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रविवार, 6 दिसंबर 2015

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

                        ॥श्रीहरि:॥

भरत-चरत्रसे भक्तिका उपदेस(अयोध्याकाण्ड २०६ से आगे)।

भरद्वाज मुनि द्वारा भरतजीको कहे जानेके भाव-

सांसारिक भोग पदार्थ न्यायपूर्वक प्राप्त हुए हों और उनको स्वीकार करनेपर परमात्माको भी संतोष होता हो तो उसको स्वीकार करनेपर कोई दोष नहीं है,अच्छा है,लेकिन उनका त्याग करके कोई परमात्माकी तरफ चलता है तो यह और भी बहुत बढिया है,भगवानके भक्तको तो ऐसा ही करना चाहिये।

जो भगवानकी पूर्ण भक्ति प्राप्त करना चाहते हों,उनके लिये भरतजीका यह चरित्र उपदेश है,आदर्श है,रास्ता बतानेवाला है।

भगवानकी परा भक्ति कैसे प्राप्त हो,भक्तिके रास्ते कैसे चलना चाहिये-इसका श्रीभरतजीने श्रीगणेश कर दिया,चलना सिखाना शुरु कर दिया।अब भगवानके भक्तोंको चाहिये कि भरपेट यह अमृत पीलें।

भरतजीकी तरह न्यायपूर्वक प्राप्त भोग पदार्थोंका त्याग करके भगवानकी तरफ चलना चाहिये,भगवानकी भक्ति करनी चाहिये।

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सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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