एक बार श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज सत्संग-प्रोग्रामके लिये आसाम गये।ब्रह्मपुत्रनदको पार किया। उस समय किसीने पूछा कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं?
उत्तर मिला कि सत्संगके लिये जा रहे हैं ।
सुनकर लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ कि सत्संगके लिये भी यात्रा की जाती है?
अर्थात् सत्संगके लिये इतने प्रयासकी क्या जरुरत है जो इतनी दूरसे चलाकर आयें। (-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे) ।
(उनको यह पता ही नहीं है कि सत्संगभी एक लाभ होता है जिसकी बराबरी दूसरा कोई भी लाभ नहीं कर सकता-)
गिरजा संत समागम सम न लाभ कछु आन ।
बिनु हिर कृपा न होइ सो गावहिं बेद पुरान ॥
रामचरितमा.उ.१२५(ख)॥