गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

                       ।।श्रीहरि।।

'संतवेषमें ज्ञानदाता'(समूह)।

इस समूहमें उन्हीके नम्बर सम्मिलित किये गये हैं जो संतवेषमें संत हैं।

जो गृहस्थवेषमें संत हैं,उनके नं.इस समूहमें सम्मिलित नहीं है('गृहस्थवेषमें ज्ञानदाता' समूह बनाना हो तो विचार किया जा सकता है)।

इस समूह('संतवेषमें ज्ञानदाता')का उध्देश्य यह है कि संत-महात्मा भी ज्ञानका आदान-प्रदान करें और एक-दूसरेको समझते रहें तथा इसमें जो सामग्री संत-महात्मा भेजें,उनमेंसे चुनकर अन्य लोगोंको भेजी जाय।

भेजी जानेवाली सामग्री में भेजनेवाले संतोंका नाम सामिल किया जा सकता है (कि यह सामग्री अमुक संत द्वारा भेजी हुई आयी है)।

मेरे पास जिन-जिन संतोंके नं.थे,उन्हीको इस समूहमें सामिल किया है।अगर किन्ही संतोंके नं.इसमें और जोङने हों तो कृपया परिचय सहित उन संतोंके नम्बर भेजनेका परिश्रम करावें।

सब संतोंको सादर प्रणाम।
सप्रेम हरिस्मरण और नमन।

डुँगरदास राम
सीताराम सीताराम

http://dungrdasram.blogspot.com/

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

डुँगरदासके ब्लॉगका पता- http://dungrdasram.blogspot.com/

डुँगरदासके ब्लॉगका पता-

■ सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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या

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पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                    ।।श्रीहरि।।

पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं..

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के 19971111/1630 बजेवाले प्रवचनमें आया है कि पापी भी कैसे भगवानके प्यारे हैं और भगवानकी कृपाकी कैसी विलक्षणता है।
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http://dungrdasram.blogspot.com/

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

दिनांक वाले सत्संग-प्रवचन - श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।


दिनांकवाले सत्संग-प्रवचन। -

(श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज)।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है-

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

दि.19950917/830 बजेके प्रवचनमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि
मैंने गीताकी टीका(साधक-संजीवनी)में किसी मतका खण्डन नहीं किया है।मैंने यह ध्यान रखा है।खण्डन करना न मेरा उध्देश्य है और न मैं खण्डन करना ठीक समझता हूँ। गीताके मूलमें भी यही शैली है(गीता18।2-5)।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                    ।।श्रीहरि:।।

साधक-संजीवनी गीतामें किसी मतका खण्डन नहीं किया है- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

दि.19950917/830 बजेके प्रवचनमें श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि
मैंने गीताकी टीका(साधक-संजीवनी)में किसी मतका खण्डन नहीं किया है।मैंने यह ध्यान रखा है।खण्डन करना न मेरा उध्देश्य है और न मैं खण्डन करना ठीक समझता हूँ। गीताके मूलमें भी यही शैली है(गीता18।2-5)।

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गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

दो प्रकारकी अयोध्या-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                     ॥श्रीहरि:॥

दो प्रकारकी अयोध्या-

(एक तो अवतारके समयवाली और दूसरी,रामायणपाठ तथा सत्संग-समारोह-स्वरूप वाली)।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

{कौसल्यादि मातु सब धाई।
निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई॥

जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ
चरन बन परबस गई।
दिन अंत पुर रुख स्रवत थन
हुँकार करि धावत भईं॥

[रामचरितमा.७।६]।

जैसे,कुछदिनों पहले ही ब्यायी हुई गऊ अपने बछड़ेको घरपर ही छोड़कर चरनेके लिये परवशतासे वनमें गयी हों और सूर्यास्तके समय थनोंसे दूध बहाती हुई हुँकार करके नगरकी तरफ दौड़ी हों;ऐसे कौसल्या आदि सब माताएँ (जब रामजी वनसे लौटकर वापस आये,तब वो रामजीसे मिलनेके लिये) दौड़ीं।

यहाँ(अयोध्यामें) बछड़ा वनमें गया है,रामजी वनमें गये हैं,माताएँ वनमें नहीं गई हैं।तो यह विपरीत उदाहरण क्यों दिया यहाँ?

