शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

(१५)-'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' से सम्बन्ध

                        ।।श्रीहरिः। ।

(१५)-'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' से सम्बन्ध-

(पहली बार मिलने के बाद) फिर हम (चूरूसे) गीताप्रेस गोरखपुर आये। वहाँ कई दिन रहे। सत्संग हुआ। फिर ऋषिकेशमें सत्संग हुआ और इस प्रकार श्री सेठजी और हमारे जल्दी ही भायला (मित्रता, अपनापन) हो गया, कोई पूर्व(जन्म)के संस्कार होंगे(जिसके कारण जल्दी ही प्रेम हो गया)।

श्री सेठजीको मैं श्रेष्ठ मानता था। लोग पहले उनको आपजी-आपजी(नामसे) कहते थे। मैं उनको श्रेष्ठ कहता था। फिर लोग भी श्रेष्ठ-श्रेष्ठ कहते-कहते सेठजी कहने लग गये।

एक बार सेठजी बोले कि स्वामीजीने हमको सेठ(रुपयोंवाला) बना दिया। मैंने कहा कि मैं रुपयोंके कारण सेठ नहीं कहता हूँ, रुपयेवाले तो और भी कई बैठे हैं, (जिनके पास रुपये सेठजीसे भी ज्यादा है)। मेरा सेठ कहनेका मतलब है- श्रेष्ठ।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/11/blog-post_42.html

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