।।श्रीहरिः ।।
गुरु 'तत्त्व' कैसे होता है ? क्या बिना 'गुरु' बनाये ही 'कल्याण' हो सकता है ?
'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज" आदि महापुरुष आजकल गुरु बनाने के लिए निषेध (मना) करते हैं । वो कहते हैं कि गुरु भगवान् को मानलो- "कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् "।
इस पर कई लोग पूछते हैं कि क्या बिना गुरु बनाये ही कल्याण हो सकता है? ऐसे ही कई लोगों के मन में ऐसी बातें भी आती है कि क्या बिना नेगचार के भी कोई 'गुरु' बन सकते हैं ? अर्थात् सिर पर हाथ रखना, कान में मन्त्र फूँकना आदि नेगचार के बिना भी कोई गुरु हो सकते हैं क्या ?
कोई भगवान् को 'गुरु' मानले या पहले जो श्रीतुलसीदासजी महाराज, गीताप्रेस के संस्थापक सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका , श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज आदि 'महापुरुष' हो गये हैं, उनको कोई 'गुरु' मानले, तो क्या सचमुच में वे 'गुरु' हो जाते हैं और उससे (गुरु मानने वाले शिष्य का) 'कल्याण' हो जाता है? इन सब बातों का जवाब है कि हाँ, हो जाता है । अधिक जानने के लिए (संत डुँगरदास राम और गुलाबसिंहजी शेखावत की बातों वाला) यह प्रवचन सुनें -
(प्रवचन या उसका लिंक)
तथा श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का यह प्रवचन सुनें -
19931104_1430_Saccha Guru Kaun(सच्चा गुरु कौन ?) ।
http://bit.ly/2LOpuzq