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शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

(१४)- 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' द्वारा गीताप्रेस खोला जाना

                   ।।श्रीहरिः। ।

(१४)- 'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' द्वारा गीताप्रेस खोला जाना -

 गीताप्रेस कैसे हुआ?

'सेठजी श्री जयदयालजी गोयन्दका' गीताजीके भाव कहने लगे। गहरा विवेचन करने लगे। तो कह, गीताजीकी टीका लिखो। तो गीताजीकी टीका लिखी गई- साधारण भाषा टीका। वो गोयन्दकाजीकी लिखी हुई है। उस पर लेखकका नाम नहीं है। वो छपाने लगे कलकत्ताके वणिकप्रेस में। छपनेके लिये मशीनपर फर्मा चढ़ गया, (छपने लगा), उस समय अशुद्धि देखकर कि भाई! मशीन बन्द करो, शुद्ध करेंगे। (मशीन बन्द करके शुद्धि की गई)।

ऐसे (बार-बार मशीन बन्द करवाकर शुद्ध करनेसे) वणिकप्रेस वाले तंग आ गये कि बीचमें बन्द करनेसे, ऐसे कैसे काम चलेगा? मशीन खोटी (विलम्बित) हो जाती है हमारी। ऐसी दिक्कत आयी छपानेमें।

तब विचार किया कि अपना प्रेस खोलो। अपना ही प्रेस, जिसमें अपनी गीता छाप दें। तब गीताप्रेस खोला।
{विक्रम संवत १९८० में यह गीताप्रेस गोरखपुर (उत्तर-प्रदेश) में खोला गया}।

http://dungrdasram.blogspot.com/2014/11/blog-post_42.html