शुक्रवार, 8 मई 2015

(संसारकी याद) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                        ।।श्रीहरि:।।

(संसारकी याद) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है।

(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

प्रश्न-
संसार की स्मृति (याद) मिटती नहीं है, क्या करें ?

(स्वामीजी -)

(संसारकी स्मृति) मिटती नहीं; तो इसमें कारण है कि संसार को सत्य माना है। अच्छा,
आपको स्वप्न क्या आया था,बता सकते हो? रात स्वप्न आया, परसों रातने (को) आया, वो स्वप्न बताओ; क्या आया?

  (श्रोता -
नहीं बता सकते)।

(स्वामीजी -)
क्यों?

(श्रोता -)
याद नहीं रहता है वो ।

तो उसमें बुद्धि आपकी 'है  वो' - यह (बुद्धि) है ही नहीं;जागते हुए, जगे है ही नहीं। तो स्मृति नहीं रहती। 'है' (सत्य) मानते हो तब स्मृति रहती है।
-
सुपना सा हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम।
हो सचेत बलदेव नींद से जप ईश्वरका नाम॥
मनुषतन फिर फिर नहिं होई॥
ऊमर सब गफलत में खोई,
किया शुभकरम नहीं कोई ॥
...

(--श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के
दि.२८-४-१९९५ _१६०० बजे वाले सत्संग प्रवचन से)।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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