भगवान् के तो जन्म दिवस पर और महात्माओं के निर्वाण दिवस पर उत्सव मनाया जाता है; क्योंकि इस दिन उन सन्तों का भगवान् से मिलन हुआ है। इसलिये बरसी मनाई जाती है। बरसी मनाना अच्छा काम है, परन्तु श्रीस्वामीजी महाराज ने अपनी बरसी आदि का निषेध (मना) किया है, इसलिये यह अच्छा काम होने पर भी नहीं करना चाहिये।
आजकल कई लोग गुप्त या प्रकटरूप से कुछ अंश में श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज की बरसी मनाने लग गये, जो कि उचित नहीं है।
इस दिन कोई तो कीर्तन करते हैं और कोई गीतापाठ आदि का प्रोग्राम रखते हैं। (मानो वो इस प्रकार बरसी मनाते हैं)।
लेकिन इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि बरसी के लिये श्रीस्वामीजी महाराज ने मना किया है।
"एक संतकी वसीयत" नामक पुस्तक के दसवें पृष्ठ पर बरसी आदि का निषेध करते हुए लिखा है कि-
" जब सत्रहवीं का भी निषेध है तो फिर बरसी (वार्षिक तिथि) आदि का भी निषेध समझना चाहिये। "
इस में बरसी के लिये मना लिखा है, फिर भी लोग बरसी मनाते हैं, चाहे आंशिक रूप से ही हो। इससे लगता है कि या तो उन लोगों को इस बात का पता नहीं है या वे इस बात की परवाह नहीं करते अथवा यह भी हो सकता है कि लोगों ने ध्यान देकर इस पुस्तक को पढ़ा नहीं। नहीं तो जिस काम के लिये महापुरुषों ने मना किया है, वो क्यों करते?
इसलिये कुछ अंश में लोग जो बरसी मनाने लगे हैं, वो भूल में हैं। कीर्तन, गीतापाठ आदि करना तो अच्छा काम है, भले ही रोजाना करो; पर बरसी के उद्देश्य से कोई ये करते हैं तो यह ठीक नहीं है। उनको विचार करना चाहिये। इसी प्रकार अन्य कामों में भी समझना चाहिये।■
('महापुरुषोंकी बातें और कहावतें' नामक पुस्तक से)
____________________________
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें