॥श्रीहरि:॥
द्वेषके साथ सम्बन्ध पापसे भी भयंकर है-
{काम्य-कर्म (सकामकर्म) और पापकर्म अकुशलकर्म है अर्थात् संसारबन्धनसे मुक्त करनेमें समर्थ नहीं है, कुशल नहीं है}
साधक ऐसे अकुशल कर्मोंका त्याग तो करता है,पर द्वेषपूर्वक नहीं।कारण कि द्वेषपूर्वक त्याग करनेसे कर्मोंसे तो सम्बन्ध छूट जाता है,पर द्वेषके साथ सम्बन्ध जुड़ जाता है, जो शास्त्रविहित काम्य-कर्मोंसे तथा शास्त्र-निषिध्द पाप-कर्मोंसे भी भयंकर है।
साधक-संजीवनी
(लेखक- श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराज) १८।१० से।
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पता-
सत्संग-संतवाणी.
श्रध्देय स्वामीजी श्री
रामसुखदासजी महाराजका
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