।।श्रीहरिः।।
पराभक्तिवशीकरणे,
पराभक्ति की प्राप्ति के लिये रामायण पाठ(-श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज)।
पराभक्ति वशीकरणे, पराभक्ति की प्राप्ति के लिये श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज ने रामचरितमानस- पाठ के दो प्रकार बतलाये हैं-
(1)
पूरी रामायण के नौ बार पाठ-
बालकाण्ड "भूप बागु बर देखेउ जाई। जहँ बसंत रितु रही लोभाई।।"(१|२२७|३) से शुरु करके उत्तरकाण्ड समाप्ति तक रामायण पढ़ें और फिर बालकाण्ड की शुरुआत, "वर्णानामर्थसंघानां••• " से पढते हुए वापस "समय जानि गुरु आयसु पाई। लेन प्रसून चले दोउ भाई।।" (१|२२७|२) तक लाकर पूरा करे। इस प्रकार नौ रामायण पाठ करे। ऐसे आठ पहर में पूरी रामायण का पाठ करें तो नौ दिनों में नौ पाठ हो जाते हैं और
(2)
पुष्पवाटिका- प्रकरण का रोजाना पाठ -
"भूप बागु बर देखेउ जाई। जहँ बसंत रितु रही लोभाई " (१|२२७|३) से शुरु करके "हृदयँ सराहत सीय लोनाई। गुर समीप गवने दोउ भाई।।" (१|२३७|१) तक लाकर पूरा करे।
और सीताजी का ध्यान करे। सीताजी रामजी से भी जल्दी द्रवित हो जाती है। बहनों माताओं का हृदय कोमल होता है। तो भाई बहनों से प्रार्थना है कि कोई पराभक्ति प्राप्त करना चाहें तो इस प्रकार रामायण जी का पाठ करें। इससे श्री सीताजी पराभक्ति देती है जिससे बढ़कर कोई दूसरी भक्ति नहीं।
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