रविवार, 11 जून 2017

गीता "साधक-संजीवनी" पढने वालों के लिये सुझाव-

                     ॥श्रीहरि:॥


गीता "साधक-संजीवनी" पढने वालों के लिये सुझाव-

(गीता "साधक-संजीवनी" (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
को समूह में पढ़कर सुनाने वालों के लिये सुझाव-)

पहले श्लोक तथा अर्थ पढकर लोगों को समझा दें और फिर व्याख्या पढ़- पढ़कर लोगों को समझा दें।

यह कर लेने के बाद उसी श्लोक को यह ध्यान में रखते हुए दुबारा पढें कि यह श्लोक ठीक तरह से समझ में आ गया है कि नहीं?

अगर कहीं समझने में कसर रह गई हो तो उस अंश को दुबारा ठीक तरह से समझा दिया जाय।

अब आगे वाले श्लोक को पढना है तो पहले पीछे वाला (केवल मूल) श्लोक बोल कर आगे वाला श्लोक बोलें।

इस को गा- गा कर सुनाने से यह और रुचिकर हो सकता है (आजकल संगीत को लोग ज्यादा पसन्द करते हैं)।

इसके भी शुरु में वसुदेव सुतं देवं ... वाला श्लोक जोड़ कर गायेंगे तो और अधिक सुगमता हो जायेगी।

जैसे-
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

धृतराष्ट्र उवाच 
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयत्सव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥१॥

अर्थ और व्याख्या के बाद आगे वाला श्लोक पढने से पहले इसी प्रकार दोहरा कर बोलें-

जैसे-
वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥

धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयत्सव:।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥१॥

सञ्जय उवाच
दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसड़्गम्य राजा वचनमब्रवीत्॥२॥

इसके बाद इस दूसरे श्लोक का अर्थ और व्याख्या समझा कर यह जाँच करते हुए दूसरे श्लोक को दुबारा पढ लें कि यह दूसरा श्लोक भी ठीक तरह से समझ में आ गया है।

(श्रोताओं को भी चाहिये कि जहाँ ठीक तरह से समझ में न आवे तो वहाँ दुबारा सुन कर समझ लेवें)।

यहाँ एक बात और ध्यान देने की है कि रोजाना सुनाने के लिये समय तै कर लेंवें (जैसे १० मिनट या ३० अथवा ६० मिनट)।

वर्तमान श्लोक की व्याख्या (उसी दिन) पूरी सुनाने का (या पृष्ठ पूरा सुनाने का) आग्रह न रखें; क्योंकि किसी दिन अगर समय कम बचा है और व्याख्या लम्बी है तो जल्दी-जल्दी पढकर पूरी करनी पड़ेगी और जल्दी-जल्दी पढकर पूरी करेंगे तो कई बातें बिना समझे ही छूट जायेगी जो कि एक घाटे का काम होगा।

इसलिये पढते-पढते जहाँ पहले से तै किया हुआ समय पूरा हुआ कि वहीं पढना भी पूरा कर दें अर्थात् उस दिन सुनाना वहीं समाप्त कर सकते हैं। दूसरे दिन वहाँ से आगे सुनावें।

हमारा लक्ष्य ठीक तरह से समझने का होना चाहिये (केवल जल्दी-जल्दी पढकर) पुस्तक पूरी करने का न हो।

(जिनको गीता "साधक-संजीवनी" का अकले ही अध्ययन करना हो उनके लिये भी यह युक्ति बड़े काम की है)।

इसी प्रकार (सुनते हुए और सुनाते हुए आगे) बढते रहें। 

■ सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/