॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
● प्रार्थना ●
( परमश्रद्धेय स्वामीजी
श्रीरामसुखदासजी महाराज
के हाथ से लिखी हुई , साधक की तरफ से प्रभु- प्रार्थना- )
।। श्री रामाय नमः।।
हे नाथ ! आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप हमें प्यारे लगें , केवल यही
मेरी माँग है, और कोई अभिलाषा नहीं।
हे नाथ ! अगर मैं स्वर्ग चाहूँ तो मुझे नरकमें डाल दें , सुख चाहूँ तो
अनन्त दुःखोंमें डाल दें , पर आप हमें प्यारे लगें।
हे नाथ ! आपके बिना मैं रह न सकूँ , ऐसी व्याकुलता आप दे दें।
हे नाथ ! आप मेरे ऐसी आग लगा दें कि आपकी प्रीतिके बिना जी न सकूँ ।
हे नाथ ! आपके बिना मेरा कौन है ? मैं किससे कहूँ और कौन सुने ?
हे मेरे शरण्य ! मैं कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ? कोई मेरा नहीं ।
मैं भूला हुआ कइयोंको अपना मानता रहा , धोका (धोखा) खाया , फिर भी धोका खा सकता हूँ। आप बचावें !
हे मेरे प्यारे ! हे अनाथनाथ ! हे अशरणशरण ! हे पतितपावन ! हे दीनबन्धो ! हे अरक्षितरक्षक ! हे आर्त्तत्राणपरायण ! हे निराधारके आधार ! अकारण- करुणावरुणालय ! हे साधनहीनके एकमात्र साधन ! हे असहायकके सहायक ! क्या आप मेरेको जानते नहीं ? मैं कैसा भङ्गप्रतिज्ञ , कैसा कृतघ्न , कैसा अपराधी , मैं कैसा विपरीतगामी , मैं कैसा अकरणकरणपरायण ,
अनन्त दुःखोंके कारणस्वरूप भोगोंको भोगकर , जानकर भी आसक्त रहनेवाला , अहितको हितकर माननेवाला , बार- बार ठोकरें खाकर भी नहीं चेतनेवाला , आपसे विमुख होकर बार- बार दुःख पानेवाला , चेतकर भी न चेतनेवाला , ऐसा जानकर भी न जाननेवाला मेरे सिवा आपको ऐसा कौन मिलेगा ?
प्रभो ! त्राहि मां त्राहि मां पाहि मां पाहि माम् !
हे प्रभो ! हे विभो ! मैं आँख पसारकर देखता हूँ तो मन , बुद्धि , प्राण , इन्द्रियाँ और शरीर भी मेरे नहीं , तो वस्तु , वस्त्रादि [ व्यक्ति आदि ] मेरे कैसे हो सकते हैं ? ऐसा मैं जानता हूँ , कहता हूँ, पर वास्तविकतासे नहीं मानता । मेरी यह दशा क्या आपसे किंचिन्मात्र भी कभी छिपी है ? फिर हे प्यारे , क्या कहूँ ?
हे नाथ ! हे नाथ !! हे मेरे नाथ !!! हे दीनबन्धो ! हे प्रभो ! आप अपनी
तरफसे शरण ले लें। बस , केवल आप प्यारे लगें। ●
मेर मन में तो आई थी कि आप सुबह, शाम, मध्याह्न - तीनों समय कर , खूब अच्छे भावपूर्वक करें तो प्रभुकृपा से कुछ भी असम्भव नहीं है
ता•१९|३|७६
चैत्र कृष्णा चतुर्थी, शुक्रवार
- रामसुखदास
ता•१९|३|७६
चैत्र कृष्णा चतुर्थी, शुक्रवार
- रामसुखदास
(- यथावत् लेखन •••● , । () ! ? | - ) ■
••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
इस हस्तलिखित प्रार्थना की फोटो भी नीचे दी जा रही है ।
यह प्रार्थना कई पुस्तकों में यथावत् लिखकर नहीं छापी गई है, अयथावत् छपी हुई मिलती है। इसके नीचे यह वाक्य और जोङ दिया गया है --
[ भक्त-चरित्र पढ़कर खूब अच्छा भाव बनाकर सुबह, शाम व मध्याह्न-तीनों
समय यह प्रार्थना करनी चाहिये। ]
इसके सिवाय भक्त-चरित्र पढ़े बिना भी , सीधे ही यह प्रार्थना की जा सकती है तथा एक बार या अनेक बार की जा सकती है और उसको भगवान् सुन लेते हैं ।
यह प्रार्थना किसी भी समय की जा सकती है और किसी भी प्रकार से की जा सकती है । इस प्रार्थना को कोई भी कर सकता है चाहे वो कैसा ही क्यों न हो और भगवान् उसको स्वीकार कर लते हैं ।
इस प्रार्थना के नीचे श्री स्वामी जी महाराज के द्वारा लिखे हुए इतने अंश पर और ध्यान दें।
वो लिखते हैं- मेर मन में तो आई थी कि आप सुबह, शाम, मध्याह्न - तीनों समय कर , खूब अच्छे भावपूर्वक करें तो प्रभुकृपा से कुछ भी असम्भव नहीं है
ता•१९|३|७६
चैत्र कृष्णा चतुर्थी, शुक्रवार
- रामसुखदास
ता•१९|३|७६
चैत्र कृष्णा चतुर्थी, शुक्रवार
- रामसुखदास
(अर्थात् ऐसे प्रार्थना की जाय तो असम्भव भी सम्भव हो सकता है, ऐसा कोई भी काम नहीं है जो इस प्रार्थना से न हो सके, सबकुछ हो सकता है।
सीताराम सीताराम
जवाब देंहटाएंअति उत्तम
जवाब देंहटाएंJai siyaram jai jai ram
जवाब देंहटाएंHare Rama hare Krishna
जवाब देंहटाएंस्वामीजी ने उनकी कही हुई किसी भी बात को कांट छाँट किये बिना ही छापने को बोला है, फिर भी इतनी सुन्दर प्रार्थना को यथावत क्यूँ नही लिखा गया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भक्त चरित्र पढ़ने से व्यक्ति भाव विह्वल हो जाता है।
जवाब देंहटाएं