यह इसलिये दिया कि जहाँ रामजी है,वहीं अयोध्या है,बाकी तो सब जंगल है, वन है।माताएँ घरपर थीं तो भी मानो जंगलमें ही थीं; क्योंकि अयोध्या तो रामजीके साथमें थीं।}।

…(सतीजी-पार्वतीजीकी तरह) नारदजीके सन्देह हो गया,ब्रह्माजीके सन्देह हो गया… इन्द्रके सन्देह हो गया।येह सन्देह हुआ है भगवानके चरित्रसे(चरित्र देखनेसे) और भगवानकी कथा(सुनने)से(सन्देह) दूर हुआ।

तो रामचन्द्रजी महाराजके समय(जो) अयोध्या है,उसकी अपेक्षा यह(सत्संग-समारोह-स्वरूप) अयोध्या तेज हो गयी,जब रामायणकी कथा हुई है यहाँ।

रामजीके चरित्रसे तो मोह हो जाता है अर(और) रामचरित्रकी कथासे मोह दूर हो जाता है।

आप ख्याल किया कि नहीं आपने!?
तो यह अयोध्या कम नहीं है येह!

अब जो रामजीका राज्याभिषेक होता है! तो यह अजोध्या है।

हरेक भाई-बहनसे कहना है कि आपलोग सब-हम आप, अजोध्यामें हैं,रामजीके राजगद्दीका उत्सव देखते हैं और अजोध्या*में हैं(तालियोंकी आवाजें)।रामजीसे बढकर रामजीकी कथा है।

-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके
19951003/1700 बजेवाले प्रवचनका अंश (यथावत)… ।


अपने यहाँ कथा हुई है रामजीका पाठ हुआ है…

(तो यह रामजीसे बढकर है,उस अयोध्यासे यह रामायण-पाठ तथा सत्संग-स्वरूपवाली अयोध्या बढकर है,तथा आप और हम सब उस अयोध्यामें रामजीके राज्याभिषेकका उत्सव देख रहे हैं।हम सब अयोध्यामें हैं।)

…तो कैसी मौजकी बात है।…

(*जोधपुरमें जो नौ दिनोंका सामूहिक रामायण-पाठ हुआ और उसमें 'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' पधारे,उस 'सत्संग-समारोह'को ही यहाँ 'अयोध्या' कहा गया है)।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रद्धेय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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रविवार, 6 दिसंबर 2015

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

                        ॥श्रीहरि:॥

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

भरद्वाज मुनि द्वारा भरतजीको कहे जानेके भाव-

सांसारिक भोग पदार्थ न्यायपूर्वक प्राप्त हुए हों और उनको स्वीकार करनेपर परमात्माको भी संतोष होता हो तो उसको स्वीकार करनेपर कोई दोष नहीं है,अच्छा है,लेकिन उनका त्याग करके कोई परमात्माकी तरफ चलता है तो यह और भी बहुत बढिया है,भगवानके भक्तको तो ऐसा ही करना चाहिये।

जो भगवानकी पूर्ण भक्ति प्राप्त करना चाहते हों,उनके लिये भरतजीका यह चरित्र उपदेश है,आदर्श है,रास्ता बतानेवाला है।

भगवानकी परा भक्ति कैसे प्राप्त हो,भक्तिके रास्ते कैसे चलना चाहिये-इसका श्रीभरतजीने श्रीगणेश कर दिया,चलना सिखाना शुरु कर दिया।अब भगवानके भक्तोंको चाहिये कि भरपेट यह अमृत पीलें।

