२.भाषा,
३.वेष,
४.रोटी और
५.बेटी
इस जगतमें अगर संत-महात्मा नहीं होते, तो मैं समझता हूँ कि बिलकुल अन्धेरा रहता अन्धेरा(अज्ञान)। श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजीमहाराज की वाणी (06- "Bhakt aur Bhagwan-1" नामक प्रवचन) से...
।।श्रीहरि:।।
विशेष-प्रवचन।
'श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके विशेष कैसेटोंके ७१ सत्संग-प्रवचन चुने गये हैं।इनके नाम (विषय) भी लिखे हुए हैं और आवाज भी साफ है।
वो ७१ प्रवचन यहाँ(इस पते)से) प्राप्त करें-
http://db.tt/FzrlgTKe
------------------------------------------------------------------------------------------------
पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/
(भगवान् कहते हैं-) कि जो मेरा भजन करता है,उसका मैं सर्वनाश कर देता हूँ,पर फिर भी वह मेरा भजन नहीं छोड़ता तो मैं उसका दासानुदास (दासका भी दास) हो जाता हूँ-
जे करे अमार आश,तार करि सर्वनाश|
तबू जे ना छाड़े आश,तारे करि दासानुदास||
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजकी 'अनन्तकी ओर'पुस्त्कसे
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजका सत्संग ( SATSANG GITA AADI -S.S.S.RAMSUKHDASJI MAHARAJ )और गीता-पाठ,गीता-गान(सामूहिक आवृत्ति),गीता-माधुर्य(उन्हीकी आवाजमें),गीता-व्याख्या(करीब पैंतीस दिनोंका सेट),कल्याणके तीन सुगम मार्ग[नामक पुस्तककी उन्हीके द्वारा व्याख्या],नानीबाईका माहेरा,भजन,कीर्तन,पाँच श्लोक(गीता ४/६-१०),गीता 'साधक-संजीवनी' तथा नित्य-स्तुति,गीता,सत्संग(-श्रध्देय
स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजके
71दिनोंका सत्संग-प्रवचन सेट),मानसमें नाम-वन्दना आदि आप यहाँके इस पतेसे प्राप्त करें- http://db.tt/v4XtLpAr
प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः
प्रारभ्य विघ्नविहिता विरमन्ति मध्याः|
विघ्नैःपुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः
प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति||
(मुद्राराक्षस २/१७)
'नीच मनुष्य विघ्नोंके डरसे कार्यका आरम्भ ही नहीं करते हैं|मध्यम श्रेणीके मनुष्य कार्यका आरम्भ तो कर देते हैं,पर विघ्न आनेपर उसे छोड़ देते हैं|परन्तु उत्तम गुणोंवाले मनुष्य बार-बार विघ्न आनेपर भी अपना (प्ररम्भ किया हुआ) कार्य छोड़ते नहीं|'
-श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्षमीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् |
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ||
(भर्तृहरिनीतिशतक)
'नीति-निपुण लोग निन्दा करें अथवा स्तुति(प्रशंसा),लक्षमी रहे अथवा जहाँ चाहे चली जाय और मृत्यु आज ही हो जाय अथवा युगान्तरमें,अपने उध्देश्यपर दृढ रहनेवाले धीर पुरुष न्यायपथसे एक पग भी पीछे नहीं हटते|'
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजके सत्संग-प्रवचनसे