शनिवार, 18 मार्च 2017

गीताजी की टीकाओं का नाश न करें और न करने दें।

                       ॥श्रीहरि:॥

गीताजी की टीकाओं का नाश न करें और न करने दें। 

आज दिनांक १८-३-२०१७ को  गीताजी की दोनों टीकाएँ - साधक-संजीवनी (लेखक - श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)  और तत्त्वविवेचनी (लेखक - परम श्रध्देय सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दका - इन दोनों टीकाओं) को 'एण्ड्रोइड सिस्टम' में देखकर बहुत बहुत खुशी हुई।

{उनके पते ठिकाने ये हैं-
१- (साधक-संजीवनी-)
https://play.google.com/store/apps/details?id=sadhaksanjeevani_hindi.com.spiritualseekerrsk

२-
(तत्त्वविवेचनी-) https://play.google.com/store/apps/details?id=tv.org.spiritualseeker}

इनको डाउनलोड करके मैं देखने लगा तो वहाँ 'पद छेद' शब्द देखकर मनमें आया कि इस शब्द की जगह 'पदच्छेद' शब्द लिख दिया जाता तो अच्छा होता (जबकि मूल में न होने के कारण अनुचित है)। 

खैर, शुरुआत में भूलें होना स्वाभाविक है, ('लिखनेवाला' ईमानदार होना चाहिए  और बेपरवाही न करनेवाला भी होना चाहिए। 'लिखने वाले' का प्रयास उपयोगी और सराहनीय है

अगर 'लेखन' में  अशुध्दि रह भी गयी होगी तो भी सामग्री तो पूरी ही लिखी होगी -ऐसी उम्मीद थीं)।

इसलिए मेरे को सबसे बढ़िया लगने वाले भगवान के "समग्र रूप" के वर्णन वाले  प्रसंग को (जिसमें श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने चार्ट बनाकर इस रहस्य को समझाया है,वो चार्ट) खोज कर देखने लगा जो कि आठवें अध्यायके चौथे श्लोक की व्याख्या में आया था

(और जिसको देखने से मेरे को नया प्रकाश मिला और एक साथ ही अनेक शंड़्काओं का समाधान हो गया था तथा भगवान का समग्र रूप सरलता पूर्वक समझ में आया था) ।

लेकिन उस चार्ट को तो 'इन लेखक' ने छोड़ ही दिया था, लिखा ही नहीं।

छोड़ दिया - जानकर 'खुशी' 'चिन्ता' में बदल गयी कि ऐसे तो न जाने इन्होंने क्या-क्या छोड़ दिया होगा?

ऐसे तो ये लोग इन ग्रंथों का ●● कर देंगे,"सन्तों की वाणी" का ●● कर देंगे आदि आदि।

(एण्ड्रोइड सिस्टम में 'लिखने वाले' की ईमानदारी ●●●)।

ऐसा न तो करना चाहिये और न करने देना चाहिये।

अब कहें किससे और सुने भी कौन?

हे नाथ! हे मेरे नाथ !! मैं आपको भूलूँ नहीं।

- डुँगरदास राम

अधिक जानने के लिये कृपया यह लेख पढ़े-

संत-वाणी यथावत रहने दें,संशोधन न करें|('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)।
http://dungrdasram.blogspot.in/2014/12/blog-post_30.html?m=1

http://dungrdasram.blogspot.com/

अब वो गलती सुधार दी गयी- यह बहुत खुशीकी बात है और आगे भी उम्मीद है कि इसमें जो अनेक त्रुटियाँ रह गई है वो भी सुधारी जायेगी। लेखक को बहुत बहुत साधुवाद।

■ कृपया कोई भी टिप्पणियाँ (८।४ और ५ आदि की तरह) छोड़ें नहीं।

■ "साधक-संजीवनी" में जैसा लिखा है , उसका मिलान करके वैसा का- वैसा ही लिखना चाहिये। कोई भी अंश छूट न जाय। (और न अपने मन से ही कुछ जोड़ें)।

■शब्द, हलन्त, मात्रा, कौमा, अल्प विराम, पूर्ण विराम, अनुस्वार, चन्द्रबिन्दू, डैस, कोष्ठक आदि जैसे "साधक-संजीवनी: में दिये गये हैं, यहाँ भी वैसे के- वैसे ही होने चाहिये।