भरतजीकी तरह न्यायपूर्वक प्राप्त भोग पदार्थोंका त्याग करके भगवानकी तरफ चलना चाहिये,भगवानकी भक्ति करनी चाहिये।

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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

(साधक-संजीवनी)परिशिष्टके सम्बन्धमें (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि।।

(साधक-संजीवनी)

परिशिष्टके सम्बन्धमें

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रीमद्भगवद्गीता एक ऐसा विलक्षण ग्रन्थ है , जिसका आजतक न तो कोई पार पा सका , न पार पाता है , न पार पा सकेगा और न पार पा ही सकता है । गहरे उतरकर इसका अध्ययन -मनन करनेपर नित्य नये-नये विलक्षण भाव प्रकट होते रहते हैं । गीता में जितना भाव भरा है , उतना बुद्धि में नहीं आता । जितना बुद्धि में आता है , उतना मन में नहीं आता । जितना मन में आता है , उतना कहने में नहीं आता । जितना कहने में आता है , उतना लिखने में नहीं आता । गीता असीम है ,पर उसकी टीका सीमित ही होती है । हमारे अन्तःकरण में गीता के जो भाव आये थे , वे पहले ' साधक संजीवनी ' टीका में लिख दिये थे। परन्तु उसके बाद भी विचार करनेपर भगवत्कृपा तथा संतकृपा से गीता के नये-नये भाव प्रकट होते गये । उनको अब 'परिशिष्ट भाव' के रूप में 'साधक -संजीवनी' टीका में जोड़ा जा रहा है।

'साधक -संजीवनी ' टीका लिखते समय हमारी समझमें निर्गुणकी मुख्यता रही ; क्योंकि हमारी पढाईमें निर्गुण की मुख्यता रही और विचार भी उसीका किया। परन्तु निष्पक्ष होकर गहरा विचार करनेपर हमें भगवान के सगुण ( समग्र) स्वरुप तथा भक्तिकी मुख्यता दिखायी दी | केवल निर्गुणकी मुख्यता माननेसे सभी बातोंका ठीक समाधान नहीं होता। परन्तु केवल सगुणकी मुख्यता माननेसे कोई संदेह बाकी नहीं रहता। समग्रता सगुणमें ही है , निर्गुण में नहीं। भगवान ने भी सगुणको ही समग्र कहा है - 'असंशयं समग्रं माम्' (गीता ७ |१ )।

परिशिष्ट लिखनेपर भी अभी हमें पूरा सन्तोष नहीं है और हमने गीतापर विचार करना बंद नहीं किया है। अतः आगे भवत्कृपा तथा संतकृपासे क्या-क्या नये भाव प्रकट होंगे - इसका पता नहीं ! परन्तु मानव - जीवन की पूर्णता भक्ति (प्रेम ) -की प्राप्ति में ही है - इसमें हमें किंचिन्मात्र भी संदेह नहीं है।

पहले ' साधक -संजीवनी ' टीकामें श्लोकोंके अर्थ अन्वयपूर्वक न करनेसे उनमें कहीं-कहीं कमी रह गयी थी। अब श्लोकोंका अन्वयपूर्वक अर्थ देकर उस कमीकी पूर्ति कर दी गयी है। अन्वयार्थ में कहीं अर्थको लेकर और कहीं वाक्यकी सुन्दरताको लेकर विशेष विचारपूर्वक परिवर्तन किया गया है।

पाठकों को पहलेकी और बाद की (परिशिष्ट) व्याख्यामें कोई अन्तर दीखे तो उनको बादकी व्याख्या का भाव ही ग्रहण करना चाहिये। यह सिद्धान्त है की पहलेकी अपेक्षा बादमें लिखे हुए विषयका अधिक महत्व होता है। इसमें इस बातका विशेष ध्यान रखा गया है कि साधकोंका किसी प्रकारसे अहित न हो। करण कि यह टीका मुख्यरूपसे साधकोंके हितकी दृष्टिसे लिखी गयी है , विद्वत्ता की दृष्टि से नहीं।

साधकोंको चाहिये कि वे अपना कोई आग्रह न रखकर इस टीकाको पढ़ें और इसपर गहरा विचार करें तो वास्तविक तत्व उनकी समझमें आ जायगा और जो बात टीकामें नहीं आयी है , वह भी समझ आ जायगी!

