बुधवार, 23 मई 2018

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।

                            ।।श्रीहरिः। ।

  श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचनोंकी हस्तलिखित सामग्री ।


श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के बहुत वर्षों के सत्संग- प्रवचनों वाले हाथ से लिखे हुए (अप्रकाशित) रजिस्टर पङे हुए हैं । वो श्री महाराज जी के रिकोर्ड किये हुए सत्संग- प्रवचनों को टेप के द्वारा सुन-सुन कर उन प्रवचनों के अनुसार लिखे गये हैं ।

श्री महाराज जी कभी-कभी लोगों को लिखने के लिये कह भी देते थे।

कभी-कभी तो ऐसा अवसर आता कि लिखने वाले उपस्थित न रहने के कारण सब प्रवचन लिखने में कठिनता होती; तो लिखवाने वालों के पूछने पर श्री महाराज जी  कह देते कि सिर्फ प्रातः पाँच बजे वाले प्रवचन ही (रोजना के) लिख लो (पर लिखो अवश्य)।

एक बार तो प्रवचन लिखने वाले एक सज्जन श्री महाराज जी से बोले कि बहुत वर्षों के लिखे हुए ढेर सारे हस्तलिखित रजिस्टर पहले के भी पङे हुए हैं। वे भी पूरे पुस्तक रूप में छपवाये नहीं जा रहे हैं। यह देखकर लिखने का उत्साह नहीं हो रहा है। इसलिये मनमें आती है कि रोजाना के सब प्रवचन लिखना बन्द कर दें और कभी-कभी कोई विशेष प्रवचन हों तो उन-उन को ही लिख लें।

ऐसा कहने पर भी श्री महाराज जी ने लिखने का काम बन्द नहीं करने दिया और लिखवाते रहे। (शायद इसलिये कि आगे जब कभी ऐसा अवसर आये तो ये प्रवचन पुस्तक रूप में छपवाये जा सके। सामग्री उपलब्ध रहेगी तभी तो छपवा सकेंगे और यदि सामग्री ही नहीं होगी तो क्या छपवायेंगे)।

जबकि बिना मन के किसी से ऐसा करवाना उनको पसन्द नहीं था, महाराज जी के लिये यह बङे संकोच की बात थी। फिर भी लोकहित के लिये वो यह सत्संग प्रवचन लिखवाने का काम करवाते रहे।

महापुरुषों ने कृपा करके जो सामग्री तैयार करवायी थी, वो सामग्री अभी तो उपलब्ध है । उनकी कोई फोटो काॅपी भी करवायी हुई नहीं है। मूल रूप में ही पङी है। अगर पाँच- दस प्रवचनों की सामग्री भी क्षतिग्रस्त हो गई तो दुबारा प्राप्त कर लेना हाथ की बात नहीं है ; क्योंकि उनकी कोई प्रतिलिपि नहीं है।

भविष्य में न जाने कैसा समय आये और यह पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाने वाला काम हो पाये या न हो पाये।

यह सामग्री ऐसे ही पङी न रह जाय। पङी- पङी सामग्री बेकार भी हो जाती है तथा पुरानी होकर नष्ट भी हो जाती है।

उनको पुस्तक या पत्रिका आदि के रूप में क्रमशः छपवाकर लोगों तक पहुँचाया जाय तो दुनियाँ की बङी भारी सेवा होगी। बङा भारी काम हो जायेगा।

यह भगवान् और महापुरुषों की भी बङी सेवा है। इस सामग्री के कुछ लेख तो पुस्तक रूप में प्रकाशित हुए थे ; लेकिन बहुत सारी सामग्री अभी-भी अप्रकाशित ही पङी है।

कई लोगों को तो इस सामग्री का पता भी नहीं है। कुछ लोगों को पता है पर वो भी मूकदर्शक-से ही बने हुए हैं। काम कुछ नहीं हो पा रहा है।

(वो लिखी हुई सामग्री पहले बीकानेर आदि में थी। अब वो गीताप्रेस गोरखपुर में है। लेकिन वहाँ भी उनका कोई काम होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है। सुना है कि (उनका महत्त्व न समझने के कारण ) वहाँ भी भाररूप में ही पङी है । उस सामग्री के कारण जगह रुकी हुई लगती है)। 

इसलिये हमलोगों को चाहिये कि प्रयास करके, पुस्तक आदि छपवा कर के वो सामग्री लोगों तक पहुँचायें।

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