रविवार, 10 नवंबर 2019

अयोध्या राम- मन्दिर के बाद अब काशी में शिव- मन्दिर की बारी

                      ।।श्रीहरिः।।
अयोध्या राम- मन्दिर के बाद अब काशी में शिव- मन्दिर की बारी  
कल (कार्तिक शुक्ला द्वादशी शनिवार , विक्रम संवत् २०७६ को) सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार अयोध्या में राम- मन्दिर बनना तै हो गया । भगवान् की कृपा से यह रामभक्तों और सारे संसार के लिये भी एक बङा हितकारी काम हुआ है । इससे हिन्दुओं का, ईसाईयों आदि का और मुसलमानों का भी बङा हित होगा।
कई लोगों को इससे बङी भारी प्रसन्नता हुई है । कई लोग तो इससे अपने को धन्य और कृतकृत्य (सब काम कर चूके) मानने लग गये ; लेकिन अपने को इतने से ही सन्तोष नहीं करना चाहिये ; क्योंकि अभी हमारे कई मन्दिरों का काम बाकी पङा है ।
इसलिये अयोध्या राम- मन्दिर के बाद अब काशीवाले शिव- मन्दिर के लिये काम शुरु करना चाहिये और मथुरा में श्रीकृष्ण- मन्दिर की तैयारी करनी चाहिये ।
जैसे, एक दिन अयोध्या राम- मन्दिर की थोङी- सी शुरुआत की गई थी, तो वो होते- होते कल निर्णय आ ही गया। अब राम- मन्दिर बनने की तैयारी है और राम मन्दिर बन जायेगा । ऐसे ही हमलोग अगर काशी में शिव- मन्दिर की थोड़ी- सी भी शुरुआत करदें, तो एक दिन यह मन्दिर भी बन जायेगा ।
विचार करके देखें तो शुरुआत में एक व्यक्ति के मनमें बात आती है, उसके बाद अनेकों के मनमें आ जाती है और अनेक लोग साथ में हो जाते हैं तथा अनेकों की शक्ति से वो काम हो जाता है । वो काम हुआ तो अनेकों की शक्ति से है; पर शुरुआत में उस काम को एक व्यक्ति ने ही शुरु किया था। ऐसे अगर हम अकेले ही (अयोध्या राम- मन्दिर की तरह एक व्यक्ति ही) यह काम शुरु करदें, तो हमारे साथ अनेक लोग हो जायेंगे और काशी में शिव- मन्दिर भी बन जायेगा।
वास्तव में यह होगा तो महापुरुषों और भगवान् की कृपा से ही, परन्तु निमित्त हमको बनना है। भगवान् और महापुरुष तो तैयार ही रहते हैं, अब हमको तैयार होना है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ने कहा था कि सीधी -सी बात है कि हिन्दुओं की जगह (राम- मन्दिर) हिन्दुओं को दे दी जाय । कह, फिर तो काशी और मथुरा वाले स्थान भी माँग लेंगे । अरे माँग लेंगे तो इससे तुम्हारा क्या हर्ज हुआ?
श्री स्वामीजी महाराज के सामने बार- बार अयोध्या राम मन्दिर का विषय आया था और उन्होंने समाधान किया था । उनके ऐसे कई प्रवचनों की रिकॉर्डिंग मौजूद है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज ने मुस्लिम भाइयों को, सरकार को और हिन्दू भाइयों को बङी आत्मीयतापूर्वक पत्र लिखवाकर कल्याण पत्रिका में प्रकाशित करवाया था ।( कल्याण वर्ष ६७ वाँ , अंक तीसरा, (3 मार्च 1993 ) ।
( पत्र और पत्र की फोटो नीचे दी जा रही है  )।
मुस्लिम भाइयों को सादर समझाया कि आपलोग अपने बङेरों का कलंक धो लो।
( अर्थात् अयोध्या का राम- मन्दिर तुङवाङकर उस जगह मुसलमानों के बङेरे बाबर ने मस्जिद बनवायी थी। मुसलमानों के बङेरे ऐसे अन्यायी, जबरदस्ती पूर्वक दूसरों की सम्पत्ति छीनने वाले, दुःख देनेवाले थे। मस्जिद इस बात की निशानी है । आपलोगों ने भी यही परम्परा अपना रखी है। यह आपलोगों के लिये कलंक है। अब आपलोग यह हिन्दुओं की जगह हिन्दुओं देकर अपने बङेरों का कलंक धो डालो। नहीं तो यह कलंक मिटेगा नहीं । अबतक जैसे मस्जिद के रूप में वो कलंक खङा था, कायम था, ऐसे ही आगे भी यह कलंक पङा रहेगा)।
सरकार को भी आदरपूर्वक समझाया कि आपलोग ज्यादा वोट के लोभ से अन्याय, पक्षपात मत करो।
हिन्दू भाइयों को अपने धर्म का ठीक तरह से पालन करने का और सच्चे हृदय से भगवान् में लग जाने के लिये आदरपूर्वक कहा। 
( http://dungrdasram.blogspot.com/2019/11/blog-post_0.html )
इस प्रकार महापुरुष हमारे साथ में हैं और महापुरुषों के साथ भगवान् हैं । भगवान् उनकी रुचि के अनुसार काम करते आये हैं-
राम सदा सेवक रुचि राखी।
बेद पुरान साधु सुर साखी।।
(रामचरितमा॰ २|२१९|७)

अब काम बाकी हमारा है। हम अगर तैयार हो जायँ,  इस काम को शुरु करदें, मन बनालें कि यह काम होना चाहिये, तो यह काम हो जाय, मन्दिर बन जाय।  