विनीत -
स्वामी रामसुखदास

('साधक-संजीवनी परिशिष्टका नम्र निवेदन' से)।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

धनसे(पुण्य करनेपर)  पुण्यलोक मिलते हैं,परमात्मा नहीं। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                        ॥श्रीहरि॥

धनसे(पुण्य करनेपर)  पुण्यलोक मिलते हैं,परमात्मा नहीं।

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

धनसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती है,धनके सदुपयोगसे होती है।

तो सदुपयोग अपने शक्ति है सो(धनकी शक्तिके अनुसार) करो, और वो (परमात्मप्राप्ति) भी वास्तवमें लगनसे(मिलती है)केवल धनसे नहीं मिलती है, धनसे पुण्य होता है, पुण्यलोक प्राप्त होते हैं- क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति (गीता ९।२१-पुण्य खर्च हो जानेपर मृत्युलोकमें आना पड़ता है)

तो भगवानके लिये आप लग जाओ तो भगवानकी प्राप्ति जरूर हो जाय।

मैं तो हे नाथ! आपको ही चाहता हूँ(इस प्रकार) निष्काम भावसे भगवानके भजनमें लग जायँ।…

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके 19940609/830 बजेवाले प्रवचनका अंश(यथावत)।

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श्रध्देय स्वामीजी श्री
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शनिवार, 21 नवंबर 2015

आज हम भगवानके हो गये। श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

                     ।।श्रीहरि।।

आज हम भगवानके हो गये।

-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।

बालक जैसे माँ से दूर होना नहीं चाहता,ऐसे हम भगवानसे दूर होना न चाहें-इतनी बात हमारी चाहिये।हम उनसे दूर होना न चाहें।उनको याद करेंगे,उनका नाम लेंगे,भगवानके बिना हमारा मन नहीं लगेगा।

जैसे लड़की ससुरालकी हो जाती है और निरन्तर ससुरालकी ही रहती है,कोई अन्तर नहीं पड़ता,ऐसे हम निरन्तर भगवानके रहें।

(अगर हम सच्चे हृदयसे भगवानके हो जायेंगे तो लड़की और बालककी तरह भगवान हमारेको निरन्तर याद रहेंगे)।

ऐसी बातें जाननेके लिये श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका

30/08/1994.518 बजेवाला प्रवचन सुनें।

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शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

गौ-हत्या रोकनेके लिये साधू सन्तोसे प्रार्थना।(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ॥श्रीहरि:॥

गौ-हत्या रोकनेके लिये साधू-सन्तोसे प्रार्थना।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

सभी साधु-संतों से मेरी प्रार्थना है कि अभी गायों की हत्या जिस निर्ममता से हो रही है, वैसी तो अंग्रेजों व मुसलमानों के साम्राज्य में भी नहीं होती थी । अब हम सभी को मिलकर इसे रोकने का पूर्ण रुप से प्रयास करना चाहिये । इस कार्य को करने का अभी अवसर है और इसका होना भी सम्भव है । गाय के महत्व को आप लोगों को क्या बतायें, क्योंकि आप तो स्वयं दूसरों को बताने में समर्थ हैं । यदि प्रत्येक महन्तजी व मण्डलेश्वरजी चाहें तो हजारों आदमियों को गोरक्षा के कार्य हेतु प्रेरित कर सकते हैं । 

आप सभी मिलकर सरकार के समक्ष प्रदर्शन कर शीघ्र ही गोवंश के वध को पूरे देश में रोकने का कानून बनवा सकते हैं । 

