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रविवार, 11 जनवरी 2015

कहीं भी जाओ,भगवानका नाम ले करके जाओ-नारायण नारायण०,घटना.(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

                       ।।श्रीहरि:।।

कहीं भी जाओ,भगवानका नाम ले करके जाओ-नारायण नारायण नारायण नारायण करके जाओ ,घटना. ।

(श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज)।

श्रध्देय सेेठजी श्री श्री जयदयालजी गोयन्दका द्वारा स्थापित ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम चूरूमें हर साल वार्षिकोत्सव होता है।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने बताया कि (वो उत्सव करके) एक बार हमलोग चूरूसे लक्ष्मणगढ जा रहे थे।

जब गाड़ीमें बैठे और लाॅरी(गाड़ी) रवाना हुई तो भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार बोले कि- नारायण नारायण,नारायण नारायण।

फिर भाईजी बोले कि यह बात मेरेको मालवीयजीसे मिली है।

पण्डितमदनमोहन मालवीयजीकी मेरेपर बड़ी कृपा थी।(वो अवस्थामें भाईजीसे बड़े थे)।

एक बार वो बोले कि हनुमान! मैं तेरेको एक बहुत बढिया बात बताता हूँ।

भाईजी बोले कि बताओ महाराज।

मालवीयजी कहने ले कि बहुत बढिया बात है।

भाईजी बोले कि बताओ।

मालवीयजी बोले कि बहुत बढिया है।

भाईजी बोले कि बताओ।

मालवीयजी बोले कि (वो बात) मेरी माँ की बतायी हुई है।

भाईजी बोले कि महाराज! बताइये।

मालवीयजी बोले कि बहुत ही बढिया बात है।

ऐसे कहते-कहते, इस बातकी महिमामें उन्होने काफी समय लगा दिया।(यह घटना बताते हुए भाईजीने लिखा है कि करीब आधा घंटा लगा दिया)।

(मालवीयके इस प्रकार बार-बार कहनेसे सुननेकी उत्सुकता और बढ गयी कि ऐसी कौनसी विलक्षण बात बतायेंगे)।

फिर उन्होने यह बात बतायी कि देख हनुमान! कहीं भी जाओ,नारायण नारायण नारायण नारायण करके जाओ। (तीन या चार बार नारायण-नारायणका उच्चारण करके जाओ)।

मैंने काशीजीका विश्वविद्यालय बनवाया,(तथा और भी कई परोपरके काम किये)।तब धनकी आवश्यकता पड़ी,तो मैं कई राजा-महाराजाओंके पास गया।

उस समय मैं नारायण नारायण-भगवन्नामोच्चारण करके गया,तो मेरा काम सिध्द हुआ(धन मिल गया)।

और किसी कारणवश भूल गया-नारायण नारायण करके नहीं गया,तो मेरा काम सिध्द नहीं हुआ।

इसलिये कहीं भी जाओ,नारायण नारायण०करके जाओ-यह उन्होने अपना अनुभवकी बात बतायी।

श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज भी सत्संग-कार्यक्रम आदिके लिये कहीं जाते, तो ज्यों ही गाड़ी रवाना होती,(त्यों ही-रवाना होते ही) करते,नारायण नारायण,नारायण नारायण।

यह उनके बिना याद किये,स्वाभाविक ही हो जाता था।

उनके साथमें रहनेवाले और कई सत्संग-प्रेमियोंके भी ऐसा हो जाता-रवाना होते कि नारायण नारायण०।

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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
साहित्य पढें और उनकी वाणी सुनें।
http://dungrdasram.blogspot.com/