बुधवार, 26 अप्रैल 2017

सब समय में भगवान का स्मरण कैसे करें? (-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)।

                      ॥श्रीहरि:॥

सब समय में भगवान का स्मरण कैसे करें?
(-श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज)। 

दिनांक ५-८-१९९५ के प्रातः पाँच बजे वाले प्रवचन में श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने बताया कि

... तो सब समय में  स्मरण कैसे करें?

तो एक बात है खास। जो मैंने कही है।  मनुष्य को अपना एक उद्देश्य बना लेना चाहिये। एक ध्येय, एक लक्ष्य कि मेरे को तो भगवत्प्राप्ति ही करना है,अपना कल्याण ही करना है; क्योंकि कल्याण के लिये ही मानव शरीर मिला है।

हमें धन कमाना है,हमें तो मान कमाना है, हमें (तो) भोग भोगना है  -ये आप कर लेते हो; पण (पर) भोगों के लिये, मान-बड़ाई के लिये (मानव-) शरीर मिला नहीं है। मिला तो कल्याण के लिये ही है । तो यह लक्ष्य अभी बना लेना चाहिये। (तो) इससे क्या होगा ? (कि) जो कल्याण के विरुद्ध बात होगी आप उसे (आप-से आप) नहीं करोगे।

जैसे लोभी आदमी धन के लिये काम करता है। तो  जानकर नुकसान  (घाटे) का काम करेगा क्या वो? जानकर घाटा लगे जैसा काम करेगा? (नहीं करेगा) धन चाहता है वो कैसे करेगा? ऐसे ही कल्याण चाहते हो तो अभी कल्याण का उद्देश्य बन जाने से कल्याण में बाधा वाला काम आप से होगा ही नहीं।

... तो लोग खुल्ले रहते हैं। हमारे सामने तो कई आदमियों ने कहा है ऐसा। क्या हुआ?..    (कह,) महाराज! हम तो गृहस्थी हैं। आपको ऐसे करना चाहिये हम तो गृहस्थी हैं। तो गृहस्थों को कहाँ छुट्टी दी है? आपने ले ली छुट्टी। गृहस्थ के ऐसा नहीं है। साधू को ऐसा करना चाहिये। गृहस्थ तो खुल्ला है ... करे क्या। कहीं आया है ऐसा? (कहीं शास्त्र में विधान आया है क्या ऐसा?) पर मनमें खुल्ला मानते हैं।

तो खुल्ला मानते हैं तो खुल्ला होगा, पाप भी होगा पुण्य भी होगा;अच्छा भी (होगा) मन्दा भी (होगा) सब तरह के (होंगे) खुल्ला है यह तो। तो ऐसे खुल्ला नहीं रखना चाहिये। खुल्ला तो चौरासी लाख जूणी (योनि) के लिये है। मनुष्य के लिये यह खुल्ला नहीं है। मनुष्य तो परमात्मा की प्राप्ति के लिये ही बनाया गया है।

(आगे बताया कि साधक तो मनुष्य ही होता है। ब्रह्म (चेतन) साधक नहीं होता और जड़ भी साधक नहीं होता। साधक होता है मनुष्य)।

[ इस प्रकार उद्देश्य एक (- भगवत्प्राप्ति का) होगा तो सब समय में स्मरण रहेगा ] ।

अधिक जानने के लिये गीता साधक-संजीवनी (लेखक- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज) में  आठवें अध्याय के सातवें श्लोक की व्याख्या पढें। 

इसके अलावा और भी कई बातें बताई गई है।

श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के 19950805_0518_Antakaaleen Chintan Aur Mukti Ka Upay नाम वाले प्रवचन का अंश (यथावत)।

http://dungrdasram.blogspot.com/

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