता है तो अशुद्ध बोलनेपर भी भगवानको वो गीता प्यारी लगती है। प्रेम हो तो शुद्ध बोलनेवालेसे भी अशुद्ध बोलने वाला ज्यादा प्यारा लगता है)।

    इसपर चैतन्य महाप्रभुके समय वाले उस भक्तकी कथा बतायी जो गीताजी ठीकसे पढ़ नहीं पाता था, पर उसको लगता था कि अर्जुन और श्री कृष्ण भगवान सामने बातचीत कर रहे हैं आदि।

    {इसलिए प्रेमसे गीताजी पढ़ें। डरें नहीं कि अशुद्ध उच्चारण हो जायेगा तो दोष लग जायेगा, दोष नहीं लगेगा। भगवान राजी होंगे। आप प्रेमसे जैसी भी गीताजी पढोगे वो भगवानको प्रिय लगेगी।

    संस्कृत श्लोक पढ़नेमें कठिनाई होती हो तो धीरे-धीरे पढ़लें। पहले हिन्दी अर्थ पढ़ें और फिर उस अर्थ को ध्यान में रखते हुए उसी श्लोक को पढ़ें और समझें। एक-एक संस्कृत शब्दों का हिन्दी अर्थ पढ़कर समझें। एक-एक शब्दों के अलगसे अर्थ साधक-संजीवनी में लिखे हुए हैं, वहाँ पढ़कर समझ सकते हैं।

    श्लोक का पदच्छेद और अन्वय की सुगमता के लिये पदच्छेद वाली गीता पढ़ सकते हैं।

    गीताजी के श्लोकों का सही उच्चारण सीखनेके लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के द्वारा गाया हुआ गीतापाठ का ओडियो रिकार्ड सुनें और उसके साथ-साथ संस्कृत श्लोक पढ़ें।

वो इस पते पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं –

1. db.tt/umrsxMnU

2. db.tt/L5hJrHtt

    गीताजी का रहस्य समझनेके लिये और गीताजीमें प्रेम होनेके लिये कृपया गीता साधक-संजीवनी का समझ-समझकर अध्ययन करें}। 

गीता का शुद्ध उच्चारण करके पढ़नेकी सुगमता।“. Bit.ly/ShuddhUccharan 

http://dungrdasram.blogspot.in/?m=1