॥श्रीहरिः॥
अभेद-भक्ति और अभिन्नता आदि का रहस्य।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।
अभेद भक्ति आदि का रहस्य जानने के लिये कृपया श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का यह (19931130_0518_prem aur bhakti) प्रवचन सुनें।
इस प्रवचन को मन लगाकर बार-बार सुनने से और भी रहस्य की कई उपयोगी बातें समझमें आयेंगी।
जैसे-
ज्ञानयोग और कर्मयोग तो साधक की स्थिति (निष्ठा) है पर भक्ति भक्त की निष्ठा नहीं, वो तो भगवान की निष्ठा- स्थिति (भगवान्निष्ठ) है।
साधन-भक्ति और साध्य-भक्ति, नौ प्रकार की साधन-भक्ति और उससे आगे साध्य-भक्ति,परा-भक्ति, प्रेमा-भक्ति, भेद-भक्ति, अभेद-भक्ति, (साधन-भेद-भक्ति, साध्य-भेद-भक्ति, साधन-अभेद-भक्ति, साध्य-अभेद-भक्ति।
श्रीराधाकृष्णकी अभिन्नता और भिन्नता; कृष्ण,राधा,भक्त,जीव और संसार आदि- सभी की अभिन्नता और भिन्नता तथा जीव की विमुखता।
करने का अहंकार भक्ति में बाधक।करना,होना और है की बात।
गीता में 'मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु' (९।३४; १८।६५) वाली भक्ति का क्रम- यूँ बताया (१) पहले मेरे को नमस्कार कर फिर (२) मेरा पूजन करने वाला हो तथा (३) मेरे में मन लगाने वाला हो और चौथी बात कि (४) मेरा भक्त हो आदि आदि।
http://dungrdasram.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें