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बुधवार, 20 मई 2015

परम हितैषी,भगवान अचिन्त्यरूपसे अपने भक्तकी रक्षा करते हैं।

                      ।।श्रीहरि:।।

परम हितैषी,भगवान अचिन्त्यरूपसे अपने भक्तकी रक्षा करते हैं।

आपने रघुनाथ भक्तकी कथा सुनी या पढी  होगी।यह कथा 'भक्त पञ्चरत्न' नामक पुस्तकमें है और

'श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज' भी कहते थे।

(…कि) जब वो दौनों (पति-पत्नि) चारों ओरसे शत्रुओं द्वारा घिर गये और पत्नि डरने लगी तो रघुनाथ भक्तने उपालम्भ (ओलबा) देते हुए कहा कि प्रिये! (अपने परम हितैषी, भगवान् के मौजूद रहते हुए भी तुम) डरती हो! ? डरो मत।डरना है-यह भगवानका तिरस्कार करना है।

…और उसी समय अचिन्त्य रूपसे भगवान् ने आकर उन दौनोंकी रक्षा की।

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