19940512-
अस्सी बरसरो डोकरो जाय जगतरी जान।
ब्यायाँरी गाळ्याँ सुणै कर कर ऊँचा कान।।
कर कर ऊँचा कान मानरो मार्यो मरहै।
जो नहिं देवै गाळ उणाँसूँ जायर लड़है।।
टको पईसो खरचकै राखै अपनौ मान।
अस्सी बरसरो डोकरो जाय जगतरी जान।।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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