( काशीजी के ज्ञानवापी वाले शिव- मन्दिर की कैसी दुर्दशा की हुई है, यह तो आज भी समझी और देखी जा सकती है)।
जय श्री राम 
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                    ( पत्र -)
॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥
  परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
की ओरसे एक प्रार्थना
अपने निजस्वरूप प्यारे मुसलमान भाइयोंसे आदरपूर्वक प्रार्थना है कि यदि आप अपने आदरणीय
पूर्वजोंकी गलतीको स्थायी रूपसे नहीं रखना चाहते हैं तथा अपनी गलत परम्पराको मिटाना चाहते हैं तो
जिनकी जो चीज है, उनको उनकी चीज सत्कारपूर्वक समर्पण कर दें और अपनी गलत परम्पराको,
बुराईको मिटाकर सदाके लिये भला रहना स्वीकार कर लें ।
आपलोगोंने मन्दिरोंको तोड़नेकी जो गलत
परम्परा अपनायी है, इसमें आपका ज्यादा नुकसान है, हिन्दुओंका थोड़ा। यह आपके लिये बड़े
कलंकका, अपयशका काम है।
आपके पूर्वजोंने मन्दिरोंको तोड़कर जो मस्जिदें खड़ी की हैं, वे इस
बातका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि मुसलमानोंके राज्यमें क्या हुआ ? अतः वे आपके लिये कलंककी,
अपयशकी निशानी हैं।
अब भी आप उसी परम्परापर चल रहे हैं तो यह उस कलंकको स्थायी रखना
है।
आप विचार करें,
सभी लोगोंको अपने- अपने धर्म, सम्प्रदाय आदिका पालन करनेका अधिकार है ।
यदि हिन्दू अपने धर्मके अनुसार मन्दिरोंमें मूर्तिपूजा ( मूर्तिमें भगवान् की पूजा ) करते हैं तो इससे आपको
क्या नुकसान पहुँचाते हैं ? इसमें आपका क्या नुकसान होता है ? क्या हिन्दुओंने अपने राज्यमें मस्जिदोंको
तोड़ा है ? तलवारके जोरपर हिन्दूधर्मका प्रचार किया है ? उलटे हिन्दुओंने अपने यहाँ सभी
मतावलम्बियोंको अपने-अपने मत, सम्प्रदायका पालन करने, उसका प्रचार करनेका पूरा मौका दिया है।
इसलिये यदि आप सुख-शान्ति चाहते हैं, लोक-परलोकमें यश चाहते हैं, अपना और दुनियाका भला
चाहते हैं तो अपने पूर्वजोंकी गलतीको न दुहरायें और गम्भीरतापूर्वक विचार करके अपने कलंकको
धो डालें।
सरकारसे भी आदरपूर्वक प्रार्थना है कि आप थोड़े समयके अपने राज्यको रखनेके लिये ऐसा कोई
काम न करें, जिससे आपपर सदाके लिये लाञ्छन लग जाय और लोग सदा आपकी निन्दा करते रहें ।
आज प्रत्यक्षमें राम भी नहीं हैं और रावण भी नहीं है, युधिष्ठिर भी नहीं हैं और दुर्योधन भी नहीं है; परंतु
राम और युधिष्ठिरका यश तथा रावण और दुर्योधनका अपयश अब भी कायम है। राम और युधिष्ठिर
अब भी लोगोंके हृदयमें राज्य कर रहे हैं तथा रावण और दुर्योधन तिरस्कृत हो रहे हैं।
आप ज्यादा वोट
पानेके लोभसे अन्याय करेंगे तो आपका राज्य तो सदा रहेगा नहीं, पर आपकी अपकीर्ति सदा रहेगी।
यदि आप एक समुदायका अनुचित पक्ष लेंगे तो दूसरे समुदायमें स्वतः विद्रोहकी भावना पैदा होगी, जिससे
समाजमें संघर्ष होगा।
इसलिये आपको वोटोंके लिये पक्षपातपूर्ण नीति न अपनाकर सबके साथ समान
न्याय करना चाहिये और निल्लोभ तथा निर्भीक होकर सत्यका पालन करना चाहिये।
अन्तमें अपने निजस्वरूप प्यारे हिन्दू भाइयोंसे आदरपूर्वक प्रार्थना है कि यदि मुसलमान भाइयोंकी
कोई क्रिया आपको अनुचित दीखे तो उस क्रियाका विरोध तो करें, पर उनसे वैर न करें।
गलत क्रिया
या नीतिका विरोध करना अनुचित नहीं है, पर व्यक्तिसे द्वेष करना अनुचित है। जैसे, अपने ही भाईको
संक्रामक रोग हो जाय तो उस रोगका प्रतिरोध करते हैं, भाईका नहीं। कारण कि भाई हमारा है, रोग
हमारा नहीं है। रोग आगन्तुक दोष है, इसलिये रोग द्वेष्य है, रोगी किसीके लिये भी द्वेष्य नहीं है।
अतः
आप द्वेषभावको छोड़कर आपसमें एकता रखें और अपने धर्मका ठीक तरहसे पालन करें, सच्चे हृदयसे
भगवान् में लग जायेँ तो इससे आपके धर्मका ठोस प्रचार होगा और शान्तिकी स्थापना भी होगी। 
( - श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज )
- 'कल्याण'वर्ष 67, अंक3 (मार्च 1993)।

 
आपलोगों ने कोशिश करके जैसे यह राम- मन्दिर का काम करवा दिया, ऐसे ही आपलोगों से प्रार्थना है कि अब जल्दी ही गौ- हत्या बन्द करवा दें । आपका बहुत- बहुत आभार । 

जय श्री राम 

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