यदि साधु समाज इस पुनीत कार्यको हिन्दू-धर्म की रक्षा हेतु शीघ्र कर लें तो यह विश्वमात्र के लिये बड़ा कल्याणकारी होगा ।

अभी चुनाव का समय भी नजदीक है । इस मौकेपर आप सभी एकमत होकर यह प्रस्ताव पारित कर प्रदर्शन व विचार करें कि हर भारतीय इस बार अन्य मुद्दों को दरकिनार कर केवल उसी नेता या दल को अपना मत दे जो गोवंश-वध अविलम्ब रोकने का लिखित वायदा करे तथा आश्वस्त करे कि सत्ता में आते ही वे स्वयं एवं उनका दल सबसे पहला कार्य समूचे देश में गोवंश-वध बंद कराने का करेगा।

देशी नस्ल की विशेष उपकारी गायों के वशं तक के नष्ट होने की स्थिति पैदा हो रही है, ऐसी स्थिति में यदि समय रहते चेत नहीं किया गया तो अपने और अपने देशवासियों की क्या दुर्दशा होगी ? इसका अन्दाजा मुश्किल है ।

आप इस बातपर विचार करें कि वर्तमान में जो स्थिति गायों की अवहेलना करनेसे उत्पन्न हो रही है, उसके कितने भयंकर दुष्परिणाम होंगे।

अगर स्वतन्त्र भारत में गायों की हत्या-जैसा जघन्य अपराध भी नहीं रोका जा सकता तो यह कितने आश्चर्य और दु:ख का विषय होगा । आप सभी भगवान्‌ को याद करके इस सत्कार्य में लग जावें कि हमें तो सर्वप्रथम गोहत्या बन्द करवानी है, जिससे सभी का मंगल होगा । इससे बढ़कर धर्म-प्रचार का और क्या पुण्य-कार्य हो सकता है ।

पुन: सभी से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप सभी शीघ्र ही इस उचित समय में गायों की हत्या रोकने का एक जनजागरण अभियान चलाते हुए सभी गोभक्तों व राष्ट्रभक्तों को जोड़कर सरकार को बाध्य करके बता देवें कि अब तो गोहत्या बन्द करने के अतिरिक्त सत्ता में आरुढ़ होने का कोई दूसरा उपाय नहीं है । साथ ही यह भी स्पष्ट कर दें कि जनता-जनार्दन ने देश में गोहत्या बंद कराने का दृढ़ संकल्प ले लिया है ।

गाय के दर्शन, स्पर्श, छाया, हुँकार व सेवा से कल्याण, सुखद-अनुभव, सद्‌भाव एवं अन्त:करण की पवित्रता प्राप्त होती है । गाय के घी, दूध, दही, मक्खन व छाछ से शरीर की पुष्टि होती है व निरोगता आती है । गोमूत्र व गोबरसे पञ्चगव्य और विविध औषधियाँ बनाकर काम में लेने से अन्न,फल व साग-सब्जियों को रासायनिक विष से बचाया जा सकता है । गायों के खुरसे उड़नेवाली रज भी पवित्र होती है;जिसे गोधूलि-वेला कहते हैं, उसमें विवाह आदि शुभकार्य उचित माना जाता है । जन्म से लेकर अन्तकालतक के सभी धार्मिक संस्कारों में पवित्रताहेतु गोमूत्र व गोबर का बड़ा महत्व है ।

