॥श्रीहरि:॥
लेखक का नाम हटाना या बदलना अपराध है।
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है तथा उनका नाम दूसरों की बातों में जोड़ना भी अपराध है)।
आजकल कई लोग श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के नाम की आड़ में दूसरों की बातें लिख देते हैं और
कई-कई तो अपने मन से, अपनी समझ की (मन गढन्त) बात लिख कर उस पर नाम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज का लिख देते हैं कि यह बात उनकी है।
सज्जनों! यह बड़ा भारी अपराध है और झूठ है।
इस प्रकार झूठी बातें लिखने से उन बातों पर से लोगों का विश्वास हट जाता है और ऐसी झूठी बातों के कारण कभी- कभी सच्ची बातों पर भी विश्वास नहीं होता।
इससे सत्य बात के भी आड़ लग जाती है और उस पर लोगों का विश्वास नहीं रहता ( जो लोगों के कल्याण की सामग्री में बड़ा भारी नुकसान है)।
अब यह पता कैसे चले कि यह बात वास्तव में श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज की ही है या किसी ने अपने मन से गढ़ कर लिख दी और उस पर नाम श्री स्वामीजी महाराज का लिख दिया।
सन्देह हो जाने पर उस पर विश्वास कैसे किया जायेगा? विश्वास तो तभी होगा न जब कि उस पर कोई पुस्तक के लेख या प्रवचन की तारीख का प्रमाण लिखा हुआ हो।
विश्वास करने लायक बात वही है जो किसी पुस्तक के लेख या तारीख सहित प्रवचन से लेकर लिखी गयी हो, अथवा स्वयं उनके श्रीमुख से सुनी गयी हो।
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के जिन लेखों और बातों में किसी पुस्तक या प्रवचन आदि का प्रमाण लिखा हुआ नहीं हो, तो वो हमें स्वीकार नहीं है)।
जिस बात या लेख में लेखक का नाम दिया गया हो,कृपया उसको हटावें नहीं और उस लेखक की जगह दूसरे लेखक का नाम भी न देवें। लेखक का नाम हटाना अपराध है।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के लेखों और बातों से उनका नाम हटाना अपराध है और दूसरों की बातों में या अपनी बातों में उनका नाम जोड़ना भी अपराध है, जो कि पाप से भी भयंकर है।
(ऐसे ही कई लोग उनके रिकोर्डिंग प्रवचन में से उस प्रवचन की तारीख और श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज का नाम हटा देते हैं।
श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज की रिकोर्डिंग वाणी में से उस प्रवचन की तारीख हटाना उनका वचन भंग करना है; क्योंकि यह प्रवचन के साथ तारीख रिकोर्ड करके जोड़ने वाली व्यवस्था श्री स्वामीजी महाराज ने ही करवायी थी जिससे कि अगर ऊपर तारीख लिखने में भूल भी हो जाय तो भीतर (रिकोर्डिंग के साथ तारीख जुड़ी होने से) सही तारीख का पता लग जाय।
(मेरे (डुँगरदास राम के) सामने की बात है कि श्री महाराज जी से पूछा गया कि प्रवचन की कैसेटों पर लिखी हुई तारीख कभी-कभी साफ नहीं दीखती है। मिट भी जाती है। लिखने में भी भूल से दूसरी तारीख लिख दी जाती है। ऐसे में सही तारीख का पता कैसे लगे? इसके लिये क्या करें?
तब श्री महाराज जी बोले कि प्रवचन के साथ ही (भीतर में) रिकोर्ड करदो। (तब विशेषता से ऐसा किया जाने लगा, ध्यान रखा जाने लगा )।
ऐसे ही श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज के उस प्रवचन में से उनका नाम भी नहीं हटाना चाहिये)।
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज बताते हैं कि एक तो होता है पाप और एक होता है अपराध।
अपराध पाप से भी भयंकर होता है। पाप तो उसका फल भुगतने से मिट जाता है; परन्तु अपराध नहीं मिटता।
अपराध तो तभी मिटता है कि जब वो (जिसका अपराध किया गया है वो) स्वयं माफ करदे।
अधिक जानने के लिये कृपया नीचे दिये गये पते वाला यह लेख पढ़ें -
संत-वाणी यथावत् रहने दें,संशोधन न करें|('श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज'की वाणी और लेख यथावत् रहने दें,संशोधन न करें)।
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http://dungrdasram.blogspot.in/2014/12/blog-post_30.html?m=1
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