।।श्रीहरि:।।
सत्संग-यात्रासे लोगोंको आश्चर्य।
(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे)।
एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।जहाजसे ब्रह्मपुत्रनदको पार करनेवाले थे,इस किनारे बैठे थे। उस समय एक सज्जनने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।कह,सत्संगके लिये?
सुनकर उनको बड़ा आश्चर्य आया कि सत्संगके लिये भी मुसाफिरी होती है!(यात्रा की जाती है?)
व्यापारके लिये होती है,काम-धन्धेके लिये होती है,छौरा-छौरीके सम्बन्धके लिये मुसाफिरी होती है।सत्संगके लिये भी क्या कोई मुसाफिरी होती है?कह,होती है।
(-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज(दिनांक 19950601/830 बजे)के सत्संग-प्रवचनसे) ।
(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)
गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
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