शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

(१०)- श्री मंगलनाथजी महाराजसे 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' को प्रेरणा

                     ।।श्रीहरिः। ।

(१०)- श्री मंगलनाथजी महाराजसे 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' को प्रेरणा -

  श्री सेठजीके जीवन पर मंगलनाथजी महाराजका बड़ा असर पड़ा। ऐसा उन्होने स्वयं कहा है। वो संस्कृतके बड़े विद्वान भी थे और संत भी थे। उनके संतत्वकी छाप गोयन्दकाजी पर पड़ी (प्रभाव पड़ा) और विद्वत्ताकी छाप हमारे विद्यागुरुजी पर पड़ी। वो कहते थे कि बहुत बड़ा निर्णय मंगलनाथजी महाराज करते थे। वो साधूवेषमें थे।

वो चूरू आये थे, तो उनकी मुद्रा, उदासीनता, तटस्थता और विरक्ति बड़ी विलक्षण थी। सेठजीने कहा कि (वो देखकर) मेरेपर असर पड़ा। वो(श्री सेठजी उनको) भावसे गुरु मानते थे, शिष्य-गुरुकी दीक्षा आदि नहीं (ली थी, उनसे दीक्षा नहीं ली थी, उनको मनसे गुरु मानते थे)। (श्री सेठजी कहते हैं कि) उनसे मेरे जीवनपर असर पड़ा। इस तरहसे श्री सेठजी बड़े विचित्र थे।

{मुद्रा –
मुख, हाथ, गर्दन, आदि की कोई विशेष भाव सूचक स्थिति को मुद्रा कहते हैं। (बृहत हिन्दी कोश से)}।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/11/blog-post_42.html

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