रविवार, 5 अक्तूबर 2014

लहसुन,प्याज आदि निषेध क्यों है?

                         ।।श्रीहरि:।।

लहसुन,प्याज आदि निषेध क्यों है?

लहसुन,प्याज और गाजर आदिके विषयमें 'परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'ने ये बातें बताई है-

एक सज्जनने बैठते ही (समय कम होनेके कारण जल्दीसे) श्री महाराजजीसे पूछा कि ये लहसुन-प्याज मना क्यों है? तब श्री महाराजजीने संक्षेपमें जवाब दिया कि इनकी उत्पत्ति खराब (वस्तुसे हुई) है।

एक दिन आपने (अकलेमें) बताया कि

लहसुनकी उत्पत्ति कुत्तेके नाखूनसे हुई है,प्याजकी उत्पत्ति कुत्तेके अण्डकोशसे हुई है और गाजरकी उत्पत्ति कुत्तेके शिश्नेन्द्रिय (मूत्रेन्द्रिय) से हुई है।

(इसलिये ये वर्जित है)।

(गीताजीके सत्रहवें अध्यायके दसवें श्लोकमें दुर्गन्धयुक्त भोजनको तमोगुणी लोगोंकी पसन्द बताया है और तमोगुणीकी अधोगति होती है (गीता १४/१८)। अधिक जानना हो तो गीता साधक संजीवनीके सत्रहवें अध्यायमें सातसे दसवें श्लोक तककी व्याख्या पढें।

प्याज और लहसुनतो कई जने सेवन नहीं करते,पर कई लोग गाजरका भक्षण कर लेते हैं।लेकिन यह ठीक नहीं है;क्योंकि 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' गाजरका भी निषेध करते थे।

श्री सेठजी एकादशीके दिन साबूदाना खानेका भी निषेध करते थे कि इसमें चावलका अंश मिलाया हुआ होता है।

एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित ; क्योंकि ब्रह्महत्या आदि बड़े-बड़े पाप एकादशी के दिन चावलों में वास करते हैं , ऐसा ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है।

जो एकादशी के दिन व्रत नहीं रखते,अन्न खाते हैं, उनके लिये भी एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है।

एकादशी चाहे वैष्णव हो अथवा स्मार्त; चावल का निषेध दोनों में है।

एकादशीको हल्दीका प्रयोग नहीं करना चाहिये; क्योकि हल्दीकी गिनती अन्नमें आयी है, हल्दीको अन्न माना गया है।

साँभरके नमकका भी प्रयोग एकादशी व्रतमें वर्जित है;क्योंकि साँभर झील (जिसमें नमक बनता है,उस) में कोई जानवर गिर जाता है तो वो भी नमकके साथ नमक बन जाता है (इसलिये यह अशुध्द माना गया है)।

सैंधा नमक काममें लेना ठीक रहता है।सैंधा नमक पत्थरसे बनता है,इसलिये अशुध्द नहीं माना गया।

एकादशीके अलावा भी फूलगोभी नहीं खानी चाहिये।फूलगोभीमें जन्तु बहुत होते हैं।

[बैंगन भी नहीं खाने चाहिये।शास्त्र कहता है कि जो बैंगन खाता है,भगवान उससे दूर रहते हैं]।

उड़द और मसूरकी दाळ भी वर्जित है।

'परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'ने बताया है कि जिस वस्तुमें नमक और जलका प्रयोग हुआ हो,ऐसी कोई भी वस्तु बाजारसे न लें;क्योंकि नमक जल है,नमकको जल माना गया है और जलके छूत लगती है।

(अस्पृश्यके स्पर्श हो गया तो स्पर्श दोष लगता है।इसके अलावा पता नहीं कि वो किस घरका बना हुआ है और किसने, कैसे बनाया है)।

सोने चाँदी के वर्क लगी हुई मिठाई नहीं खानी चाहिये;क्योकि यह गाय बैलकी आँतमें रखकर बनाये जाते हैं,बैलकी आँतमें छौटासा सोने या चाँदीका टुकड़ा रखकर, उसको हथौड़ेसे पीट-पीटकर फैलाया जाता है और इस प्रकार ये सोने चाँदीके वर्क बनते हैं।इसलिये न तो वर्क लगी हुई मिठाई खावें और न मिठाईके वर्क लगावें।

हींग भी काममें न लें;क्योंकि वो चमड़ेमें डपट कर रखी जाती है,नहीं तो उसकी सुगन्धी कम हो जाय,या चली जाय।हींगकी जगह हींगड़ा काममें लाया जा सकता है।

लाखकी चूड़ियाँ काममें न लावें; क्योंकि लाखमें अनगिनत जीवोंकी हत्या होती है।

मदिरामें भी असंख्य जीवोंकी हत्या होती है।मदिरा बनानेसे पहले उसमें सड़न पैदा की जाती है,जो असंख्य जीवोंका समुदाय होता है।फिर उसको भभकेसे गर्म करके उसका अर्क (रस) निकाला जाता है,उसको मदिरा कहते हैं।इसकी गिनती महापापों (ब्रह्महत्या, सुरापान,सुवर्ण या रत्नोंकी चौरी और गुरुपत्निगमन) में आयी है।तीन वर्ष तक कोई महापापीके साथमें रह जाय,तो (पाप न करने पर भी) उसको भी वही दण्ड होता है जो महापापीको होता है।

महापाप (ब्रह्महत्या)से दुगुना पाप  गर्भपात करानेसे होता है।

{अधिक जाननेके लिये "महापापसे बचो"(लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)पुस्तक पढें}

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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