गाय की महिमा तो आप और हम जितनी बतायें उतनी ही थोड़ी है, आश्चर्य तो यह है सब कुछ जानते हुए भी गायों की रक्षा में हमारे द्वारा विलम्ब क्यों हो रहा है ? गायकी रक्षा करने से भौतिक विकासके साथ-साथ आर्थिक, व्यावहारिक, सामाजिक, नैतिक,सांस्कृतिक एवं अनेकों प्रकार के विकास सम्भव हैं, लेकिन गाय की हत्या से विनाश के सिवाय कुछ भी नहीं दिखता है । अतः अब भी यदि हम जागें तो गोहत्या को सभी प्रकार से रोककर मानव को होनेवाले विनाश से बचा सकते हैं । गो-सेवा, रक्षा,संवर्धन तथा गोचर भूमि की रक्षा करने से पूरे संसार का विकास सम्भव है । आज गोवध करके गोमांस के निर्यात से जो धन प्राप्त होता है उससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । इसलिये ऐसे गोहत्या से प्राप्त पापमय धन के उपयोग से कथित विकास ही विनाशकारी हो रहा है । यह बहुत ही गम्भीर चिन्ता का विषय है ।

अन्त में सभी साधु समाज से मेरी विनम्र प्रार्थना है कि अब शीघ्र ही आप सभी और जनता मिलकर गोहत्या बन्द कराने का दृढ़ संकल्प लेने की कृपा करें तो हमारा व आपका तथा विश्वमात्र का कल्याण सुनिश्चित है । इसी में धर्म की वास्तविक रक्षा है और धर्म-रक्षा में ही हम सबकी रक्षा है।

प्रार्थी
स्वामी रामसुखदास

(‘कल्याण’ वर्ष-७८, अंक ४)

(फेसबुक पर प्रकाशित Prem Kumar Azad की पोस्टसे साभार)

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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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मंगलवार, 17 नवंबर 2015

श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग की बातें(उनके ही श्रीमुखके भाव) यहाँ-इस ठिकानेपर पढें।

                        ॥श्रीहरि:॥

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग की  बातें(उनके ही श्रीमुखके भाव) यहाँ-इस ठिकानेपर पढें-

@महापुरुषों के सत्संग की बातें @ ('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के श्रीमुखके भाव)। -
http://dungrdasram.blogspot.in/p/blog-page_94.html?m=1

सोमवार, 16 नवंबर 2015

कृपया 'ज्ञानगोष्ठी' वाले सदस्यगण इधर ध्यान दें।

                     ॥ श्रीहरि:॥

कृपया ज्ञानगोष्ठी वाले सदस्यगण इधर ध्यान दें।

इस समूहमें कई आदरणीय,पूज्य संत-महात्मा हैं।कई आदरणीय  साधक,सत्संगी हैं।कई बड़े और कई छोटे भी हैं।कई शुरुआती और कई पुराने भी हैं।

(ये नियम इस एक नम्बरवाली ज्ञानगोष्ठीके लिये ही लागू हैं दूसरे नम्बरवालीके लिये नहीं)।

१.कई मैसेज एक साथ न भेजें।

२.लम्बे मैसेज न भेजें।

(अनावश्यक लम्बे पाठवाली सामग्री भेजकर लोगोंके मनमें विक्षेप न करें।यह कई लोगोंको बुरा लगता है)।

३. जो सामग्री ज्ञानगोष्ठीमें भेजी जा चूकी हो,कृपया उसे बार-बार न भेजें।

४.फालतू सामग्री न भेजें।

(हमारा प्रयास यह रहना चाहिये कि अपनी समझमें अच्छीसे अच्छी सामग्री भेजें)।

५.मनगढंत,कल्पित,असत्य सामग्री न भेजें।

६.कृपया ज्ञानगोष्ठीमें बिना पते-ठिकानेवाली बातें न भेजें,बिना प्रमाणकी निराधार सामग्री न भेजें।

(अमुक बात कहाँसे लिखी गई? अगर इसका उत्तर यह होता है कि पता नहीं,तो यह अज्ञानकी बात है।अज्ञानमें भी यही होता है कि पता नहीं।इसलिये अज्ञानकी बातें ज्ञानगोष्ठीमें न भेजें)।

