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शनिवार, 15 अप्रैल 2017

(पन्द्रह मिनट का साधन-) *यह तो केवल समझ लेने की, मान लेने की चीज है -* *श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।*

                        ॥श्रीहरि:॥

(पन्द्रह मिनट का साधन-)*यह तो केवल समझ लेने की, मान लेने की चीज है -*
*श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज।*

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इससे भी एक बारीक बात है। मेरा निवेदन है, आप ध्यान देकर सुनें। शरीर-संसारका प्रतिक्षण वियोग हो रहा है- ऐसा निश्चय करके बैठ जायँ। कुछ भी चिन्तन न करें। फिर चिन्तन हो तो वह भी मिट रहा है। मिटनेके प्रवाहका नाम ही चिन्तन है। मिटनेवालेके साथ हमारा सम्बन्ध है ही नहीं। यह सब नित्य-निरन्तर मिट रहा है, और हम इसे जाननेवाले हैं, इससे अलग हैं। ऐसे अपने स्वरूपको देखें। दिनमें पाँच-छः बार पन्द्रह-पन्द्रह मिनट ऐसा कर लें। फिर इस बातको बिलकुल छोड़ दें। फिर याद करें ही नहीं। याद नहीं करनेसे बात भीतर जम जाएगी। इतनी विलक्षण बात है यह! इसे हरदम याद रखनेकी जरूरत नहीं है। याद करो तो पूरी कर लो और छोड़ दो तो पूरी छोड़ दो, फिर याद करो ही नहीं। जैसा रोजाना काम करते हैं, वैसा-का-वैसा ही करते जायँ फिर बात एकदम दृढ़ हो जायगी। यह याद करनेकी चीज ही नहीं है।
यह तो केवल समझ लेनेकी, मान लेनेकी चीज है। जैसे यह बीकानेर है-इसे क्या आप याद किया करते हैं? याद करनेसे तो और फँस जाओगे; क्योंकि याद करनेसे इसे सत्ता मिलती है। मिटानेसे सत्ता मिलती है। हम इसे मिटाना चाहते हैं, तो इसकी सत्ता मानी तभी तो मिटाना चाहते हैं! जब हम सत्ता मानते ही नहीं, तो क्या मिटावें? तो इसकी सत्ता ही स्वीकार न करें ।

*-परम श्रध्देय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज* की पुस्तक
*"साधन-सुधा-सिन्धु"* के *"संयोगमें वियोगका अनुभव"* नामक लेख से।
(पृष्ठ संख्या ५९१)।