शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

सनातन-धर्मकी विशेषता('श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज')।

                ।।श्रीहरि:।।

एक विनम्र सुझाव है कि साधक-संजीवनीकी कमसे कम एक बात लिखना शुरु करदें।वो अगर दूसरोंको भी भेजेंगे, तो और भी बढिया हो जायेगा।सप्ताह भरमें,जब भी आपको समय मिले,तब ऐसा कर सकते हैं।

उदाहरणके लिये नीचे पढें-


सनातन-धर्मकी विशेषता-

…तथापि हमारी सनातन वैदिक संस्कृति ऐसी विलक्षषण है कि कोई भी कार्य करना होता है,तो वह धर्मको सामने रखकर ही होता है।युध्द-जैसा कार्य भी धर्मभूमि-तीर्थभूमिमें ही करते हैं,जिससे युध्दमें मरनेवालोंका उध्दार हो जाय, कल्याण हो जाय।अत: यहाँ कुरुक्षेत्रेके साथ 'धर्मक्षेत्रे' पद आया है।

साधक-संजीनी (लेखक- 'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज') पहला अध्याय श्लोक १ की व्याख्यासे।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/

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