७. सामग्री वही भेजें जो आवश्यक हो और जिससे लोगोंको प्रसन्नता हो,ज्ञान हो।

८. जिस सामग्रीमें कसम दिलायी गयी हो,वो सामग्री न भेजें।

९.इस बातका ध्यान रखें कि कई मैसेज एक साथ मिलाकर न भेजें।

१०.सकाम भाववाली सामग्री न भेजें।
विज्ञापनवाली सामग्री न भेजें।

११.एक-एक मैसेजका पता लिखा हुआ होना चाहिये कि यह अमुक महात्माकी वाणीसे लिया गया है अथवा यह अमुक पुस्तकसे लिया गया है आदि।

१२.एक नम्बरकी सामग्री वही है,जो श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज और सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दकाके सत्संगकी हो या उससे सम्बन्धित हो।


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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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मंगलवार, 3 नवंबर 2015

कुछ लेखों और प्रवचनोंके पते-ठिकाने-(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी सत्संग-सामग्री)।

                      ॥श्रीहरि:॥

कुछ लेखों और प्रवचनोंके पते-ठिकाने-

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी सत्संग-सामग्री)।

@सत्संग-संतवाणी@                            

सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/

@महापुरुषों के सत्संग की बातें @ ('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' के श्रीमुखके भाव)। -
http://dungrdasram.blogspot.in/p/blog-page_94.html?m=1

@सत्संग-संतवाणी@                      

महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें - 
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/01/blog-post_17.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

पहले गीता-पाठका पता-स्वर(-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज |
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_15.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

दूसरी प्रकारके गीता-पाठका पता-स्वर(-आवाज)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज |
http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_17.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

गीता-व्याख्या।व्याख्याता-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी  महाराज। http://dungrdasram.blogspot.com/2013/08/blog-post_14.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

गीता-माधुर्य(की रिकोर्डिंगका पता-)[लेखक और स्वर (बोलनेवाले)-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज]। http://dungrdasram.blogspot.com/2013/08/blog-post_7302.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

पता-नानीबाईका माहेरा (गायक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)| http://dungrdasram.blogspot.com/2013/08/blog-post_28.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

पुराने-प्रवचन शतक('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_53.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

प्रवचनोंकी तारीखें लिखनेका क्रम समझलें।(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके 'प्रवचन-समूह'के दिनांक समझलें)। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/01/blog-post_16.html

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पुराने-प्रवचन-परम श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के दुर्लभ (छूटे हुए) प्रवचन http://dungrdasram.blogspot.com/2013/09/blog-post_3586.html

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पाँच श्लोक-पाठ और आवाज|(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)|   http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_23.html

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पाँच श्लोक और उनका पाठ करवानेका कारण-एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज… http://dungrdasram.blogspot.com/2013/08/blog-post_7043.html

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विशेष-प्रवचन-'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'। http://dungrdasram.blogspot.com/2013/10/blog-post.html

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पता-'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'(पुस्तक- व्याख्या)
लेखक और बोलनेवाले -व्याख्या करनेवाले-
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज, बीकानेर २००१(2001)l (दिनांक-२००१०१२९ से २००१०२०८तकके प्रवचन)|| http://dungrdasram.blogspot.com/2014/01/2001l.html

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हरिःशरणम्(संकीर्तन-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी आवाजमें)! http://dungrdasram.blogspot.com/2013/10/blog-post_383.html

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१.नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका इकहत्तर दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट) ।।  http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_8.html

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अन्तिम प्रवचन-(ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके आषाढ़ कृष्ण द्वादशी, विक्रम सम्वत-२०६२, तदनुसार ३ जुलाई, २००५ को परमधाम पधारनेके पूर्व दिनांक २९-३० जून, २००५ को गीताभवन, स्वर्गाश्रम(हृषीकेश)में दिये गये अन्तिम प्रवचन) । http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog-post_27.html

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पता-(सत्संग संतवाणीका)… http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog-post_97.html

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सत्संग-स्वामी रामसुखदासजी महाराज।(के सत्संगके पते-ठिकाने आदि)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_37.html

