।।श्रीहरि:।।
चतुर्दश मन्त्र-
(श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराज)।
द्वारा प्रकट किया हुआ चतुर्दश मन्त्र-
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
{राम(१) राम(२) राम(३) राम(४) राम(५) राम(६) राम(७) ।
राम(८) राम(९) राम(१०) राम(११) राम(१२) राम(१३) राम(१४) ।।}
संकीर्तनमें मन कैसे लगे?
इसके लिये श्री स्वामीजी महाराजने यह तरकीब (अटकऴ) बतायी है कि भगवानके गुण और लीलायुक्त नाम जोड़-जोड़कर इस चतुर्दश मन्त्रका कीर्तन करें।
जैसे -
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
आप ही हो एक(१) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सदा(२) ही हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सर्वसमर्थ(३) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
परम सर्वज्ञ(४) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सर्वसुहृद(५) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सभीके(६) हो आप प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
सर्व व्यापक(७) प्रभु राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
परम दयालु प्रभु(८) राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
राम राम राम राम राम राम राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
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श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा (भगवानमें श्रध्दा विश्वास होनेके लिये) बताये गये भगवानके सात* प्रभावशाली विशेष नाम---
जब साधक यह स्वीकार करता है कि परमात्मा अद्वितीय है, सदा है, सर्वसमर्थ है, सर्वज्ञ है, सर्वसुहृद है, सभीका है और सब जगह है, तब उसकी परमात्मापर स्वत: श्रध्दा जाग्रत हो जाती है।
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज द्वारा लिखित 'कल्याणके तीन सुगम मार्ग'नामक पुस्तक (पृष्ठ संख्या ३०) से।
[ऊपर इन नामोंके साथ कीर्तन करनेका प्रकार बताया गया है]।
पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें। http://dungrdasram.blogspot.com/
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