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१-गीता 'साधक-संजीवनी'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) समझकर-समझकर पढनेसे अत्यन्त लाभ |  http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post.html

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गीता "साधक-संजीवनी परिशिष्ट"।लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_86.html

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'गीता-दर्पण'(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज), जो गीताजीका एक अद्वितीय शोधपूर्ण ग्रंथ है,उसको जरूर पढना चाहिये |  http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_6.html

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मुख्य-बातें (श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज

की मुख्य बातें )। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/04/blog-post_979.html

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'साधक-संजीवनी' की विषयसूची (लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/09/blog-post_87.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

पता-(★-: मेरे विचार :-★श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog-post_0.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

आवश्यक चेतावनी-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज।  http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog-post_13.html

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गुरु कैसा हो?-"साधक-संजीवनी"(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज) १३।७ से। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/08/blog-post.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

पता-(चतुर्दश मन्त्रका) http://dungrdasram.blogspot.com/2014/07/blog-post_26.html

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सच्ची और पक्की बात http://dungrdasram.blogspot.com/2014/05/httpswww.html

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अपनी फोटोका निषेध क्यों है?(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज अपनी फोटोका निषेध करते थे)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/11/book-google-httpsgroups.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

प्रभुसे प्रार्थना।(लेखक-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/02/blog-post_8.html

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महापुरुषोंके नामका,कामका और वाणीका प्रचार करें तथा उनका दुरुपयोग न करें , रहस्य समझनेके लिये यह लेख पढें -  http://dungrdasram.blogspot.com/2014/01/blog-post_17.html

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सात बार सीता और कुन्तीमाताका नित्यप्रति नाम लेनेसे कन्याएँ श्रेष्ठ बन जातीहै। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/07/blog-post_12.html

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क्या सुहागन स्त्रियोंको व्रत-उपवास नहीं करने चाहिये? http://dungrdasram.blogspot.com/2015/07/blog-post_11.html

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सूवा-सूतकमें भगवानकी पूजा करें अथवा नहीं?

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया है कि करें (बिना प्राण-प्रतिष्ठावाली मूर्तिकी करें)। http://dungrdasram.blogspot.com/2015/08/blog-post_17.html

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वोट किसको दें?
सन् 1993 में 3 अक्टूबर रात्रि 8 बजे 'श्रध्देय स्वामीजी रामसुखदासजी महाराज'ने जोधपुरमें बड़े जोरसे कहा है कि जो गऊओंकी रक्षा करे,राममन्दिर और हिन्दुओंके हितका वादा करे;
वोट उसीको दें।
वो प्रवचन सुननेके लिये इस पते(लिंक) पर जायें-

https://www.dropbox.com/sh/mxhiwiqx131rz5m/A60wDKHQc- http://dungrdasram.blogspot.com/2014/04/1993-3-8.html

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स्मार्त जन्माष्टमी आदि और वैष्णव जन्माष्टमी,एकादशी आदि  क्या होती है? http://dungrdasram.blogspot.com/2014/08/blog-post_21.html

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लहसुन,प्याज और गाजरका निषेध क्यों है? http://dungrdasram.blogspot.com/2014/10/blog-post_5.html

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संत-वाणीकी रक्षा करें-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी शीघ्र कल्याणकारी वाणीको सुरक्षित करें,उनमें कोई काँट-छाँट न करें,सेट पूरा रहने दें,अधूरा न करें। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_72.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

संत-वाणी यथावत रहने दें,संशोधन न करें|('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत रहने दें,संशोधन न करें)। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_30.html

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'परम श्रध्देय सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' और 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' का मिलन। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/11/blog-post_68.html

@सत्संग-संतवाणी@                      

१.गीताजी कण्ठस्थ,याद करनेका उपाय। http://dungrdasram.blogspot.com/2014/12/blog-post_10.html

सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/